एनएमसी ने मेडिकल कॉलेजों के विभागों का प्रभार बारी-बारी से तीन साल के लिए सौंपने का प्रस्ताव रखा
नेत्रपाल अविनाश
- 11 Jun 2025, 06:40 PM
- Updated: 06:40 PM
नयी दिल्ली, 11 जून (भाषा) राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने वरिष्ठता और स्नातकोत्तर चिकित्सा डिग्री के आधार पर पदोन्नति के लिए अर्हता प्राप्त पात्र संकाय सदस्यों को मेडिकल कॉलेजों में विभागों का प्रभार तीन-तीन साल के लिए बारी-बारी से सौंपने का प्रस्ताव दिया है।
स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा विनियम (पीजीएमईआर) 2023 में संशोधन का मसौदा सुझाते हुए एनएमसी ने कई सुपर-स्पेशलिटी पाठ्यक्रमों, जैसे न्यूरोसर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी में एमसीएच तथा अन्य एमसीएच कार्यक्रमों के लिए एमएस (ट्रॉमेटोलॉजी और सर्जरी) को शामिल करने का प्रस्ताव दिया है।
संशोधनों का मसौदा 30 मई को आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया गया और एनएमसी ने छात्रों, शिक्षकों तथा चिकित्सा समुदाय जैसे हितधारकों से इन बदलावों पर प्रतिक्रिया आमंत्रित की है।
मौजूदा 2023 विनियमों के तहत, प्रत्येक विभाग का नेतृत्व एक प्रोफेसर द्वारा किया जाता है, जिसे विभागाध्यक्ष (एचओडी) नियुक्त किया जाता है।
एनएमसी ने प्रस्ताव में कहा, ‘‘विभागाध्यक्ष का पद मेडिकल स्नातकोत्तर की डिग्री रखने वाले प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर (जो प्रोफेसर बनने के योग्य हैं) को विभाग में वरिष्ठता के आधार पर हर तीन साल में बारी-बारी से दिया जाएगा।’’
यह प्रस्ताव कई मेडिकल कॉलेजों और अकादमिक निकायों के संकाय संगठनों की ओर से अधिक न्यायसंगत प्रशासनिक ढांचे की मांग के बीच आया है। इस कदम का उद्देश्य निष्पक्षता लाना और युवा एवं योग्य संकाय सदस्यों को नेतृत्व करने के अवसर प्रदान करना है।
अप्रैल में, फैकल्टी एसोसिएशन ऑफ एम्स (एफएआईएमएस), दिल्ली और फैकल्टी एसोसिएशन ऑफ पीजीआई, चंडीगढ़ ने इन प्रमुख संस्थानों में बारी-बारी से नेतृत्व की लंबे समय से चली आ रही नीति के कार्यान्वयन में निरंतर देरी पर संयुक्त रूप से चिंता व्यक्त की थी।
एफएआईएमएस की बैठक 16 अप्रैल को आयोजित की गई, जिसके बाद 17 अप्रैल को पीजीआई चंडीगढ़ फैकल्टी एसोसिएशन की बैठक हुई।
वर्ष 2023 में, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने औपचारिक रूप से सूचित किया था कि जून 2024 से एम्स, दिल्ली और पीजीआई चंडीगढ़ में बारी-बारी से नेतृत्व करने की नीति लागू की जाएगी।
संयुक्त वक्तव्य में कहा गया था कि इसके बावजूद, लगभग एक वर्ष बीत जाने तथा संकाय निकायों द्वारा बार-बार अनुरोध किए जाने के बाद भी इसके क्रियान्वयन की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
यदि इन विनियमों को मंजूरी मिल जाती है तो इन्हें ‘स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा विनियम (संशोधन), 2025’ कहा जाएगा।
भाषा नेत्रपाल