एचएएल ने अदाणी समर्थित कंपनी को पछाड़कर एसएसएलवी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की बोली जीती
नेत्रपाल धीरज
- 20 Jun 2025, 07:17 PM
- Updated: 07:17 PM
नयी दिल्ली, 20 जून (भाषा) हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के तहत शुक्रवार को लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की बोली जीत ली।
एसएसएलवी रॉकेट का इस्तेमाल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के 500 किलोग्राम वजन तक के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने के लिए किया जाता है।
लड़ाकू जेट विनिर्माता एचएएल ने अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज तथा राज्य समर्थित भारत डायनेमिक्स लिमिटेड के दो समूहों को पीछे छोड़कर यह बोली जीती। अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज अदाणी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज द्वारा समर्थित कंपनी है।
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र के अध्यक्ष पवन गोयनका ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा की।
एचएएल ने 511 करोड़ रुपये की विजयी बोली प्रस्तुत की, जिसके तहत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद वह एसएसएलवी की एकमात्र विनिर्माता बन जाएगी। यह प्रक्रिया अगले दो वर्षों में पूरी होने की उम्मीद है।
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के अध्यक्ष पवन कुमार गोयनका ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘इस प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते के तहत एचएएल के पास स्वतंत्र रूप से एसएसएलवी प्रक्षेपण यान का निर्माण, स्वामित्व और व्यावसायीकरण करने की क्षमता होगी।’’
अंतरिक्ष क्षेत्र के स्टार्ट-अप स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कॉसमॉस के बाद एचएएल रॉकेट बनाने वाली तीसरी कंपनी होगी।
गोयनका ने बताया कि नौ कंपनियों ने एसएसएलवी के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में रुचि दिखाई थी, जिनमें से तीन को अस्वीकार कर दिया गया तथा शेष छह में से तीन ने आवेदन नहीं करने का फैसला किया।
उन्होंने कहा, ‘‘एसएसएलवी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण भारत के परिवर्तनकारी वाणिज्यिक अंतरिक्ष क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण क्षण है, क्योंकि यह किसी अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा संपूर्ण प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी को किसी कंपनी को हस्तांतरित करने का पहला उदाहरण है।’’
गोयनका ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एचएएल का सहयोग करेगा और अगले दो वर्षों में दो प्रोटोटाइप रॉकेट बनाने में उसकी मदद करेगा।
उन्होंने कहा कि इसके बाद सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी द्वारा मांग के आधार पर हर साल स्वतंत्र रूप से छह से 10 एसएसएलवी का उत्पादन किए जाने की उम्मीद है।
गोयनका ने कहा, ‘‘दो वर्ष की अवधि के बाद एचएएल डिजाइन में सुधार करने तथा तीसरे रॉकेट के लिए अपने स्वयं के विक्रेता चुनने के लिए स्वतंत्र होगा।’’
एसएसएलवी को छोटे उपग्रहों को कम समय में पृथ्वी की निचली कक्षा में प्रक्षेपित करने के लिए विकसित किया गया है, जो आपातकालीन समय में रक्षा बलों के लिए आवश्यक क्षमता है।
न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राधाकृष्णन दुरईराज ने कहा, ‘‘यह सहयोग भारत की वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण क्षमताओं को मजबूत करने और विशेष रूप से, एसएसएलवी को साकार करने में भारतीय उद्योग को सक्षम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।’’
एचएएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डी के सुनील ने कहा, ‘‘हम चरणबद्ध तरीके से प्रगति करने और अंतिम उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इसरो तथा इन-स्पेस के मार्गदर्शन में मिलकर काम करने के लिए तत्पर हैं। हमें एक सुसंगत पारिस्थितिकी तंत्र को आगे बढ़ाने का भरोसा है, जो भारत के बंदरगाहों से अधिक छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में सक्षम बनाने का काम करेगा।’’
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते पर एचएएल, एनएसआईएल, इसरो और इन-स्पेस के बीच हस्ताक्षर किए जाएंगे।
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