उपराज्यपाल के खिलाफ मेधा पाटकर के मानहानि मामले की तारीख 20 मई के बाद तय करें: उच्च न्यायालय
नोमान सुरेश
- 16 Apr 2025, 04:00 PM
- Updated: 04:00 PM
नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ अदालत से बुधवार को कहा कि वह सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर द्वारा वर्ष 2000 में राष्ट्रीय राजधानी के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना के खिलाफ दायर मानहानि के मामले की सुनवाई की तारीख 20 मई के बाद तय करे।
‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की नेता ने सक्सेना के खिलाफ उस वक्त मामला दाखिल किया था, जब सक्सेना गुजरात में एक एनजीओ के प्रमुख थे और उन्होंने (सक्सेना ने) कथित तौर पर एक अपमानजनक विज्ञापन प्रकाशित कराया था।
न्यायमूर्ति शालिन्दर कौर ने अधीनस्थ अदालत से कहा कि अंतिम बहस के लिए निर्धारित मानहानि मामले को 20 मई के बाद सूचीबद्ध किया जाए। उच्च न्यायालय 20 मई को ही पाटकर की उस याचिका पर सुनवाई करने वाला है, जिसमें उन्होंने मामले में एक नए गवाह से जिरह करने की मांग की है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अधीनस्थ अदालत को निर्देश दिया जाता है कि वह इस अदालत द्वारा दी गई तारीख के बाद ही सुनवाई की तारीख दे।"
उच्च न्यायालय ने यह निर्देश पाटकर की उस याचिका पर दिया, जिसमें उन्होंने मानहानि मामले में अधीनस्थ अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी।
यह अर्जी पाटकर की उस लंबित याचिका में दायर की गयी है, जिसमें उन्होंने अधीनस्थ अदालत के 18 मार्च के आदेश को चुनौती दी है। इसमें मामले में नए गवाह से जिरह करने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय को बताया गया कि अधीनस्थ अदालत ने 28 मार्च को इस मामले में अंतिम बहस के लिए 19 अप्रैल की तारीख निर्धारित की थी।
उच्च न्यायालय से अधीनस्थ अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने का आग्रह करते हुए वकील ने कहा कि यदि कार्यवाही पर रोक नहीं लगाई गई तो उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका निरर्थक हो जाएगी।
उच्च न्यायालय ने 27 मार्च को अधीनस्थ अदालत के आदेश के खिलाफ पाटकर की याचिका पर सक्सेना को नोटिस जारी किया था।
सक्सेना के वकील ने कहा कि याचिका पर जवाब अभी तक दाखिल नहीं किया गया है और उन्होंने 24 साल पुराने मामले में अंतिम दलीलें सुनने के लिए अधीनस्थ अदालत से अनुरोध किया।
अधीनस्थ अदालत ने 18 मार्च को पाटकर की एक नए और अतिरिक्त गवाह से जिरह करने की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि न्यायिक प्रक्रिया को "ऐसी युक्तियों से बंधक नहीं बनाया जा सकता।"
इसने कहा कि वर्तमान मामला 24 वर्षों से लंबित था और शिकायतकर्ता ने शिकायत दर्ज करते समय शुरू में सूचीबद्ध सभी गवाहों से पहले ही जिरह कर ली है।
अधीनस्थ अदालत ने कहा कि यदि पक्षकारों को बाद के चरण में मनमाने ढंग से नए गवाह पेश करने की अनुमति दी गई तो मुकदमे कभी समाप्त नहीं होंगे।
पाटकर ने 17 फरवरी को अधीनस्थ अदालत के समक्ष आवेदन दायर कर अतिरिक्त गवाह नंदिता नारायण से जिरह की मांग की थी और कहा था कि यह "मौजूदा मामले के तथ्यों के लिए प्रासंगिक हैं।"
सक्सेना के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह याचिका न्यायिक कार्यवाही में देरी करने के लिए 24 साल के अंतराल के बाद दायर की गई है।
पाटकर और सक्सेना के बीच वर्ष 2000 से कानूनी लड़ाई चल रही है, जब पाटकर ने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ कथित तौर पर विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के खिलाफ मामला दायर किया था।
उस समय अहमदाबाद स्थित गैर सरकारी संगठन ‘काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख रहे सक्सेना ने अपने खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक बयान प्रेस को जारी करने के लिए 2001 में पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर किए थे।
सक्सेना द्वारा दायर एक मामले में दिल्ली की एक अदालत ने पाटकर को एक जुलाई 2024 को पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई।
भाषा नोमान