राज्यपाल के कार्यालय को संसदीय लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुसार काम करना चाहिए: उच्चतम न्यायालय
सिम्मी रंजन
- 12 Apr 2025, 07:32 PM
- Updated: 07:32 PM
नयी दिल्ली, 12 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह राज्यपालों के कार्यों के लिए अनुच्छेद 200 के तहत समयसीमा तय करके उनके कार्यालय को कमजोर नहीं कर रहा लेकिन उन्हें (राज्यपालों को) संसदीय लोकतंत्र की स्थापित परंपराओं का उचित सम्मान करते हुए कार्य करना चाहिए।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि द्वारा कोई कार्रवाई किए बिना रोके रखने के कृत्य की आलोचना करते हुए कहा कि राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत एक से तीन महीने की अवधि में समयबद्ध तरीके से कार्य करना होता है।
अनुच्छेद 200 राज्यपाल को अपने समक्ष प्रस्तुत विधेयकों पर स्वीकृति देने, स्वीकृति रोकने या उन्हें राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखने का अधिकार देता है।
पीठ ने कहा, ‘‘हम राज्यपाल के पद को किसी भी तरह से कमजोर नहीं कर रहे। हम बस इतना ही कहना चाहते हैं कि राज्यपाल को संसदीय लोकतंत्र की स्थापित परंपराओं के प्रति उचित सम्मान दिखाते हुए काम करना चाहिए, विधान पालिका के माध्यम से व्यक्त की जाने वाली लोगों की इच्छा और लोगों के प्रति उत्तरदायी निर्वाचित सरकार का सम्मान करना चाहिए।’’
अदालत ने कहा, ‘‘उन्हें मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक की अपनी भूमिका निष्पक्षता के साथ निभानी चाहिए। उनकी भूमिका राजनीतिक लाभ से नहीं बल्कि उनके द्वारा ली गई संवैधानिक शपथ की पवित्रता से निर्देशित होनी चाहिए।’’
पीठ ने यह फैसला आठ अप्रैल को सुनाया था लेकिन इसे शुक्रवार रात को वेबसाइट अपलोड किया गया।
उसने 415 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा कि टकराव के समय राज्यपाल को ‘‘आम सहमति बनाने और समाधान तलाशने की दिशा में अगुआ की भूमिका निभानी चाहिए। उन्हें राज्य मशीनरी के कामकाज को अपनी बुद्धिमत्ता और विवेक से सुचारू बनाना चाहिए तथा उसे ठप नहीं होने देना चाहिए। उन्हें चीजों को आगे बढ़ाने वाला होना चाहिए, अवरोधक नहीं। उनके सभी कार्य उस उच्च संवैधानिक पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए किए जाने चाहिए, जिस पर वे आसीन हैं।’’
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि राज्यपाल पदभार ग्रहण करने से पहले संविधान और कानून के शासन की रक्षा, संरक्षण और बचाव के लिए अपने कर्तव्यों का अपनी क्षमता के अनुसार निर्वहन करने की शपथ लेते हैं। उसने कहा कि वे राज्य के लोगों की सेवा और कल्याण के लिए खुद को समर्पित करने की शपथ लेते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए यह जरूरी है कि उनके सभी कार्य उनकी शपथ के प्रति सच्ची निष्ठा से निर्देशित हों तथा वे संविधान द्वारा और उसके तहत सौंपे गए अपने कार्यों को ईमानदारी से पूरा करें।’’
पीठ ने कहा कि राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में राज्यपाल को लोगों की इच्छा एवं कल्याण को प्राथमिकता देने और राज्य मशीनरी के साथ सद्भाव से काम करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
उसने कहा, ‘‘इस कारण राज्यपाल को इस बात के प्रति सचेत रहना चाहिए कि वे राजनीतिक लाभ के मकसद से लोगों की इच्छा को अवरुद्ध करने के लिए राज्य विधानमंडल में अवरोध उत्पन्न न करें या उस पर नियंत्रण न रखें। राज्य विधानमंडल के सदस्य लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति के परिणामस्वरूप राज्य के लोगों द्वारा चुने गए हैं इसलिए वे राज्य के लोगों का कल्याण बेहतर तरीके से सुनिश्चित कर सकते हैं। लोगों के स्पष्ट चयन यानी राज्य विधानमंडल के विपरीत कोई भी कदम उनकी (राज्यपालों की) संवैधानिक शपथ का उल्लंघन होगा।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च पदों पर आसीन संवैधानिक प्राधिकारियों को संविधान के मूल्यों के अनुसार काम करना चाहिए और ‘‘ये मूल्य, जिन्हें भारत के लोग बहुत महत्व देते हैं, हमारे पूर्वजों के वर्षों के संघर्ष और बलिदान का परिणाम हैं।’’
पीठ ने कहा, ‘‘जब निर्णय लेने के लिए कहा जाता है, तो ऐसे प्राधिकारियों को क्षणिक राजनीतिक विचारों के आगे नहीं झुकना चाहिए, बल्कि संविधान की मूल भावना के तहत काम करना चाहिए। उन्हें अपने भीतर झांकना चाहिए और विचार करना चाहिए कि क्या उनके कार्य उनकी संवैधानिक शपथ के अनुसार हैं और क्या उनके द्वारा की गई कार्रवाई संविधान में निहित आदर्शों को आगे बढ़ाती है।’’
उसने कहा कि यदि प्राधिकारी संवैधानिक जनादेश को दरकिनार करने का जानबूझकर प्रयास करते हैं, तो वे उन आदर्शों के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं, जिन पर इस देश का निर्माण हुआ है और जिनका इस देश के लोग बहुत सम्मान करते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद और भरोसा है कि राज्यपाल और राज्य सरकार लोगों के हितों एवं कल्याण को सर्वोपरि रखते हुए मिलकर और सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम करेंगे।’’
पीठ ने राष्ट्रपति के विचारार्थ 10 विधेयकों को सुरक्षित करने के राज्यपाल के फैसले को अवैध और कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण करार देते हुए आठ अप्रैल को खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए राज्यपालों के लिए समयसीमा भी निर्धारित की।
भाषा सिम्मी