मानहानि मामले में जुर्माने पर रोक के लिए सत्र अदालत में जाएं: उच्च न्यायालय ने पाटकर से कहा
वैभव मनीषा
- 22 Apr 2025, 01:50 PM
- Updated: 01:50 PM
नयी दिल्ली, 22 अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर से कहा कि वह दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में उन्हें (पाटकर को) सुनाई गई एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा को स्थगित करने की अनुमति के लिए सत्र न्यायालय जाएं।
सक्सेना ने 23 साल पहले यह मामला दायर किया था, जब वह गुजरात में एक एनजीओ के प्रमुख थे।
सत्र न्यायालय ने 70 वर्षीय पाटकर को मानहानि मामले में दोषी ठहराया था। उसने 8 अप्रैल को उन्हें ‘अच्छे आचरण की परिवीक्षा’ पर रिहा कर दिया और उन पर एक लाख रुपये का जुर्माना जमा करने की शर्त लगाई।
परिवीक्षा में दोषी ठहराए जाने के बाद अपराधी को जेल भेजने के बजाय अच्छे आचरण के ‘बांड’ पर रिहा कर दिया जाता है।
न्यायमूर्ति शालिन्दर कौर इस मामले में पाटकर की उस याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं थीं, जिसमें उन्होंने निचली अदालत को जुर्माना राशि जमा करने सहित सजा के निष्पादन को स्थगित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था, इसलिए उनके वकील ने कहा कि वह याचिका के साथ सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे।
न्यायमूर्ति कौर ने कहा, ‘‘पहले आप निचली अदालत के आदेश का पालन करें और तब मैं आपकी याचिका पर विचार करूंगी। अंतिम दिन अदालत में नहीं आएं।’’
पाटकर के वकील ने कहा कि परिवीक्षा बांड प्रस्तुत करने और राशि जमा करने के लिए मामला बुधवार को सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय में सूचीबद्ध है।
उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें दर्ज कीं और कहा कि निचली अदालत को आवेदन पर कानून के अनुसार विचार करना चाहिए।
न्यायालय ने मामले को 19 मई के लिए सूचीबद्ध किया, जो सत्र न्यायालय के 2 अप्रैल के फैसले को चुनौती देने वाली पाटकर की याचिका पर सुनवाई के लिए पहले से तय तारीख है। सत्र अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा मामले में पाटकर की दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
मजिस्ट्रेट अदालत ने 1 जुलाई, 2024 को नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की नेता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी पाते हुए पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
पांच महीने कैद की सजा काट रही पाटकर को राहत देते हुए सत्र न्यायालय ने मानहानि मामले में उन्हें 8 अप्रैल को ‘अच्छे आचरण की परिवीक्षा’ पर रिहा कर दिया। इसलिए सत्र न्यायालय ने 1 जुलाई, 2024 को उन्हें पांच महीने की साधारण कारावास की सजा सुनाने वाले मजिस्ट्रेट न्यायालय के आदेश को ‘संशोधित’ कर दिया। न्यायालय ने उनसे एक लाख रुपये की क्षतिपूर्ति राशि जमा करने को कहा, जिसे शिकायतकर्ता सक्सेना को जारी किया जाना चाहिए। सत्र न्यायालय ने कहा कि मुआवजा राशि कानून के अनुसार जुर्माने के रूप में वसूल की जा सकेगी।
सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ 24 नवंबर, 2000 को जारी एक ‘अपमानजनक प्रेस विज्ञप्ति’ के लिए मामला दायर किया था, जब वह नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे।
पिछले साल 24 मई को मजिस्ट्रेट अदालत ने माना था कि पाटकर के बयानों में सक्सेना को ‘कायर’ कहा गया था और हवाला लेन-देन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया गया था, जो न केवल अपने आप में अपमानजनक था, बल्कि उनके बारे में ‘नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए तैयार किया गया था’।
अदालत ने कहा था कि शिकायतकर्ता पर गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए ‘गिरवी’ रखने का आरोप उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला था।
भाषा वैभव