शीर्ष अदालत ने कर्नल सोफिया पर टिप्पणी के लिए मध्यप्रदेश के मंत्री को फटकार लगाई, एसआईटी जांच के आदेश
नोमान रंजन
- 19 May 2025, 09:53 PM
- Updated: 09:53 PM
नयी दिल्ली, 19 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह को सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ की गई उनकी "असभ्य" टिप्पणी के लिए सोमवार को फटकार लगाई और उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी की जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मंत्री की माफी को खारिज कर दिया और कहा कि यह केवल कानूनी नतीजों से बचने की कोशिश है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘इन टिप्पणियों के कारण पूरा देश शर्मसार है... हमने आपके वीडियो देखे, आप बहुत घटिया भाषा का इस्तेमाल करने वाले थे, लेकिन किसी तरह से आपकी समझ कुछ काम कर गई या आपको शब्द नहीं मिले। आपको शर्म आनी चाहिए। पूरा देश हमारी सेना पर गर्व करता है और आपने ऐसा बयान दिया।’’
मंत्री की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह और विभा दत्त मखीजा ने दलील दी कि उन्होंने सचमुच खेद व्यक्त किया है और वह दोबारा ऐसा करने के लिए तैयार हैं।
पीठ ने कहा "वह माफी क्या है। आपने जो माफी मांगी है वो कहां है? क्या हम आपको वीडियो दिखाएं कि किस तरह की माफ़ी मांगी गई... 'माफी' शब्द का कुछ मतलब होता है।’’
पीठ ने सिंह से कहा, "कभी-कभी लोग बहुत विनम्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं और कानूनी परिणामों से बचने के लिए वे बहुत ही कृत्रिम प्रकार की माफी मांगते हैं और कभी-कभी लोग मगरमच्छ के आंसू भी बहाते हैं। इसलिए, आपका मामला किस श्रेणी में आता है। हम जानना चाहेंगे।"
पीठ ने कहा कि मंत्री ने लोगों की भावनाओं को "बेरहमी से ठेस पहुंचाई है" और कहा, "आपने जिस तरह की घटिया टिप्पणियां की हैं, वह पूरी तरह से बिना सोचे समझे की हैं। आपने 12 मई को बयान दिया था और आज 19 मई है। तो आपको ईमानदारी से प्रयास करने से किसने रोका है। हमें इस माफी की आवश्यकता नहीं है..."
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और विवेक तन्खा को हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से कोई दलील पेश करने की अनुमति नहीं दी और कहा कि अदालत मामले का राजनीतिकरण नहीं करना चाहती।
न्यायमूर्ति कांत ने सिंह से कहा कि व्यक्ति को हमेशा अपनी टिप्पणियों के समय पर ध्यान देना चाहिए और यह भारतीय सुरक्षा बलों के लिए इतना भावनात्मक मुद्दा है कि सभी को बहुत जिम्मेदार होना चाहिए।
पीठ ने कहा, "हमने पहले भी कहा है और हम दोहराते हैं कि हमें अपने सशस्त्र बलों पर गर्व है। वे अग्रिम मोर्चे पर हैं और कम से कम हम जिम्मेदारी से काम कर सकते हैं। यदि आप इस बात पर जोर देते हैं कि यह आपका वास्तविक खेद है तो इसे पूरी तरह से खारिज किया जाता है...।"
पीठ ने सिंह से कहा, "हमारा देश कानून के शासन में दृढ़ता से विश्वास करता है। बड़ा हो या छोटा, हम सभी के लिए समान सिद्धांत का पालन करते हैं। आपको एक आशंका है कि स्वत: संज्ञान से कार्रवाई की गई है और उच्च न्यायालय शिकायतकर्ता है। हम कभी किसी के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह नहीं रखते...।"
शीर्ष अदालत ने सीधे आईपीएस भर्ती हुए तीन अधिकारियों की एक एसआईटी गठित की है जिसकी अध्यक्षता पुलिस महानिरीक्षक स्तर के एक अधिकारी करेंगे और इसमें एक महिला अधिकारी भी शामिल हैं। अदालत ने कहा कि जांच दल 28 मई को अपनी पहली स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगा।
पीठ ने यह भी कहा कि ये अधिकारी मध्यप्रदेश कैडर के हों लेकिन राज्य से संबंधित नहीं हों।
न्यायालय ने मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक को मंगलवार सुबह 10 बजे से पहले एसआईटी गठित करने और उसे जांच सौंपने का निर्देश दिया।
पीठ ने राज्य सरकार के वकील को बताया कि लोग यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि राज्य की कार्रवाई निष्पक्ष होगी।
मंत्री ने अपनी टिप्पणी के लिए प्राथमिकी दर्ज करने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका याचिका दायर की थी। इसकी सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वह एक सार्वजनिक व्यक्ति और अनुभवी राजनेता हैं और इसलिए उनके शब्दों में कुछ वजन होना चाहिए।
अदालत ने कहा कि एक जनप्रतिनिधि होने के नाते मंत्री को एक उदाहरण पेश करना चाहिए था और हर एक शब्द का इस्तेमाल समझदारी से करना चाहिए था।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मंत्री की 12 मई को की गई टिप्पणी के लिए कड़ी आलोचना हुई जिसके बाद उन्होंने कहा कि अगर उनके बयान से किसी को ठेस पहुंची है तो वह 10 बार माफी मांगने के लिए तैयार हैं और वह कर्नल कुरैशी का अपनी बहन से ज्यादा सम्मान करते हैं।
उच्च न्यायालय के आदेश के बाद 14 मई को इंदौर जिले में शाह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
यह प्राथमिकी भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने का कृत्य), धारा 196 (1) (बी) (अलग-अलग समुदायों के आपसी सद्भाव पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला ऐसा कृत्य जिससे सार्वजनिक शांति भंग होती हो या भंग होने की आशंका हो) और धारा 197 (1) (सी) (किसी समुदाय के सदस्य को लेकर ऐसी बात कहना जिससे अलग-अलग समुदायों के आपसी सद्भाव पर प्रतिकूल असर पड़ता हो या उनके बीच शत्रुता या घृणा या दुर्भावना की भावना पनपती हो या पनपने की आशंका हो) के तहत दर्ज की गई।
भाषा नोमान