असंगत फैसलों से जनता का विश्वास डगमगाता है : उच्चतम न्यायालय
पारुल दिलीप
- 29 Apr 2025, 10:27 PM
- Updated: 10:27 PM
नयी दिल्ली, 29 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि अलग-अलग पीठ के असंगत निर्णयों से जनता का विश्वास डगमगाता है और फैसलों में एकरूपता जिम्मेदार न्यायपालिका की पहचान है।
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने वैवाहिक विवाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय की दो अलग-अलग एकल पीठ ने विरोधाभासी फैसले सुनाए थे।
शीर्ष अदालत ने कहा, “यह मामला एक परेशान करने वाली तस्वीर पेश करता है। एक न्यायाधीश ने जहां ससुराल वालों के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया और कहा कि घाव प्रमाण पत्र से पता चलता है कि याचिकाकर्ता पर हमला किया गया था और उसे साधारण चोटें आई थीं। वहीं, दूसरे न्यायाधीश ने प्रतिवादी पति के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी और कहा कि चिकित्सा प्रमाण पत्र शिकायत में लगाए गए आरोपों के अनुरूप नहीं था, यानी घाव प्रमाण पत्र यह नहीं दर्शाता है कि चोटें किसी कुंद हथियार से पहुंचाई गई थीं।”
फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति बागची ने दूसरे न्यायाधीश की ओर से पारित आदेश की निंदा की, जिसके तहत पति के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी गई थी।
उन्होंने कहा, “विवादित निर्णय का अवलोकन करने के बाद हमारा विचार है कि न्यायाधीश ने प्राथमिकी/आरोपपत्र में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता के संबंध में जांच शुरू करके कानूनी गलती की है।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायाधीश ने प्राथमिकी में वर्णित हमले की प्रकृति की तुलना घाव प्रमाण पत्र से की और आरोपों को झूठा पाया।
उसने कहा कि इस प्रक्रिया में न्यायाधीश ने कार्यवाही को रद्द करने के लिए एक लघु-जांच की, जो कानून के अनुसार अनुचित है।
न्यायालय ने कहा, “अलग-अलग पीठ की ओर से दिए जाने वाले असंगत फैसले जनता के विश्वास को हिला देते हैं और मुकदमेबाजी को सट्टेबाजी के खेल में बदल देते हैं। ऐसे फैसले ‘फोरम शॉपिंग’ (वादियों द्वारा अपने मामले की सुनवाई उस अदालत में कराने के लिए कदम उठाने की प्रथा, जिसमें उन्हें लगता है कि उनके हक में फैसला आने की अधिक संभावना है) जैसी प्रथाओं को जन्म देते हैं, जो न्याय की स्पष्ट धारा को बिगाड़ते हैं।”
भाषा पारुल