दिलीप दोशी: एक जोशीला खिलाड़ी जिसे और सम्मान मिलना चाहिए था
सुधीर मोना
- 24 Jun 2025, 07:27 PM
- Updated: 07:27 PM
नयी दिल्ली, 24 जून (भाषा) दिलीप दोशी 1960 के दशक के आखिर में भारतीय विश्वविद्यालय सर्किट में बल्लेबाजों के लिए आतंक का पर्याय हुआ करते थे जब उनके कलकत्ता विश्वविद्यालय और बाद में बंगाल रणजी टीम के उनके साथी स्वर्गीय गोपाल बोस ने उनसे पूछा था कि क्या वह गैरी सोबर्स को आउट कर सकते हैं।
दोशी हमेशा की तरह बेपरवाह थे और उन्होंने जवाब दिया, ‘‘हां, मैं कर सकता हूं।’’
दोशी ने इसके कुछ साल बाद विश्व एकादश मैच में सोबर्स को आउट किया लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह काउंटी क्रिकेट में नॉटिंघमशर की ओर से कई सत्र वेस्टइंडीज के इस दिग्गज के साथ खेले।
वर्ष 1991 में जब दोशी की आत्मकथा ‘स्पिन पंच’ प्रकाशित हुई तो सर गैरी सोबर्स ने ही इसकी प्रस्तावना लिखी थी, ‘‘दिलीप दोशी के पास उन लोगों को देने के लिए अपार ज्ञान है जो पेशेवर क्रिकेट में उनके रास्ते पर चलना चाहते हैं। उन्होंने दुनिया भर में सभी स्तर पर खेला है और स्पिन गेंदबाजी की कला के बारे में बात करने के लिए उनसे अधिक योग्य कोई नहीं हो सकता।’’
महानतम खिलाड़ियों में शामिल सोबर्स ने दोशी की जमकर सराहना की लेकिन भारतीय क्रिकेट के कई रहस्यों की तरह कोई भी यह नहीं समझ सका कि बीसीसीआई ने कभी उनकी विशेषज्ञता का इस्तेमाल क्यों नहीं किया।
असंभव शब्द दोशी के शब्दकोष में नहीं था, वरना 70 के दशक के अंत में वह पद्माकर शिवालकर और राजिंदर गोयल को पछाड़ 32 साल की उम्र में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण नहीं कर पाते। उन्होंने अधिकतर सपाट पिचों पर खेलते हुए 100 से अधिक टेस्ट विकेट लिए।
दोशी को भारतीय पिचों पर काफी सफलता मिली लेकिन यह 1980-81 में ऑस्ट्रेलिया का दौरा था जहां उन्होंने स्पिन गेंदबाजी की प्रतिकूल पिचों पर 150 से अधिक ओवर में 11 विकेट (एडीलेड में छह और मेलबर्न में पांच) चटकाए। उनके शिकार में ग्रेग चैपल, डग वॉल्टर्स, रॉड मार्श, किम ह्यूजस जैसे बल्लेबाज शामिल थे।
उनकी गेंदबाजी महान बिशन सिंह बेदी की तरह गतिशील कविता नहीं थी और ना ही शिवालकर जैसी सटीक। दोशी इन दोनों के बीच में कहीं थे। वह गेंद को फ्लाइट कर सकते थे और लूप के साथ गेंदबाजी करते थे। वह गेंद को लगातार एक ही ही लेंथ पर पिच कर सकते थे जिससे बल्लेबाज के मन में संदेह पैदा होता था कि गेंद कितनी मुड़ेगी या सीधी होगी या कोण के साथ अंदर जाएगी।
बंगाल क्रिकेट के हलकों में उन्हें ‘दिलीप दा’ के नाम से जाना जाता था। वह निरंतरता में विश्वास करते थे- चाहे एक ही लेंथ पर अनगिनत गेंदें पिच करना हो या 50 वर्षों तक रोलिंग स्टोन्स सुनना हो और लगभग पांच दशक तक मिक जैगर के सबसे करीबी दोस्तों में से एक होना हो।
दोशी हालांकि बल्लेबाजी और क्षेत्ररक्षण के मामले में काफी पीछे थे इसलिए जब फॉर्म में थोड़ी गिरावट आती तो उस समय का टीम प्रबंधन जानता था कि किसे बाहर करना है।
यह 1982-83 में पाकिस्तान का दौरा था जहां जावेद मियांदाद ने उनका मजाक उड़ाया था।
सुनील गावस्कर अक्सर याद करते थे कि कैसे मियांदाद अपनी हिंदी-उर्दू भाषा में दोशी पर छींटाकशी करते थे।
मियांदाद पैर आगे निकालकर रक्षा शॉट खेलने के बाद कहते थे, ‘‘ऐ दिलीप, तेरे कमरे का नंबर क्या है?’’
जब दोशी ने पूछा, ‘‘क्यों?, तो उन्होंने कहा, ‘तेरे को वहीं छक्का मारूंगा’।’’
दोशी ने अपना आखिरी टेस्ट 1983 में पाकिस्तान के खिलाफ बेंगलुरु में खेला था जो ड्रॉ रहा। उन्होंने बारिश से प्रभावित मैच में वसीम राजा का विकेट लिया था।
हालांकि अपनी बेबाक आत्मकथा ‘स्पिन पंच’ में उन्होंने अपने अंतिम टेस्ट से पहले कैसे चीजें घटित हुई इसका वर्णन करते हुए कोई कसर नहीं छोड़ी।
दोशी ने पृष्ठ संख्या 180 पर लिखा, ‘‘भारत के लिए उत्तर क्षेत्र के चयनकर्ता थे बिशन बेदी भारतीय टीम का प्रबंधन भी कर रहे थे। मुझे माहौल शत्रुतापूर्ण लगा और मैं यह महसूस करने से खुद को नहीं रोक सका कि यह मुझे टीम में वापस बुलाए जाने के कारण था। मेरे कप्तान कपिल देव ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और मुझे शुभकामनाएं दीं। कप्तानी से हटाए गए गावस्कर होटल लॉबी में कहीं घूम रहे थे। वह टीम में एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे शुभकामनाएं नहीं दीं या एक शब्द भी नहीं कहा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘टेस्ट से एक शाम पहले बेदी ने मुझे एक निजी पार्टी में अलग ले जाकर बार-बार कहा कि मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे टीम में वापस बुलाया गया और मुझे पांच विकेट लेकर इसे सही साबित करना चाहिए। मैं स्तब्ध था और मैंने टिप्पणी की कि मैं केवल अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर सकता हूं लेकिन मैं विकेट की गारंटी कैसे दे सकता हूं?’’
बेदी पर दोशी कितने नाराज थे इसका अंदाजा अगले पैरा से लगाया जा सकता है।
उन्होंने लिखा, ‘‘मैंने उनसे (बेदी से) पूछा कि क्या उन्होंने कभी यह गारंटी दी थी कि वे एक पारी में कितने विकेट लेंगे। क्या अपने खेलने के दिनों के दौरान उन्हें इस तरह के दबाव के बारे में पता था जो वह मुझ पर डालने की कोशिश कर रहे थे? टेस्ट क्रिकेट में यह कोई बहुत अच्छी वापसी नहीं थी।’’
दोशी ने कहा, ‘‘मैदान पर मैंने देखा कि कपिल देव पूरी तरह से शांत नहीं थे और वह मुझे कहते रहे कि लोगों के मुंह बंद करने के लिए तुम्हें पांच विकेट लेने ही होंगे। मैं अच्छी तरह से जानता था कि उनका क्या मतलब है और मुझे एहसास हुआ कि टीम में मेरा शामिल होना अधिकारियों की गणना को बिगाड़ रहा है।’’
यह भारत के लिए दोशी का आखिरी मैच था। वह हालांकि पहले बंगाल और फिर सौराष्ट्र के लिए 1985-86 तक खेले लेकिन इसके बाद वह स्थायी रूप से इंग्लैंड चले गए जहां उनका कारोबार खूब अच्छा चला। उनकी कंपनी प्रतिष्ठित मोंट ब्लांक पेन को भारत लेकर आई।
भाषा
सुधीर