न्यायालय ने ‘बिल्डर-बैंक की साठगांठ’ से घर खरीददारों से धोखाधड़ी के दावों पर सीबीआई जांच के आदेश दिए
आशीष नरेश
- 29 Apr 2025, 06:23 PM
- Updated: 06:23 PM
नयी दिल्ली, 29 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने आवास खरीदारों से धोखाधड़ी करने के लिए बैंकों और रियल एस्टेट डेवलपर्स के बीच ‘नापाक’ गठजोड़ का उल्लेख करते हुए मंगलवार को सीबीआई को सुपरटेक लिमिटेड सहित एनसीआर के बिल्डरों के खिलाफ सात प्रारंभिक जांच दर्ज करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने प्रथम दृष्टया पाया कि नोएडा, गुरुग्राम, यमुना एक्सप्रेसवे, ग्रेटर नोएडा, मोहाली, मुंबई, कोलकाता और इलाहाबाद में बैंकों और बिल्डरों के बीच साठगांठ है।
पीठ ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दाखिल हलफनामे का संज्ञान लिया और उत्तर प्रदेश, हरियाणा के पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) को विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने के लिए पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी), निरीक्षक, कांस्टेबल की सूची एजेंसी को देने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ)/प्रशासकों, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के सचिव, भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (आईसीएआई) और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को निर्देश दिया कि वे एसआईटी को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए एक सप्ताह के भीतर अपने वरिष्ठतम अधिकारियों में से एक नोडल अधिकारी को नामित करें।
पीठ ने कहा कि वह मासिक आधार पर जांच की स्थिति की निगरानी करेगी।
इस मामले में ‘एमिकस क्यूरी’ (अदालत का सहयोग करने वाले वकील) अधिवक्ता राजीव जैन ने सुपरटेक को आवास खरीदारों के साथ धोखाधड़ी करने में ‘‘मुख्य दोषी’’ बताया, जबकि कॉरपोरेशन बैंक ने भुगतान योजनाओं के माध्यम से बिल्डरों को 2,700 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया।
अदालत को बताया गया कि सुपरटेक के पास छह शहरों में 21 परियोजनाएं थीं, जिनमें 19 बैंकों के साथ करार था। इनमें 800 ऐसे आवास खरीदार शामिल हैं जो धोखाधड़ी का शिकार हुए।
‘एमिकस क्यूरी’ की रिपोर्ट से पता चला है कि अकेले सुपरटेक ने 1998 से 5,157.86 करोड़ रुपये का ऋण प्राप्त किया था। रिपोर्ट में कहा गया कि इसलिए सुपरटेक और बैंकों के बीच अंतर्निहित साठगांठ की प्राथमिकता के आधार पर जांच की आवश्यकता है।
भुगतान योजना के तहत, बैंक स्वीकृत राशि को सीधे बिल्डरों के खातों में वितरित करते हैं, जिन्हें तब तक स्वीकृत ऋण राशि पर ईएमआई का भुगतान करना होता है जब तक कि फ्लैट घर खरीदारों को नहीं सौंप दिए जाते।
त्रिपक्षीय समझौते के अनुसार, जब बिल्डरों ने बैंकों को ईएमआई का भुगतान करने में चूक करना शुरू कर दिया, तो बैंकों ने आवास खरीदारों से ईएमआई मांगी।
उच्चतम न्यायालय ने पूर्व में कहा था कि हजारों आवास खरीदार इस तरह की भुगतान योजना से प्रभावित हुए, जहां बैंकों ने निर्धारित समय के भीतर परियोजनाएं पूरी किए बिना बिल्डरों को आवास ऋण राशि का 60 से 70 प्रतिशत भुगतान कर दिया।
शीर्ष अदालत ने तब सीबीआई को मामले की तह तक जाने के लिए एक खाका प्रस्तुत करने का आदेश दिया था कि वह किस तरह ‘‘बिल्डर-बैंकों के गठजोड़’’ को बेनकाब करने की योजना बना रहा है, जिसने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में हजारों आवास खरीदारों को धोखा दिया।
शीर्ष अदालत कई आवास खरीदारों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने एनसीआर क्षेत्र विशेष रूप से नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गुरुग्राम में विभिन्न आवास परियोजनाओं में विभिन्न भुगतान योजनाओं के तहत फ्लैट बुक किए थे। उनका आरोप है कि फ्लैटों पर कब्जा नहीं होने के बावजूद बैंकों की ओर से उन्हें ईएमआई का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
भाषा आशीष