हजरतबल में अशोक स्तंभ पर मुख्यमंत्री उमर ने कहा, राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न केवल सरकारी समारोहों के लिए
संतोष माधव
- 06 Sep 2025, 04:25 PM
- Updated: 04:25 PM
अनंतनाग (जम्मू कश्मीर), छह सितंबर (भाषा) जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को श्रीनगर की हजरतबल मस्जिद में वक्फ बोर्ड द्वारा नवीनीकृत पट्टिका पर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के इस्तेमाल की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह प्रतीक चिह्न सरकारी समारोहों के लिए है, धार्मिक संस्थानों के लिए नहीं।
दक्षिण कश्मीर में बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा कर रहे अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड को इस ‘गलती’ के लिए माफी मांगनी चाहिए, जिससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है।
उनका यह बयान उस बड़े विवाद के बाद आया है जिसके तहत शुक्रवार की नमाज के बाद हजरतबल मस्जिद में लगाई गई अशोक चिह्न वाली पट्टिका को कुछ अज्ञात लोगों ने क्षतिग्रस्त कर दिया था।
पुलिस ने शनिवार को इस घटना के सिलसिले में अज्ञात लोगों के खिलाफ शांति भंग करने, दंगा और आपराधिक साजिश के आरोप में मामला दर्ज किया।
बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा करने के दौरान पत्रकारों से अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘सबसे पहला सवाल तो यह है कि क्या इस पत्थर पर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न लगाना चाहिए या नहीं। मैंने कभी किसी धार्मिक स्थल पर इस तरह से प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल नहीं देखा।’’
उन्होंने कहा कि मस्जिदें, मस्जिदें, मंदिर और गुरुद्वारे सरकारी संस्थाएं नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ये धार्मिक संस्थाएं हैं और धार्मिक संस्थाओं में सरकारी प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
विवाद तब और बढ़ गया जब जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दरख्शां अंद्राबी ने ने प्रतीक चिह्न हटाने वाले ‘गुंडों’ के खिलाफ सख्त जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए)के तहत कानूनी कार्रवाई की मांग की।
अब्दुल्ला ने अंद्राबी के इस बयान की निंदा की और कहा कि बोर्ड ने लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया और अब वे धमकी दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘सबसे पहले तो उन्हें इसके लिए माफी मांगनी चाहिए थी। उन्हें अपनी गलती मान लेनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए था।’’
अब्दुल्ला ने इस पट्टिका की जरूरत पर भी सवाल उठाया और कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने इस मस्जिद का काम पूरा कराया, लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई श्रेय नहीं लिया।
उन्होंने कहा कि देश में किसी भी धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल नहीं किया जाता। उन्होंने कहा, ‘‘गूगल पर सर्च करके देखें, आपको पता चलेगा कि राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल सिर्फ सरकारी कार्यक्रमों में होता है।’’
इस घटना में भारतीय न्याय संहिता की धारा 300 (धार्मिक अनुष्ठान करते समय जानबूझकर बाधा डालना), 352 (शांति भंग करने या अन्य अपराध को भड़काने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना), 191 (2) (दंगा), 324 (किसी व्यक्ति या जनता को नुकसान पहुंचाना) और 61 (4) (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
शुक्रवार की घटना की राजनीतिक नेताओं और आम जनता ने कड़ी आलोचना की है। श्रद्धालु तंवीर सादिक और नेकां के श्रीनगर के सांसद रूहुल्ला मेहदी ने कहा कि मंदिर के अंदर मूर्ति रखने से इस्लाम के एकेश्वरवाद के सिद्धांत का उल्लंघन होता है, जिसमें मूर्ति पूजा की मनाही है।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने कहा कि ऐसा लगता है कि मुसलमानों को जानबूझकर उकसाया जा रहा है। पीडीपी ने पीएसए के इस्तेमाल की मांग की निंदा करते हुए इसे ‘दंडात्मक और सांप्रदायिक सोच’ बताया।
भाषा
संतोष