बाह्यग्रह पर जैविक गतिविधि से रात्रि आकाश को देखने का हमारा नजरिया बदल सकता है: खगोलशास्त्री
धीरज नरेश
- 18 Apr 2025, 05:41 PM
- Updated: 05:41 PM
नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा)खगोलशास्त्री निक्कू मधुसूदन के मुताबिक सौरमंडल के बाहर जैविक गतिविधि के साक्ष्य से रात्रि आकाश को देखने का तरीका मौलिक रूप से बदल सकता है। उन्होंने कहा कि यह नजरिया आकाश को भौतिक, निर्जीव आकाश के रूप में देखने से लेकर इसे ‘‘जीवन युक्त आकाश’’ के रूप में देखने तक बदल सकता है।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में खगोलशास्त्री और बाह्यग्रहीय विज्ञान के प्रोफेसर मधुसूदन एक अध्ययन दल के प्रमुख अनुसंधानकर्ता हैं। इस दल ने पृथ्वी से लगभग 120 प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक बाह्यग्रह के2-18बी पर डाइमिथाइल सल्फाइड और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड अणुओं के होने का संकेत तलाशा है।
विज्ञान जगत में माना जाता है कि पृथ्वी पर इन अणुओं को समुद्री जीवों द्वारा उत्पादित माना जाता है और इन्हें बाह्यग्रहों पर जीवन या जैविक अधिवास का शुरुआती संकेत मानते हैं।
‘ एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स’ में प्रकाशित अनुसंधान के परिणाम सौरमंडल के बाहर जीवन के अब तक के सबसे पुख्ता संकेत हैं।
मधुसूदन ने ‘पीटीआई वीडियो’ को दिये साक्षात्कार में बताया, ‘‘यह पूरी तरह से संभव है कि अगर हम (के2-18 बी) पर कुछ और अवलोकन करें, तो कुछ वर्षों में हम पुख्ता तरीके से इन अणुओं का पता लगा सकते हैं।’’
वर्तमान में यह अध्ययन ‘थ्री-सिग्मा’ महत्व के साक्ष्य प्रदान करता है। यह वस्तुनिष्ठ गणना के लिए इस्तेमाल सांख्यिकीय शब्द है, जो 99.7 प्रतिशत विश्वास को दर्शाता है कि अध्ययन के परिणाम ‘अनायास मिली’ सफलता नहीं हैं।
मधुसूदन ने कहा, ‘‘थ्री सिग्मा का अर्थ है कि आपके पास अब भी 0.3 प्रतिशत संभावना है कि यह सांख्यिकीय संयोग है - संयोग होने की संभावना लगभग एक हजार में से तीन है।’’
खगोलभौतिकीविद के अनुसार, यद्यपि इस दर्जे की वास्तुनिष्ठ गणना को ‘‘सम्मानजनक’’ रूप से देखा गया। हालांकि, जब बात किसी वैज्ञानिक परिणाम की आती है, जिसके व्यापक निहितार्थ होते हैं - जैसे कि ‘हम ब्रह्मांड में अकेले नहीं हो सकते’ - तो ‘आपको वास्तव में, पूरी तरह सुनिश्चित होना चाहिए’।
मधुसूदन ने कहा, ‘‘जब आपको बड़ी सफलताएं मिलती हैं, बड़े प्रतिमान बदलाव होते हैं, तो आप वास्तव में बहुत आश्वस्त होना चाहते हैं, क्योंकि इससे विज्ञान और समाज का स्वरूप मौलिक रूप से बदल जाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘तो, पुख्ता माप यह है कि हम इस स्तर तक सुनिश्चित होना चाहते हैं कि अनायास हुई खोज की संभावना दस लाख में एक भाग से भी कम हो, जो सांख्यिकीय अप्रत्याशित घटना या ‘‘सिर्फ संयोग’’ की बहुत, बहुत, बहुत छोटी संभावना है। हम इतना मजबूत होना चाहते हैं।’’
मधुसूदन का जन्म 1980 में भारत में हुआ था। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिंदू विश्वविद्यालय), वाराणसी से इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
उन्होंने 2004 में इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर और 2009 में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी), अमेरिका से भौतिकी में पीएचडी की उपाधि हासिल की।
उन्होंने 2013 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में संकाय सदस्य के रूप में शामिल होने से पहले एमआईटी सहित कई संस्थानों में पोस्टडॉक्टरल पदों पर कार्य किया।
मधुसूदन ने पिछले दशक में ग्रहों के बाह्यग्रह विज्ञान के क्षेत्र में अहम योगदान दिया है, विशेष रूप से ‘हाइसीन दुनिया’ के। ‘हाइसीन दुनिया’ उन ब्राह्यग्रहों को कहा जाता है जिनका वातावरण हाइड्रोजन से बना है और समुद्र मौजूद है।
मधुसूदन की टीम ने ‘हाइसीन दुनिया’ शब्द पांच साल पहले गढ़ा था, जब वे ऐसे ग्रहों की खोज कर रहे थे जो संभावित रूप से रहने योग्य हों, तथा साथ ही काफी बड़े हों और जिनमें ऐसे गुण हों जिन्हें वर्तमान में उपलब्ध तकनीकी उपकरणों का उपयोग करके देखा जा सके।
मधुसूदन ने कहा, ‘‘इसलिए, हम इस अवधारणा के साथ आए और के2-18बी इसके लिए एक अच्छा उम्मीदवार है। यदि आप ग्रह के द्रव्यमान त्रिज्या या संतुलन तापमान को लेते हैं। यह उस विवरण से मेल खाता है।’’ उनके काम को येल सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स और इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड एप्लाइड फिजिक्स द्वारा मान्यता दी गई है।
खगोलभौतिकीविद् ने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टि से इसके बड़े परिणाम होंगे, क्योंकि यदि के2-18 को जीवन योग्य पाया जाता है, तो इसका अर्थ यह होगा कि ‘‘ब्रह्मांड जीवन से भरा हुआ है।’’उन्होंने कहा, ‘‘इसका रात में आकाश के बारे में हमारी सोच और ब्रह्मांड के बारे में हमारी सोच पर मौलिक प्रभाव पड़ सकता है।’’
मधुसूदन ने कहा, ‘‘क्योंकि आज, यदि आप रात में आकाश की ओर देखें, तो आपको आकाश में एक भौतिक ब्रह्मांड दिखाई देगा, जिसमें ग्रह, तारे और आकाशगंगा जैसी भौतिक वस्तुएं होंगी, जबकि हम पृथ्वी पर ब्रह्मांड का जैविक हिस्सा हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, यदि आप कहीं और जीवन का पता लगाते हैं, तो यह प्रतिमान बदल जाता है - क्योंकि जब आप रात में आकाश को देखेंगे, तो आप इसे जीवन युक्त आकाश के रूप में सोचेंगे।’’
भाषा धीरज