हरित ऊर्जा, कम कार्बन वाले स्टील से भारतीय ऑटो उद्योग का उत्सर्जन 87 प्रतिशत कम हो सकता है: अध्ययन
नेत्रपाल पवनेश
- 23 Jul 2025, 04:47 PM
- Updated: 04:47 PM
नयी दिल्ली, 23 जुलाई (भाषा) विचार मंच ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’ (सीईईडब्ल्यू) के एक नए अध्ययन में कहा गया है कि भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग हरित ऊर्जा और कम कार्बन वाले स्टील को अपनाकर 2050 तक अपने विनिर्माण उत्सर्जन में 87 प्रतिशत तक की कटौती कर सकता है।
यह अध्ययन ऐसे समय आया है जब महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा मोटर्स, टीवीएस मोटर्स, फोर्ड, बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज-बेंज और टोयोटा जैसी कई प्रमुख वाहन निर्माता कंपनियां पिछले दो वर्षों में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों के उत्पादन में तेजी लाई हैं और साथ ही साथ उत्सर्जन में कमी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी निर्धारित किए हैं।
इन ऑटो निर्माताओं ने विज्ञान आधारित लक्षित पहल (एसबीटीआई) को लेकर भी प्रतिबद्धता जताई है, जो वैश्विक 'नेट-जीरो' परिभाषाओं के अनुरूप है।
अध्ययन में कहा गया है कि बड़े भारतीय ऑटो निर्माताओं के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्वच्छ बनाने से न केवल उत्सर्जन कम होगा, बल्कि इससे दीर्घकालिक लागत प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी और वे पसंदीदा अंतरराष्ट्रीय आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित होंगे।
सीईईडब्ल्यू अध्ययन तीन क्षेत्रों में उत्सर्जन पर केंद्रित है जिनमें वाहन निर्माण से प्रत्यक्ष उत्सर्जन (स्कोप 1), बिजली के उपयोग से अप्रत्यक्ष उत्सर्जन (स्कोप 2), और ‘अपस्ट्रीम’ आपूर्ति श्रृंखला उत्सर्जन (स्कोप 3) शामिल हैं।
वर्तमान में भारत में ऑटो उद्योग के उत्सर्जन में स्कोप 3 उत्सर्जन का हिस्सा 83 प्रतिशत से अधिक है, जिसका मुख्य कारण वाहन निर्माण में कोयला-प्रधान स्टील और रबर का उपयोग है।
सीईईडब्ल्यू के सीईओ डॉ. अरुणाभ घोष ने कहा, ‘‘भारत का ऑटो उद्योग एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। कम कार्बन वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था में अग्रणी होने के लिए, हमें न केवल अपने द्वारा चलाए जाने वाले वाहनों को, बल्कि उन्हें बनाने वाली औद्योगिक प्रक्रियाओं को भी कार्बन मुक्त करना होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वाहन निर्माताओं को यह स्पष्ट करना होगा कि उनके वाहन कैसे बनाए जाते हैं, उनके कारखानों को किससे ऊर्जा मिलती है और उनके आपूर्तिकर्ता स्टील एवं रबर जैसे महत्वपूर्ण इनपुट का उत्पादन कैसे करते हैं।’’
यह कोई नयी बात नहीं है। भारत में ज़्यादातर बड़े निर्माता पहले से ही इन बदलावों के बारे में सोच रहे हैं।
भाषा नेत्रपाल