ईरान के सहयोगी कौन हैं? और अमेरिका के इजराइल से हाथ मिलाने पर क्या कोई युद्ध में उतरेगा?
द कन्वरसेशन गोला नरेश
- 20 Jun 2025, 12:51 PM
- Updated: 12:51 PM
(अली ममूरी, डेकिन यूनिवर्सिटी)
मेलबर्न, 20 जून (द कन्वरसेशन) इजराइल द्वारा ईरान पर हमले जारी रखने के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अन्य वैश्विक नेता इस इस्लामिक देश के खिलाफ अपना रुख कड़ा कर रहे हैं।
ईरान के परमाणु स्थलों पर अमेरिका द्वारा हमला करने पर विचार करते हुए ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता को धमकी देते हुए दावा किया कि उन्हें पता है कि वह कहां छिपे हैं। ट्रंप ने दावा किया वह ईरान के शीर्ष (धार्मिक) नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को ‘‘आसानी से निशाना’’ बना सकते हैं।
ट्रंप ने ईरानी नेता से ‘‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’’ करने की मांग की है। इस बीच, जर्मनी, कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने अपना रुख कड़ा करते हुए ईरान से पूरी तरह अपना परमाणु कार्यक्रम छोड़ने की मांग की है।
क्या ईरान पर दबाव बढ़ने के कारण उसे अकेले ही लड़ना पड़ेगा? या फिर उसके पास ऐसे सहयोगी हैं जो उसकी मदद कर सकते हैं?
क्या ईरान का ‘प्रतिरोध आधार’ पूरी तरह ध्वस्त हो गया है?
ईरान लंबे समय से अपनी प्रतिरोध रणनीति के तहत पश्चिम एशिया में सहयोगी अर्धसैनिक समूहों के नेटवर्क पर निर्भर रहा है। इस दृष्टिकोण ने लगातार धमकियों और दबाव के बावजूद, अमेरिका या इजराइल द्वारा सीधे सैन्य हमलों से इसे काफी हद तक बचाया है।
इस तथाकथित ‘प्रतिरोध आधार’ में लेबनान में हिज्बुल्ला, इराक में पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेस (पीएफएफ), यमन में हूती आतंकवादियों के साथ ही गाजा में हमास जैसे समूह शामिल हैं। ईरान सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का भी समर्थन करता रहा है लेकिन पिछले साल उसे सत्ता से हटा दिया गया।
हालांकि, पिछले दो वर्ष में इजराइल ने इस नेटवर्क को भारी नुकसान पहुंचाया है।
एक समय में ईरान के सबसे शक्तिशाली गैर-सरकारी सहयोगी रहे हिज्बुल्ला को इजराइल ने महीनों तक हमले कर पस्त कर दिया है। लेबनान में इसके हथियारों के भंडार को व्यवस्थित तरीके से निशाना बनाया गया और नष्ट कर दिया गया। साथ ही इस समूह को अपने सबसे प्रभावशाली नेता हसन नसरल्लाह की हत्या से बड़ी मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक क्षति हुई।
सीरिया में असद सरकार के पतन के बाद ईरान समर्थित मिलिशिया को बड़े पैमाने पर खदेड़ दिया गया है, जिससे ईरान का क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण आधार छिन गया है।
हालांकि, ईरान, इराक और यमन में मजबूत प्रभाव बनाए हुए है।
इराक में पीएमएफ के पास करीब 2,00,000 लड़ाके हैं, जो कि एक बहुत बड़ी ताकत है। यमन में हूतियों के पास भी इतने ही लड़ाकों का दल है।
यदि स्थिति ईरान के लिए अस्तित्व का खतरा बन जाती है, जो कि क्षेत्र में एकमात्र शिया नेतृत्व वाला देश है तो धार्मिक एकजुटता इन समूहों को सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकती है। इससे पूरे क्षेत्र में युद्ध का तेजी से विस्तार होगा।
उदाहरण के लिए, पीएमएफ इराक में तैनात 2,500 अमेरिकी सैनिकों पर हमला कर सकता है। वास्तव में, पीएमएफ के अधिक कट्टरपंथी गुटों में से एक, कताइब हिज्बुल्ला के प्रमुख ने ऐसा करने का वादा किया है।
क्या ईरान के क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोगी इस लड़ाई में कूदेंगे?
कई क्षेत्रीय शक्तियों के ईरान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। इनमें सबसे उल्लेखनीय है पाकिस्तान, जो इकलौता इस्लामिक देश है जिसके पास परमाणु शस्त्रागार है।
कई हफ्तों से ईरानी नेता खामेनेई ने गाजा में इजराइल की कार्रवाइयों का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की।
इजराइल-ईरान संघर्ष में पाकिस्तान की महत्ता के मद्देनजर ट्रंप ने एशियाई देश के सेना प्रमुख से वाशिंगटन में मुलाकात की है।
पाकिस्तान के नेताओं ने भी अपनी निष्ठाएं काफी हद तक स्पष्ट कर दी हैं। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ईरान के राष्ट्रपति को ‘‘इजरायल के हमले की सूरत में अटूट एकजुटता’’ की पेशकश की है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि इजराइल ‘‘पाकिस्तान से मुकाबला करने से पहले कई बार सोचेगा।’’
हालांकि, पाकिस्तान भी तनाव कम करने के लिए काम कर रहा है। उसने अन्य मुस्लिम बहुल देशों और अपने रणनीतिक साझेदार चीन से आग्रह किया है कि वे हिंसा के व्यापक क्षेत्रीय युद्ध में बदलने से पहले कूटनीतिक हस्तक्षेप करें।
हाल के वर्षों में, ईरान ने पूर्व क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों सऊदी अरब और मिस्र से भी संबंध सुधारने के प्रयास किए हैं।
इन बदलावों से ईरान के लिए व्यापक क्षेत्रीय समर्थन जुटाने में मदद मिली है। करीब 24 मुस्लिम बहुल देशों ने संयुक्त रूप से इजराइल की कार्रवाई की निंदा की है और उससे तनाव कम करने का अनुरोध किया है, इनमें से कुछ के इजराइल के साथ राजनयिक संबंध भी हैं।
हालांकि, यह संभावना नहीं है कि सऊदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्किये जैसी क्षेत्रीय शक्तियां अमेरिका के साथ अपने मजबूत गठबंधन को देखते हुए ईरान को भौतिक रूप से समर्थन देंगी।
ईरान के प्रमुख वैश्विक सहयोगी रूस और चीन ने भी इजराइल के हमलों की निंदा की है। उन्होंने पहले भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दंडात्मक प्रस्तावों से तेहरान को बचाया है।
बहरहाल, कोई भी देश कम से कम अभी तक ईरान को प्रत्यक्ष सैन्य सहायता प्रदान करके या इजराइल और अमेरिका के साथ गतिरोध में उलझकर टकराव को बढ़ाने के लिए तैयार नहीं दिख रहा है।
यदि संघर्ष बढ़ता है और अमेरिका खुले तौर पर तेहरान में सत्ता परिवर्तन की रणनीति अपनाता है तो सैद्धांतिक रूप से यह स्थिति बदल सकती है।
द कन्वरसेशन गोला