द्रमुक ने न्यायालय के फैसले को सराहा, कहा-राज्यपाल सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति नहीं रह गए
पारुल प्रशांत
- 08 Apr 2025, 09:21 PM
- Updated: 09:21 PM
चेन्नई, आठ अप्रैल (भाषा) द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने तमिलनाडु में राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखे गए 10 विधेयकों को मंजूरी देने और राज्य विधानसभाओं की ओर से पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपालों के वास्ते समयसीमा तय करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का मंगलवार को स्वागत किया।
द्रमुक कार्यकर्ताओं ने पटाखे फोड़कर और मिठाइयां बांटकर फैसले का जश्न मनाया। सरकारी सूत्रों ने संकेत दिए कि शीर्ष अदालत द्वारा स्वीकृत माने गए विधेयकों को राजपत्र में अधिसूचित करने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू की जाएगी।
द्रमुक के वरिष्ठ नेता आर.एस. भारती ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले के अनुसार राज्यपाल रवि अब सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति नहीं रह गए हैं।
भारती ने राज्यपाल पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर वह आज रात राज भवन से चले जाते हैं तो यह माना जा सकता है कि वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति हैं क्योंकि आजादी के बाद पिछले सात दशक में अदालत ने किसी भी राज्यपाल के खिलाफ ऐसा फैसला नहीं सुनाया है।
द्रमुक नेता ने आरोप लगाया कि रवि ने विधेयकों को मंजूरी न देकर विपक्षी दल से भी ज्यादा विरोधी भूमिका निभाई और दुश्मन की तरह व्यवहार किया।
यह पूछे जाने पर कि क्या फैसले के मद्देनजर मुख्यमंत्री राज्य संचालित विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होंगे या सरकार कुलपतियों की नियुक्ति करेगी, द्रमुक के राज्यसभा सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने कहा कि ये 10 विधेयक राज्यपाल को उन विश्वविद्यालयों से हटाने के लिए थे, जहां के वे कुलाधिपति थे।
विल्सन ने कहा कि ये 10 विधेयक इसलिए आवश्यक हो गए थे, क्योंकि राज्यपाल कुलपतियों की नियुक्ति सहित अन्य कार्यों में अड़चन डाल रहे थे। उन्होंने कहा कि रवि ने सजा माफी और लोक सेवा आयोग में नियुक्तियों से जुड़े मामलों को लटकाए रखा था, जिसके चलते सर्वोच्च न्यायालय में मामला दायर करना पड़ा।
द्रमुक सांसद ने कहा, “उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार इन विधेयकों को राज्यपाल द्वारा स्वीकृत माना जाएगा और इसलिए राज्यपाल आज से उस (कुलाधिपति) पद से मुक्त हो गए हैं।”
उन्होंने कहा कि विधेयकों के प्रावधानों के अनुसार तमिलनाडु सरकार की ओर से नामित व्यक्ति कुलाधिपति होगा।
शीर्ष अदालत ने जिन 10 विधेयकों को राज्यपाल द्वारा स्वीकृत माने जाने का फैसला सुनाया, उनमें से दो राज्य की पिछली अन्नाद्रमुक सरकार (2016-21) में, जबकि बाकी मौजूदा द्रमुक सरकार में पारित हुए थे। राज्यपाल रवि ने इन विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद नवंबर 2023 में तमिलनाडु विधानसभा ने इन विधेयकों को एक बार फिर पारित कर राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा था। हालांकि, रवि ने इन्हें राष्ट्रपति के विचारार्थ रोक दिया था।
तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष एम. अप्पावु ने बताया कि ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) के शासन में जो दो विधेयक पारित हुए थे, उनमें तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय का नाम बदलकर डॉ. जे जयललिता मत्स्य विश्वविद्यालय करने के प्रावधान वाला विधेयक भी शामिल है।
राज्यपाल/केंद्र सरकार के शीर्ष अदालत के फैसले को चुनौती देने की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर विल्सन ने कहा, “वे जो भी याचिका दायर करेंगे, हम उसका विरोध करेंगे।”
इस सवाल पर कि राष्ट्रपति ने तमिलनाडु को नीट (राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा) आधारित दाखिले से छूट देने संबंधी विधेयक को मंजूरी देने से मना कर दिया था, विल्सन ने कहा कि मौजूदा फैसले का राष्ट्रीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा से कोई लेना-देना नहीं है।
उन्होंने कहा कि फैसले में नीट विरोधी विधेयक के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है, लेकिन इससे पैदा संभावनाओं को देखते हुए राष्ट्रपति के उक्त विधेयक को मंजूरी न देने के निर्णय को चुनौती दी जा सकती है।
विल्सन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, “मैं संविधान और लोकतंत्र को बरकरार रखने तथा राज्यों के अधिकारों एवं स्वायत्तता की पुष्टि करने वाले आज के ऐतिहासिक फैसले के लिए भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आभार जताता हूं। मैं इस मुकदमे में पैरवी की जिम्मेदारी मुझे सौंपने के लिए अपने नेता तमिलनाडु के माननीय मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन को धन्यवाद देता हूं। मैं इस मामले में उपस्थित होने और अपना बहुमूल्य समय एवं ऊर्जा देने के लिए अपने विद्वान साथियों-वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, अभिषेक मनु सिंघवी और राकेश द्विवेदी को धन्यवाद देता हूं।”
भाषा पारुल