भारत का संविधान सर्वोच्च है, इसके सभी स्तंभों को साथ मिलकर काम करना चाहिए: प्रधान न्यायाधीश गवई
नोमान सुभाष
- 18 May 2025, 09:06 PM
- Updated: 09:06 PM
मुंबई, 18 मई (भाषा) प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने रविवार को इस बात पर जोर दिया कि न तो न्यायपालिका और न ही कार्यपालिका, बल्कि भारत का संविधान सर्वोच्च है और इसके स्तंभों को साथ मिलकर काम करना चाहिए।
न्यायमूर्ति गवई ने संविधान की सर्वोच्चता को रेखांकित करते हुए कहा कि भले ही संसद के पास संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को नहीं छू सकती। उन्होंने ‘‘बुलडोजर न्याय’’ का जिक्र करते हुए कहा कि आश्रय का अधिकार भी सर्वोच्च है।
इस सप्ताह की शुरुआत में 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने वाले न्यायमूर्ति गवई ने यहां बार काउंसिल महाराष्ट्र एवं गोवा द्वारा आयोजित उनके अभिनंदन समारोह तथा राज्य वकीलों के सम्मेलन को संबोधित किया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें खुशी है कि देश न सिर्फ मजबूत हुआ है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर भी विकसित हुआ है और यह जारी है।
उन्होंने कहा, “न तो न्यायपालिका, न ही कार्यपालिका और न ही संसद सर्वोच्च है, बल्कि भारत का संविधान सर्वोच्च है और इन तीनों अंगों को संविधान के अनुसार काम करना है।”
प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह इसके मूल ढांचे को नहीं छू सकती।
संविधान का मूल ढांचा सिद्धांत के तहत आने वाले प्रावधानों को संसद द्वारा संविधान संशोधन के माध्यम से संशोधित या निरस्त नहीं किया जा सकता है, जिनमें संविधान की सर्वोच्चता, कानून का शासन और न्यायपालिका की स्वतंत्रता समेत अन्य शामिल हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने इस बात पर जोर दिया कि देश की बुनियादी संरचना मज़बूत है और संविधान के तीनों स्तंभ समान हैं।
उन्होंने कहा, “संविधान के सभी अंगों को एक-दूसरे के प्रति उचित सम्मान प्रदर्शित करना चाहिए।"
महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले गवई ने कहा कि ऐसे समय में प्रधान न्यायाधीश बनकर वह खुश हैं जब संविधान 75 वर्ष पूरे कर रहा है और अपनी शताब्दी की ओर अग्रसर है।
उन्होंने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि केशवानंद भारती मामले में दिए गए फैसले में मूल ढांचा सिद्धांत के कारण हमारा देश 'मजबूत' है और संविधान के सभी तीन स्तंभ अपने निर्धारित दायरे में काम करने की कोशिश कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका और विधायिका ने कई कानून बनाए हैं, जिससे सामाजिक और आर्थिक न्याय की अवधारणा पूरी होगी।
कार्यक्रम के दौरान, न्यायमूर्ति गवई द्वारा दिये गए 50 उल्लेखनीय निर्णयों पर आधारित एक पुस्तक का विमोचन भी किया गया। अपने भाषण में प्रधान न्यायाधीश ने अपने कुछ निर्णयों का हवाला दिया।
"बुलडोजर न्याय" के खिलाफ अपने फैसले का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आश्रय का अधिकार सर्वोच्च है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "आश्रय का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। चाहे कोई व्यक्ति किसी अपराध का आरोपी हो या दोषी हो, अगर परिवार का घर कानूनी रूप से लिया गया है, तो उसे हटाया या ध्वस्त नहीं किया जा सकता। कानून के शासन का पालन किया जाना चाहिए।"
उन्होंने महाराष्ट्र और देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में अपने विभिन्न कार्यों और यात्राओं के बारे में बात की।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "हमने हाल में मणिपुर का दौरा किया और संघर्षरत दोनों समुदायों को आश्वासन दिया कि देश आपके साथ है और न्याय आपके दरवाजे पर है, इसलिए इसका लाभ उठाएं। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसा करने का मौका मिला।"
इस अवसर पर, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि शीर्ष अदालत में मुंबई उच्च न्यायालय के प्रतिनिधित्व के संबंध में बार और ‘बेंच’ दोनों की ओर से मांग बढ़ रही है।
उन्होंने कहा, "मैं स्पष्ट रूप से स्वीकार करता हूं कि कानून के विकास में महाराष्ट्र बार द्वारा दिया गया योगदान, चाहे वह दीवानी कानून हो या आपराधिक कानून, और सबसे महत्वपूर्ण बात, संवैधानिकता, संवैधानिक नैतिकता, संवैधानिक सिद्धांतों, संवैधानिक बुनियादी संरचना के सिद्धांतों के विकास में, आपके उच्च न्यायालय द्वारा किया गया योगदान उल्लेखनीय है। यह अद्वितीय है।"
नवंबर में न्यायमूर्ति गवई की सेवानिवृत्ति के बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत अगले प्रधान न्यायाधीश बनेंगे।
इस कार्यक्रम में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अभय ओका, दीपांकर दत्ता और मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे भी शामिल हुए।
भाषा नोमान