मानहानि के मामले में अदालत ने कहा कि पाटकर एक साल की परिवीक्षा में रहेंगी
आशीष माधव
- 08 Apr 2025, 08:42 PM
- Updated: 08:42 PM
नयी दिल्ली, आठ अप्रैल (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने पांच महीने की जेल की सजा का सामना कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को मंगलवार को राहत देते हुए उन्हें उपराज्यपाल वी के सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दायर मानहानि मामले में एक साल की परिवीक्षा दी। यह मामला उस समय का है, जब सक्सेना गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन के प्रमुख थे।
हालांकि, अदालत ने पाटकर (70) पर एक लाख रुपये का जुर्माना जमा करने की पूर्व शर्त लगाई है।
परिवीक्षा अपराधियों के साथ गैर-संस्थागत व्यवहार की एक विधि है। यह सजा का एक सशर्त निलंबन है, जिसमें दोषी को जेल भेजने के बजाय अच्छे आचरण का वादा करने पर रिहा कर दिया जाता है।
साल 2000 में दर्ज मामले में अपनी दोषसिद्धि और पांच महीने की सजा के खिलाफ पाटकर द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने कहा कि उन्होंने पाटकर की उम्र, अपराध की गंभीरता और इस बात को ध्यान में रखा है कि उन्हें पहले कभी दोषी नहीं ठहराया गया है।
अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में अपराध ऐसा नहीं था कि जेल की सजा दी जाए। अदालत ने कहा, ‘‘दोषी एक बुजुर्ग महिला हैं। इससे पहले उन्हें कभी दोषी नहीं ठहराया गया और कोई कारण नहीं है कि उन्हें परिवीक्षा का लाभ देने से इनकार किया जाए।’’
इसलिए अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालत के उस आदेश को ‘‘संशोधित’’ कर दिया, जिसमें पाटकर को एक जुलाई 2024 को पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी।
अदालत ने कहा, ‘‘मुआवजा राशि जमा करने पर, दोषी या अपीलकर्ता मेधा पाटकर को 25,000 रुपये का परिवीक्षा बांड प्रस्तुत करना होगा, साथ ही इतनी ही राशि की जमानत भी देनी होगी, जो परिवीक्षा बांड प्रस्तुत करने की तारीख से एक वर्ष की अवधि के लिए होगी।’’
सक्सेना के वकील गजिंदर कुमार और किरण जय ने कहा कि पाटकर ने जानबूझकर उनके मुवक्किल को बदनाम किया और इसके लिए उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
अदालत ने कहा कि यह साबित हो चुका है कि पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ झूठा और दुर्भावनापूर्ण बयान दिया और उसे प्रेस नोट के माध्यम से प्रकाशित करवाया, जिसका उद्देश्य उनकी प्रतिष्ठा और सम्मान को नुकसान पहुंचाना था।
उनके कृत्य की निंदा करते हुए, अदालत ने कहा, ‘‘मेधा पाटकर प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, उन्हें अपनी प्रतिष्ठा का मूल्य पता होना चाहिए और यह भी कि किस प्रकार बदनामी से प्रभावित व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सार्वजनिक छवि को ठेस पहुंचती है। दूसरों की प्रतिष्ठा के प्रति असंवेदनशील दृष्टिकोण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।’’
सजा में संशोधन करते हुए न्यायाधीश ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता पाटकर पर लगाए गए जुर्माने की राशि 10 लाख रुपये से घटाकर एक लाख रुपये कर दी और कहा कि जुर्माना अपराध की गंभीरता के अनुपात में नहीं है।
हाल में अदालत ने पाटकर को दोषी ठहराए जाने के मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को बरकरार रखा था।
दिन में करीब 11 बजे जब कार्यवाही शुरू हुई तो पाटकर के वकील ने उनके वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पेश होने का अनुरोध करते हुए एक अर्जी दी। अदालत ने अर्जी स्वीकार ली, जिसके बाद वकील ने सजा के आदेश को चुनौती दी।
अच्छे आचरण का वादा करने पर परिवीक्षा का अनुरोध करते हुए वकील ने कहा कि जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता पाटकर उम्र-संबंधी विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हैं।
सक्सेना ने 24 नवंबर, 2000 को पाटकर द्वारा अपने खिलाफ अपमानजनक प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के लिए ‘नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज’ के अध्यक्ष के रूप में मामला दायर किया था।
पिछले साल 24 मई को, एक मजिस्ट्रेट अदालत ने पाया था कि पाटकर द्वारा सक्सेना को ‘कायर’ कहने और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाने वाले बयान न केवल अपमानजनक थे, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणा बनाने के लिए भी दिए गए थे।
अदालत ने कहा था कि यह आरोप भी सक्सेना की ईमानदारी और जनसेवा पर सीधा हमला था कि वह गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए ‘गिरवी’ रख रहे थे।
सजा पर बहस 30 मई को पूरी हो गई थी, जिसके बाद सजा पर फैसला सात जून को सुरक्षित रखा गया था।
अदालत ने एक जुलाई को पाटकर को पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी, जिसके बाद उन्होंने ने एक सत्र अदालत में अपील दायर की।
भाषा आशीष