उच्च न्यायालय ने दाभोलकर के बेटे और पत्रकारों के खिलाफ मानहानि के मामले स्थानांतरित किए
नेत्रपाल नरेश
- 04 Sep 2025, 04:10 PM
- Updated: 04:10 PM
मुंबई, चार सितंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि दिवंगत तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर के बेटे और कुछ पत्रकारों द्वारा जताई गई गोवा आधारित सनातन संस्था से डर की आशंका ‘‘उचित एवं वास्तविक’’ प्रतीत होती है। इसके साथ ही इसने मानहानि के मुकदमों को महाराष्ट्र स्थानांतरित करने की अनुमति दे दी।
दक्षिणपंथी समूह ने 2017 और 2018 में नरेंद्र दाभोलकर के बेटे हामिद तथा कई अन्य पत्रकारों के खिलाफ गोवा के पोंडा की एक अदालत में मानहानि के मुकदमे दायर किए थे, जिनमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने संगठन के खिलाफ झूठे एवं मानहानिकारक बयान दिए और/या प्रकाशित किए, जिससे उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है।
न्यायमूर्ति एन जे जामदार की एकल पीठ ने तीन सितंबर के अपने आदेश में न्याय के हित में प्रतिवादियों की याचिका पर मानहानि के संबंधित मुकदमों को पोंडा स्थित अदालत से महाराष्ट्र स्थानांतरित करने की अनुमति दे दी।
हामिद दाभोलकर और पत्रकारों ने मानहानि के मुकदमे को पोंडा अदालत से महाराष्ट्र की किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित करने का आग्रह करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने आशंका जताई थी कि गोवा में सनातन संस्था का ‘‘गढ़’’ होने के कारण उनकी जान को खतरा है।
याचिकाओं में आशंका जताई गई थी कि यदि उन पर मुकदमा पोंडा में चलाया गया तो उनका भी वही हश्र होगा जो दाभोलकर और कार्यकर्ता गोविंद पानसरे, प्रोफेसर एम.एम. कलबुर्गी तथा पत्रकार गौरी लंकेश जैसे अन्य लोगों का हुआ था - जिनकी अलग-अलग घटनाओं में हत्या कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति जामदार ने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अपनी याचिकाओं में उठाई गई आशंकाएं ‘‘उचित और वास्तविक’’ प्रतीत होती हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि मुकदमों को गोवा की अदालत से महाराष्ट्र की अदालत में स्थानांतरित कर दिया जाए तो न्याय का आदेश बेहतर तरीके से लागू होगा।’’
पीठ ने कहा कि न्याय के हित में मुकदमों को दक्षिण-पश्चिमी महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले की अदालत में स्थानांतरित किया जाता है।
हालाँकि, अदालत ने संस्था के अनुरोध पर अपने आदेश के क्रियान्वयन पर छह सप्ताह की अवधि के लिए रोक लगा दी।
पीठ ने कहा कि दाभोलकर हत्या मामले में दो व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया है और पुणे की सत्र अदालत ने 2024 के अपने फैसले में कहा था कि सनातन संस्था तथा कुछ अन्य दक्षिणपंथी संगठनों ने तर्कवादी की गतिविधियों और अंधविश्वास के खिलाफ उनके अभियान का कड़ा विरोध किया था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि दाभोलकर मामले में अभियोजन पक्ष के गवाहों ने यह स्थापित किया कि आरोपी संबंधित संस्था से जुड़े थे।
न्यायमूर्ति जामदार ने कहा कि निचली अदालत ने अपने फैसले में यह भी निष्कर्ष निकाला कि इस बात के विश्वसनीय साक्ष्य हैं कि गोवा स्थित दक्षिणपंथी समूह दाभोलकर का कड़ा विरोध कर रहा था, जिनकी अगस्त 2013 में पुणे में हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि सत्र न्यायालय के ये निष्कर्ष आवेदकों (हामिद दाभोलकर और पत्रकार निखिल वागले) के मन में भय की भावना पैदा करने के लिए पर्याप्त प्रतीत होते हैं।
भाषा नेत्रपाल