हिमाचल में वन अधिकारी के पत्र को लेकर वनाधिकार संगठनों की आपत्ति, केंद्र को लिखा पत्र
नरेश
- 17 Apr 2025, 12:58 PM
- Updated: 12:58 PM
नयी दिल्ली, 17 अप्रैल (भाषा) हिमाचल प्रदेश के कई आदिवासी और वनाधिकार संगठनों ने राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) द्वारा वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) को लेकर जारी एक पत्र पर आपत्ति जताते हुए इसे अधिनियम की गलत व्याख्या करार दिया है और इसे वनवासियों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाने वाला बताया है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006, आदिवासी और वन-आश्रित समुदायों के उस भूमि पर अधिकारों को मान्यता देता है जिस पर वे पीढ़ियों से रहते आए हैं और जिसकी वे रक्षा करते आए हैं। हालाँकि, इसके क्रियान्वयन में उल्लंघन की भरमार रही है, और बड़ी संख्या में दावों को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया है।
हिमधारा कलेक्टिव, हिमालय नीति अभियान, वन अधिकार मंच और अन्य संगठनों ने कहा कि वन विभाग का 11 अप्रैल का पत्र, जो राज्य के सभी उपायुक्तों और वन अधिकारियों को संबोधित है, उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
उन्होंने वन विभाग के पत्र को तत्काल वापस लेने की मांग की तथा विश्वास बहाली की प्रक्रिया शुरू करने का आह्वान किया।
पत्र को "अनावश्यक और अनुचित हस्तक्षेप" बताते हुए संगठनों ने 14 अप्रैल को मंत्रालय को पत्र लिखा और कहा, "अधिनियम के अनुसार, केवल जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) को इसके कार्यान्वयन के संबंध में स्पष्टीकरण या दिशानिर्देश जारी करने का अधिकार है। वन विभाग द्वारा जारी पत्र में नामित नोडल एजेंसियों और उनके स्थापित स्पष्टीकरणों को दरकिनार कर दिया गया है।’’
वन विभाग के पत्र, जिसकी पीटीआई द्वारा समीक्षा की गई है, में हिमाचल प्रदेश जैसे नाजुक हिमालयी राज्य में पारिस्थितिक क्षरण और "एफआरए" प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
इसने "अन्य पारंपरिक वनवासी" (ओटीएफडी) श्रेणी के व्यापक अनुप्रयोग के खिलाफ चेतावनी दी, और दावा किया कि हिमाचल के संदर्भ में इसका दुरुपयोग होने का खतरा है।
पीसीसीएफ ने लिखा, "हिमाचल प्रदेश में... ग्रामीण क्षेत्र का लगभग हर व्यक्ति संभावित रूप से एफआरए के तहत अन्य पारंपरिक वन निवासी (ओटीएफडी) होने का दावा कर सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से गलत व्याख्या है।"
पत्र में लिखा गया है, "परिभाषा की किसी भी अतिशयोक्ति और गलत व्याख्या से हिमाचल प्रदेश के वनों का व्यापक विनाश हो सकता है तथा यह माननीय सर्वोच्च न्यायालय और अन्य न्यायालयों के निर्देशों का उल्लंघन हो सकता है।"
वन अधिकार समूहों का दावा है कि यह कानून की गलत व्याख्या है।
उन्होंने मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा, "पत्र की विषय-वस्तु से यह स्पष्ट है कि वन विभाग अन्य पारंपरिक वन निवासियों की अपनी व्याख्या थोपने का प्रयास कर रहा है, तथा प्रभावी रूप से एफआरए के तहत संसद द्वारा प्रदत्त धारा 2(ओ) के तहत परिभाषा को दरकिनार कर रहा है।" राखी