प्रौद्योगिकी दोधारी तलवार, न्याय प्रणाली में तकनीक का संतुलित उपयोग जरूरी: सीजेआई
अमित सुरेश
- 10 Jun 2025, 05:18 PM
- Updated: 05:18 PM
नयी दिल्ली, 10 जून (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई ने प्रौद्योगिकी की “दोधारी तलवार” (सकारात्मक एवं नकारात्मक) प्रकृति को रेखांकित करते हुए कहा कि इस तरह के नवाचारों से न्यायिक कार्यों में वृद्धि होनी चाहिए, न कि इसे निर्णय लेने की प्रक्रिया का स्थान लेना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश ने नौ जून को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में "न्याय तक पहुंच में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी की भूमिका" विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भारत जैसे विशाल, विविध और जटिल देश में न्याय तक पहुंच बढ़ाने में प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी शक्ति पर जोर दिया।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि भारत में न्यायपालिका ने न्याय को अधिक सुलभ बनाने के लिए प्रौद्योगिकी को तत्परता से एकीकृत किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि प्रौद्योगिकी एक दोधारी तलवार की तरह काम कर सकती है, जिससे अभूतपूर्व विभाजन भी हो सकता है। एक प्राथमिक चिंता डिजिटल विभाजन है, जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी, उपकरणों और डिजिटल साक्षरता तक असमान पहुंच के कारण हाशिये पर पड़े समुदाय वंचित हो सकते हैं, जो पहले से ही न्याय के लिए बाधाओं का सामना कर रहे हैं। प्रौद्योगिकी से निष्पक्ष परिणाम सुनिश्चित हो, इसके लिए पहुंच और समावेशन को इसके डिजाइन का आधार होना चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘शासन के ऐसे ढांचे विकसित किए जाने चाहिए जो मानवीय निगरानी, एल्गोरिदम पारदर्शिता और प्रौद्योगिकी-मध्यस्थ निर्णयों के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करें।’’
सीजेआई ने कहा, ‘‘आगे बढ़ने के लिए मूलभूत सिद्धांतों का पालन करना जरूरी है। तकनीक को न्यायिक कार्यों, विशेष रूप से तर्कसंगत निर्णय लेने और व्यक्तिगत मामले के मूल्यांकन का स्थान लेने के बजाय इसमें वृद्धि करनी चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वचालित प्रणालियां न्यायिक निर्णय को बदलने के बजाय उसका समर्थन करें।’’
उन्होंने डिजिटल नवाचार पर आधारित एक अधिक समावेशी और उत्तरदायी कानूनी प्रणाली के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा, ‘‘न्याय तक पहुंच किसी भी निष्पक्ष और न्यायसंगत कानूनी प्रणाली की रीढ़ है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्ति, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, भौगोलिक स्थिति या व्यक्तिगत परिस्थितियां कुछ भी हों, कानूनी प्रक्रियाओं में प्रभावी रूप से भाग ले सकें और उनसे लाभ उठा सकें।’’
उन्होंने कहा कि ऐसे देश में जहां दो तिहाई से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और 121 से अधिक भाषाएं मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं, वहां अदालतों तक न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करना संवैधानिक दायित्व और नैतिक अनिवार्यता दोनों है।
उन्होंने संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता को रेखांकित किया, जिन्होंने न्याय तक पहुंच की गारंटी के लिए अनुच्छेद 32 और 226 सहित विभिन्न तंत्र स्थापित किए, जो नागरिकों को अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए सीधे उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों से संपर्क करने का अधिकार देते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘प्रौद्योगिकी, न्याय के संवैधानिक वादे और नागरिकों के जीवंत अनुभव के बीच सेतु बन गई है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कई प्रमुख पहलों का उल्लेख किया, जिन्होंने भारतीय न्यायपालिका को डिजिटल तरीके में परिवर्तित कर दिया है तथा कहा कि वीडियो-कॉन्फ्रेंस अदालतों में एक स्थायी व्यवस्था बन गई है, क्योंकि यह दूरदराज के क्षेत्रों के वकीलों को महंगी और समय लेने वाली यात्रा के बिना उच्चतम न्यायालय के समक्ष मामलों पर बहस करने में सक्षम बनाया है।
उन्होंने कहा कि न्याय तक पहुंच की बाधाएं अब प्रौद्योगिकी की मदद से कम हो रही हैं। सीजेआई ने कहा, ‘‘वीडियो कॉन्फ्रेंस प्रौद्योगिकी ने अदालत तक पहुंच पर सबसे अधिक प्रभाव डाला है। ग्रामीण बिहार या ग्रामीण महाराष्ट्र में वकालत करने वाला कोई भी वकील अब दिल्ली आने के खर्च और समय के बिना उच्चतम न्यायालय में पेश हो सकता है।’’
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के उपयोग से नागरिक अब मुकदमे की स्थिति पर नजर रख सकते हैं, अदालती आदेश डाउनलोड कर सकते हैं, तथा वाद सूचना प्रणाली के माध्यम से सुनवाई का कार्यक्रम आदि देख सकते हैं, जिससे भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
सीजेआई गवई ने कहा, ‘‘इसने देश के उच्चतम न्यायालय तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाया है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि भौगोलिक स्थिति अब नागरिकों के लिए उपलब्ध कानूनी प्रतिनिधित्व की गुणवत्ता निर्धारित नहीं करती है। संवेदनशील गवाह, विशेष रूप से बच्चे, अब अदालत के माहौल में भौतिक रूप से पेश हुए बिना गवाही दे सकते हैं।’’
उन्होंने एसयूवीएएस (सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद सॉफ़्टवेयर) का भी उल्लेख किया और कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित अनुवाद उपकरण कानूनी दस्तावेजों को नौ क्षेत्रीय भाषाओं में परिवर्तित करता है, जिससे गैर-अंग्रेजी बोलने वालों को महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंच प्राप्त होती है।
सीजेआई गवई ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के प्रयासों की सराहना की, जो अपनी सेवाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाता है। उन्होंने कहा, "ये नवाचार केवल सुविधाएं नहीं हैं, वे उन लोगों के लिए जीवन रेखा हैं, जो न्यायिक प्रणाली से बाहर रह जाते।"
उन्होंने न्यायिक पारदर्शिता और प्रदर्शन निगरानी में महत्वपूर्ण बदलाव के रूप में राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) की सराहना की।
उन्होंने कहा कि 2025 की शुरुआत तक, एनजेडीजी 18,000 से अधिक अदालतों से 23 करोड़ से अधिक मामलों और 22 करोड़ आदेशों की निगरानी करता है।
भाषा
अमित