ग्राम सभा की सिफारिश पर वन भूमि पर स्कूल, सड़क बनाने के लिए मंजूरी जरूरी नहीं: मंत्रालय
योगेश मनीषा नरेश
- 08 Jul 2025, 01:26 PM
- Updated: 01:26 PM
नयी दिल्ली, आठ जुलाई (भाषा) जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) ने पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर स्पष्ट किया है कि वन अधिकार अधिनियम (एफआरए)-2006 के तहत वन भूमि पर स्कूल, आंगनवाड़ी और सड़क जैसी आवश्यक सार्वजनिक सुविधाओं के निर्माण के लिए वन्यजीव मंजूरी स्वतः आवश्यक नहीं है, बशर्ते कि इनकी सिफारिश ग्राम सभा द्वारा की गई हो।
मंत्रालय ने दो जुलाई को जारी एक आधिकारिक ज्ञापन में एफआरए की धारा 3(2) को लेकर यह स्पष्टता दी है।
यह धारा वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों (ओटीएफडी) के लिए बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए वन भूमि के सीमित उपयोग की अनुमति देती है। इसमें स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, सड़कें और सिंचाई परियोजनाएं शामिल हैं।
आधिकारिक ज्ञापन में गया है,"एफआरए की धारा 3(2) कहती है कि वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में जो भी नियम हैं, उसके बावजूद केंद्र सरकार वन भूमि को स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, सड़क जैसी जरूरी सुविधाएं बनाने के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति दे सकती है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि ग्राम सभा इसे मंजूरी दे।"
अक्टूबर 2020 में जारी एक पत्र में, पर्यावरण मंत्रालय ने कहा था कि एफआरए की धारा 13, जो कहती है कि कानून "फिलहाल लागू किसी अन्य कानून के अतिरिक्त है और उसका खंडन नहीं करता है", का तात्पर्य है कि "अधिनियम की धारा 3(2) को लागू करने के लिए वन्यजीव मंजूरी की आवश्यकता होगी"।
हालाँकि, जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि एफआरए की धारा 3(2) संवैधानिक अधिकारों और सुरक्षा उपायों में निहित है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(ई) और 21, साथ ही पाँचवीं और छठी अनुसूचियाँ शामिल हैं, जो जनजातीय अधिकारों की रक्षा करती हैं।
पत्र में आगे कहा गया है कि धारा 3(2) के तहत वन भूमि के उपयोग में बदलाव के अधिकार को एफआरए की धारा 2(ई), 4(1), 4(2) और 4(7) के साथ पढ़ा जाना चाहिए। ये प्रावधान पुष्टि करते हैं कि वन अधिकार आदिवासी और वनवासी समुदायों में "ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने के लिए निहित" हैं।
शोधकर्ता सी आर बिजॉय ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय के 2020 के पत्र का वन अधिकारियों द्वारा एफआरए की धारा 3(2) के तहत वन गांवों में बुनियादी सुविधाओं को अवरुद्ध करने के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया गया है, जबकि राज्यों को कोई औपचारिक आदेश जारी नहीं किया गया है।
वन अधिकार विशेषज्ञों का दावा है कि वन गांवों को लंबे समय से स्कूल, सड़क और स्वास्थ्य केंद्र जैसी सेवाओं से वंचित रखा गया है जो नियमित राजस्व गांवों में उपलब्ध हैं। वन अधिकारी अक्सर ऐसी परियोजनाओं को यह कहकर रोक देते हैं कि उन्हें कानूनी रूप से अनुमति नहीं है या वन संरक्षण कारणों का हवाला देते हैं। नतीजतन, ये गांव देश में सबसे उपेक्षित गांवों में से हैं
भाषा योगेश मनीषा