साझा घर में महिला अधिकारों को वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए: अदालत
धीरज नेत्रपाल
- 23 Jul 2025, 09:37 PM
- Updated: 09:37 PM
नयी दिल्ली, 23 जुलाई (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने एक वैवाहिक विवाद में पत्नी की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि साझा घर में रहने के महिला के अधिकार को वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
महिला अपने सास-ससुर के साथ साझा घर में रहना चाहती थी।
न्यायिक मजिस्ट्रेट अनम रईस खान घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत दायर दो प्रति आवेदनों पर सुनवाई कर रही थीं।
पहली याचिका में महिला ने अपने अलग रह रहे पति और सास-ससुर को निर्देश देने का अनुरोध किया था कि वे उसे साझा घर से बेदखल न करें।
दूसरा आवेदन पति और उसके माता-पिता द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने महिला को वैकल्पिक आवास में स्थानांतरित करने के निर्देश देने का अनुरोध किया था।
चार जून को दिए आदेश और हाल में उपलब्ध हुई फैसले की प्रति के मुताबिक अदालत ने कहा कि ससुराल वाले वरिष्ठ नागरिक हैं, जो चिकित्सा संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं, जबकि महिला की नाबालिग बेटी अनियंत्रित जुनूनी विकार (ओसीडी) से पीड़ित है।
अदालत ने कहा, ‘‘एक ही साझा घर में तीन अति संवेदनशील समूह रहते हैं, यानी वरिष्ठ नागरिक, एक नाबालिग और एक महिला जो वर्तमान याचिका में पीड़ित है, और उनके बीच तनावपूर्ण संबंध हैं।’’
न्यायाधीश ने कहा कि प्रत्येक संवेदनशील समूह के अधिकार अलग-अलग कानूनों के तहत संरक्षित हैं, और न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह एक अनुकूल व्यवस्था तैयार करके उनके हितों को संतुलित करे।
आदेश में दोनों पक्षों के बीच मामूली मुद्दों पर रोजाना होने वाली कहासुनी के अलावा एक-दूसरे के खिलाफ कई मामलों को रेखांकित किया गया है, जिससे संबंधों में तनाव की स्थिति पैदा होती है।
अदालत ने कहा, ‘‘ये दलीलें पक्षों के बीच गहरे द्वेष और पारिवारिक संबंधों में अपूरणीय बिखराव को दर्शाती हैं।’’
मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘‘एक महिला के साझा घर में रहने के अधिकार को वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए और इसके लिए अदालतों को एक सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जहां तक संभव हो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को प्राथमिकता देनी चाहिए।’’
अदालत ने मामले से जुड़े कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि एक महिला का साझा घर में रहने का अधिकार पूर्ण नहीं है तथा इसे वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों के साथ आकलन करना जाना चाहिए।
इसने कहा, ‘‘ये (उच्च अदालतों के) निर्णय दर्शाते हैं कि यद्यपि घरेलू हिंसा अधिनियम घरेलू वातावरण में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है, तथापि वरिष्ठ नागरिकों की गरिमा और शांति बनाए रखने के लिए इन अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।’’
न्यायाधीश ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी अलग रह रही पत्नी और नाबालिग बेटी के लिए उसी इलाके में समान स्तर के वैकल्पिक आवास की व्यवस्था करे तथा स्थानांतरण व्यय के अलावा किराया भी अदा करे।
मजिस्ट्रेट ने फैसले में मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी के गीत को उद्धृत किया, ‘‘तआरुफ रोग हो जाए तो उसका भूलना बेहतर। तअल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा। वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे इक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा। चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों।’’
भाषा धीरज