ग्रेट निकोबार परियोजना के कारण एक भी आदिवासी विस्थापित नहीं होगा : सरकार
अविनाश सुभाष
- 12 Mar 2025, 07:44 PM
- Updated: 07:44 PM
नयी दिल्ली, 12 मार्च (भाषा) जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल उरांव ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि ग्रेट निकोबार परियोजना के कारण कोई पर्यावरणीय प्रभाव नहीं पड़ेगा और एक भी आदिवासी विस्थापित नहीं होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि यह परियोजना अपनी रणनीतिक स्थिति की वजह से देश के लिए महत्वपूर्ण है।
उरांव उच्च सदन में प्रश्नकाल के दौरान पूरक प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। इस दौरान कई विपक्षी सदस्यों ने परियोजना के कारण विस्थापित होने वाले आदिवासियों से संबंधित प्रश्न का लिखित उत्तर नहीं दिए जाने पर आपत्ति जताई।
मंत्री ने कहा कि चीन हंबनटोटा (श्रीलंका) में बैठा है। उन्होंने कहा कि ऐसे में ‘‘भारत अपनी भूमि क्यों छोड़े।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह परियोजना देश के हित में सामाजिक-आर्थिक और व्यावसायिक रूप से बहुत अहम है। हम समुद्री मार्ग से मात्र 40 किलोमीटर दूर हैं। इसलिए हम इसे नहीं छोड़ सकते।’’
तृणमूल कांग्रेस सदस्य साकेत गोखले और कांग्रेस के जयराम रमेश ने सवाल किया कि मंत्री ने प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं दिया। गोखले ने ग्रेट निकोबार परियोजना के लिए दी गई पर्यावरण और वन मंजूरी के स्थानीय आदिवासी समुदायों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा जतायी गयी चिंताओं पर की गई कार्रवाई के बारे में पूछा था।
गोखले ने यह भी कहा कि दुनिया में शोम्पेन जनजाति के केवल 229 सदस्य हैं।
उरांव ने कहा कि सुनामी के बाद कई आदिवासी द्वीप से चले गए थे। उन्होंने बताया कि अधिकरण के फैसले के बाद एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है और एनजीटी के आदेशों के अनुसार काम किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘आप मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, मैं पोस्को जैसी कंपनी के पीछे पड़ा हुआ था। नरेन्द्र मोदी सरकार कभी आदिवासियों के खिलाफ नहीं जाएगी। एक भी आदिवासी को विस्थापित नहीं किया जा रहा है और पर्यावरण पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। हम अदालत के आदेश के अनुसार काम कर रहे हैं।’’
मंत्री ने जोर देकर कहा, ‘‘इससे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह दोनों पक्षों के लिए लाभ वाली स्थिति है और इस परियोजना से केवल लाभ ही होगा।’’
उरांव ने कहा कि उन्होंने जनजातीय कार्य मंत्री के तौर पर व्यक्तिगत रूप से शोम्पेन, जारवा, अंडमानी और ग्रेट अंडमानी लोगों से मुलाकात की और उनसे बातचीत की।
मंत्री ने कहा, ‘‘इस परियोजना के कारण किसी को कोई नुकसान नहीं होगा, मैं आपको आश्वासन देता हूं। किसी को भी विस्थापित नहीं किया जा रहा है। केवल 7.144 वर्ग किलोमीटर आदिवासी आरक्षित क्षेत्र का उपयोग किया जाएगा और परियोजना के कारण किसी को भी विस्थापित नहीं किया जा रहा है...। यह मुद्दा उच्च न्यायालय में लंबित है।’’
रमेश ने दावा किया, ‘‘ग्रेट निकोबार मेगा इंफ्रा प्रोजेक्ट एक पर्यावरणीय और मानवीय आपदा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया है क्योंकि दावा किया गया है कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है।’’
उन्होंने सदन का ध्यान सभापति द्वारा 21 जुलाई 2023 को दिए गए फैसले की ओर आकृष्ट किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह सदन कुछ सीमाओं के साथ हर चीज पर चर्चा कर सकता है।
रमेश ने दावा किया, ‘‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया और मैं अनुरोध करता हूं कि इसका उत्तर बाद में दिया जाए, क्योंकि यह ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना पर्यावरणीय और मानवीय आपदा है।’’
बाद में, रमेश ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘आज, ग्रेट निकोबार मेगा इंफ्रा प्रोजेक्ट पर राज्यसभा में उठाए गए एक महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर इस आधार पर नहीं दिया गया कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है।’’
भाषा अविनाश