दूषित जल से देश के मत्स्य पालन क्षेत्र को सालाना 2.2 अरब डॉलर का नुकसान : अध्ययन
राजेश राजेश अजय
- 12 Mar 2025, 06:57 PM
- Updated: 06:57 PM
नयी दिल्ली, 12 मार्च (भाषा) भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र को जलमार्गों को दूषित करने वाले बगैर उपचार वाले (अनट्रीटेड) दूषित जल के कारण दो अरब डॉलर से अधिक का नुकसान होता है। बुधवार को प्रकाशित एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि खराब दूषित जल प्रबंधन के कारण दूषित पेयजल से होने वाले अतिसार से देश को सालाना 24.6 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है।
जापान में विश्व महासागर शिखर सम्मेलन में महासागर स्वास्थ्य पहल बैक टू ब्लू और ओशन सीवेज अलायंस द्वारा पेश किए गए इस अध्ययन में ब्राजील, भारत, केन्या, फिलिपीन और ब्रिटेन में दूषित जल प्रबंधन में निष्क्रियता की उच्च लागत पर प्रकाश डाला गया है।
अनुपचारित (अनट्रीटेड) या खराब तरीके से उपचारित दूषित जल, प्रदूषण और बीमारी का एक प्रमुख स्रोत है। जब यह नदियों, महासागरों और पेयजल आपूर्ति प्रणाली में प्रवेश करता है तो परिणाम गंभीर होते हैं।
पांच देशों में से भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र इससे सबसे अधिक प्रभावित है, जो सालाना अपने आर्थिक मूल्य का 5.4 प्रतिशत (2.2 अरब डॉलर) गंवा देता है, उसके बाद केन्या (5.1 प्रतिशत) का स्थान है।
चूंकि भारत समुद्री खाद्य पदार्थों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, इसलिए यह घरेलू खाद्य सुरक्षा और निर्यात बाजार दोनों के लिए खतरा है।
इसके साथ ही, अध्ययन में शामिल देशों में भारत दूषित पेयजल से जुड़े अतिसार से सबसे अधिक स्वास्थ्य देखभाल खर्च उठाता है।
ब्राजील को गंभीर कृषि प्रभावों का सामना करना पड़ता है क्योंकि सोयाबीन जैसी फसलें मिट्टी की लवणता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती हैं, जो अनुपचारित अपशिष्ट जल से सिंचाई करने से और भी खराब हो जाती है।
अध्ययन में कहा गया है कि भारत को कम मिट्टी की लवणता के कारण कम आनुपातिक नुकसान का सामना करना पड़ता है, लेकिन फिर भी उसे सबसे अधिक राजस्व हानि (1.2 अरब डॉलर) होती है।
विकासशील देशों में लगभग 10 प्रतिशत कृषि भूमि कच्चे या आंशिक रूप से उपचारित दूषित जल से सिंचित होती है, जिसमें अक्सर जिंक, क्रोमियम, मैंगनीज और आयरन जैसी जहरीली भारी धातुएं होती हैं। जबकि नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे अपशिष्ट जल पोषक तत्व शुरू में फसल की पैदावार को बढ़ा सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक उपयोग से मिट्टी में लवणता और कम पैदावार होती है।
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) में स्थायी जल के लिए वरिष्ठ कार्यक्रम प्रमुख नितिन बस्सी ने कहा कि उपचार क्षमता का विस्तार करना महत्वपूर्ण है, ‘‘हमें पानी की गुणवत्ता और पानी की उपयोग योग्य मात्रा दोनों में सुधार करने की आवश्यकता है। यदि अधिक छूषित जल को संग्रहीत, उपचारित और पुनः उपयोग किया जा सके, तो इससे हमारे मीठे जल संसाधनों पर दबाव कम होगा।
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