अदालत ने गर्भपात की मांग कर रहीं यौन उत्पीड़न पीड़िताओं की पीड़ा पर दुख जताया
नेत्रपाल वैभव
- 18 Apr 2025, 08:10 PM
- Updated: 08:10 PM
नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल में इस बात पर नाराजगी जताई कि उसके उन निर्देशों का राष्ट्रीय राजधानी के चिकित्सकों द्वारा अनुपालन नहीं किया जा रहा जिनमें कहा गया था कि गर्भपात कराने की मांग कर रहीं यौन उत्पीड़न की पीड़िताओं के मामलों का निपटारा करने के लिए बिना किसी देरी के एक समिति का गठन किया जाए।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने 17 अप्रैल को अपने फैसले में 25 जनवरी, 2023 और 3 नवंबर, 2023 को पारित अपने निर्देशों के अनुपालन को लेकर ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ स्थिति को रेखांकित किया।
अदालत ने अस्पतालों को निर्देश दिया था कि चिकित्सकीय गर्भपात चाहने वाली यौन उत्पीड़न पीड़िताओं की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड गठित किया जाए।
उच्च न्यायालय ने अपने 2023 के निर्देशों की मंशा को रेखांकित करते हुए कहा कि 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था वाली यौन उत्पीड़न पीड़िताओं की चिकित्सकीय जांच कानून के तहत तुरंत कराने का आदेश दिया गया था और कहा गया था कि जब लड़की या उसकी ओर से कोई भी व्यक्ति गर्भपात के लिए अदालत में आवेदन करेगा तो संबंधित रिपोर्ट तैयार रखी जाएगी।
न्यायाधीश ने पाया कि जमीनी स्तर पर स्थिति काफी हद तक अपरिवर्तित बनी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘यौन उत्पीड़न के परिणामस्वरूप गर्भ धारण करने वाली महिला के गर्भपात की प्रक्रिया को तेज करने और इसे सरल बनाने का इरादा, दुर्भाग्य से, प्रभावी और समय के लिहाज से संवेदनशील कार्रवाई में तब्दील नहीं हुआ है।’’
अदालत के समक्ष आया मामला 15 वर्षीय नाबालिग पीड़िता के साथ घटी घटना से जुड़ा था। उसे 27 सप्ताह से अधिक का गर्भ था। वह गर्भपात कराना चाहती थी- जो कि 24 सप्ताह की अनुमत समयसीमा से परे था।
यह मुद्दा दिल्ली सरकार के एलएनजेपी अस्पताल द्वारा रखी गई शर्त से उत्पन्न हुआ, जब नाबालिग पीड़िता के माता-पिता उसका गर्भपात कराने के लिए वहां गए थे।
माता-पिता से अदालती आदेश प्राप्त करने को कहा गया, क्योंकि भ्रूण की गर्भावधि चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम के तहत स्वीकार्य अवधि को पार कर चुकी थी।
उच्च न्यायालय ने अपने निर्देशों का पालन न होने पर अफसोस जताया और कहा कि राजधानी के आठ सरकारी तथा पांच निजी अस्पतालों में गठित स्थायी मेडिकल बोर्ड से यह अपेक्षा की जाती है कि वे पीड़िता की जांच करने और रिपोर्ट तैयार करने से पहले अदालत के आदेश का इंतजार न करें।
अदालत ने खेद व्यक्त किया और कहा कि निर्देश दिए हुए दो वर्ष बीत चुके हैं। उसने सवाल किया कि यौन उत्पीड़न के चलते गर्भवती हुई एक पीड़िता को किस तरह अदालत के आदेश की प्रतीक्षा में कई दिन तक पीड़ा का सामना करना पड़ा और उसे कोई राहत नहीं मिली।
परिणामस्वरूप, अदालत ने चिकित्सीय गर्भपात की मांग करने वाली नाबालिग बलात्कार पीड़िताओं को चिकित्सीय सहायता के अलावा शीघ्र और उचित कानूनी मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देशों का एक नया सेट पारित किया।
अदालत ने निर्देश दिया कि जब भी किसी नाबालिग पीड़िता, जिसका गर्भ 24 सप्ताह से अधिक का हो गया हो, को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाए तथा उसे चिकित्सा जांच या गर्भ के चिकित्सीय समापन के लिए अस्पताल भेजा जाए, तो समिति इसके बारे में दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति को सूचित करेगी।
यह सूचित किए जाने पर कि पीड़िता अस्पताल में भर्ती है, अदालत ने अस्पताल के अधिकारियों को शुक्रवार को लड़की का गर्भपात करने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया।
अस्पताल के डॉक्टरों को भ्रूण के ऊतकों को संरक्षित करने का निर्देश दिया गया, जो अपराधी के खिलाफ आपराधिक मामले में डीएनए पहचान के लिए आवश्यक होगा।
अदालत ने कहा, ‘‘सरकार को याचिकाकर्ता के गर्भपात, उसकी दवाओं और भोजन का सारा खर्च वहन करना चाहिए, और यदि बच्चा जीवित पैदा होता है, तो अस्पताल के अधीक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे हरसंभव सुविधा प्रदान की जाए।’’
इस बीच, अदालत ने पीड़िता की मेडिकल जांच और रिपोर्ट तैयार करने में एक सप्ताह की देरी पर एलएनजेपी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक से स्पष्टीकरण मांगा।
भाषा नेत्रपाल