न्यायालय ने गोविंद पानसरे के परिवार की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार से मांगा जवाब
सुरेश नरेश
- 02 Sep 2025, 07:42 PM
- Updated: 07:42 PM
नयी दिल्ली, दो सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बम्बई उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है, जिसमें साम्यवादी विचारक गोविंद पानसरे की 2015 में हुई हत्या की जांच की आगे निगरानी को आवश्यक नहीं माना गया है।
न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने एक सितंबर को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से जवाब तलब किया। यह याचिका पानसरे की बेटी और बहू ने उच्च न्यायालय के दो जनवरी के आदेश के खिलाफ दायर की थी।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाए।’’
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता एवं लेखक गोविंद पानसरे तथा उनकी पत्नी उमा को 16 फरवरी 2015 को पश्चिमी महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर में सुबह टहलते समय गोली मारी गई थी। इस घटना के चार दिन बाद 20 फरवरी 2015 को घायल पानसरे की मृत्यु हो गई, जबकि उनकी पत्नी बच गईं।
इस हत्या की जांच शुरू में पुलिस के अपराध जांच विभाग के एक विशेष जांच दल (एसआईटी) ने की थी, लेकिन बाद में 2022 में इसे महाराष्ट्र के आतंकवाद-रोधी दस्ते (एटीएस) को सौंप दिया गया था।
उच्च न्यायालय 2016 से जांच की निगरानी कर रहा था, जिसमें जांच एजेंसियां नियमित रूप से वास्तविक स्थिति रिपोर्ट पेश करती थीं।
शीर्ष अदालत में दायर याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने यह ध्यान नहीं दिया कि उसकी समन्वय पीठ ने तीन अगस्त 2022 को जांच एसआईटी से लेकर एटीएस को हस्तांतरित कर दी थी, ताकि बड़ी साजिश को उजागर किया जा सके और फरार आरोपियों की खोजबीन कर सके।
याचिका में कहा गया है, ‘‘यद्यपि एटीएस ने मामले के हस्तांतरण के बाद जांच में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं की, फिर भी उच्च न्यायालय ने यह मानकर याचिका खारिज कर दी कि जांच की निगरानी आवश्यक नहीं है, क्योंकि एटीएस का मुख्य उद्देश्य केवल फरार आरोपियों की खोज है।’’
याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने उनकी यह अर्जी ठुकरा दी कि जांच की निगरानी तब तक जारी रखी जाए, जब तक एटीएस की जांच पूरी नहीं हो जाती।
याचिका में यह भी कहा गया है कि एसआईटी द्वारा प्रस्तुत तथ्यों और आरोप-पत्र से यह स्पष्ट होता है कि यह महज हत्या नहीं थी, बल्कि एक गहरी और बड़ी साजिश का हिस्सा थी।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर, पानसरे, कन्नड़ विद्वान एम एम कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्याएं आपस में जुड़ी हुई थीं, लेकिन अब तक न तो हमलावरों का और न ही साजिशकर्ता का पता चल सका है, इसलिए अदालत द्वारा जांच की निगरानी आवश्यक है।
उन्होंने यह भी कहा कि जांच का जिम्मा एसआईटी से लेकर एटीएस को सौंपने के बावजूद कोई प्रभावी प्रगति नहीं हुई है।
उच्च न्यायालय ने दो जनवरी के अपने आदेश में निचली अदालत से कहा था कि वह मामले की सुनवाई तेज गति से करे और रोजाना सुनवाई सुनिश्चित करे।
भाषा सुरेश