शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद ने वक्फ विधेयक पर संसदीय समिति की प्रक्रिया को ‘‘दिखावा’’ बताया
अमित नरेश
- 10 Mar 2025, 09:43 PM
- Updated: 09:43 PM
नयी दिल्ली, 10 मार्च (भाषा) शिया धर्मगुरु मौलाना सैयद कल्बे जवाद ने सोमवार को आरोप लगाया कि वक्फ विधेयक पर सुझाव जुटाने के लिए संसद की संयुक्त समिति द्वारा अपनायी गई प्रक्रिया एक ‘‘दिखावा’’ थी।
जवाद ने कहा कि प्रस्तावित विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे ताकि मुसलमानों के अधिकारों पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को उजागर किया जा सके।
उन्होंने वक्फ के महत्व और इस्लाम के धार्मिक सिद्धांतों में उनके विशेष महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने साथ ही सभी मौजूदा वक्फ को विधेयक के पीछे छिपे "धोखेबाज और दुर्भावनापूर्ण इरादों" और इसकी पड़ताल करने वाली संसद की संयुक्त समिति से बचाने की आवश्यकता पर जोर भी दिया।
जवाद कनाती मस्जिद (जोर बाग) के शाही इमाम मौलाना सैयद मोहम्मद कासिम जैदी और अंजुमन ए हैदरी के महासचिव सैयद बहादुर अब्बास नकवी के साथ एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
जवाद ने दावा किया कि वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 के अनुसार, संशोधन से पहले या बाद में वक्फ संपत्ति के रूप में पहचानी गई किसी भी सरकारी संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘इस संबंध में किसी भी विवाद का निर्णय कलेक्टर द्वारा किया जाएगा और जब तक कलेक्टर विवाद का समाधान नहीं कर देते, तब तक संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। हालांकि, यह देखा गया है कि हुसैनाबाद ट्रस्ट के वक्फ का प्रबंधन लखनऊ में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है, जो स्वयं वक्फ संपत्तियों को हड़पने में शामिल हैं।’’
जवाद ने कहा कि विधेयक के खिलाफ देशव्यापी अभियान चलाया जाएगा और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि ये विरोध प्रदर्शन विधेयक के निहितार्थों पर विस्तार से चर्चा करने पर केंद्रित होंगे, जिसका लक्ष्य लोगों को शिक्षित करना है।
जवाद ने कहा, "इसका उद्देश्य इस बारे में जागरूकता बढ़ाना होगा कि विधेयक मुस्लिम समुदाय के अधिकारों और जीवन को कैसे प्रभावित कर सकता है। यह सभी क्षेत्रों के समुदायों को शामिल करने का भी प्रयास करेगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी को विधेयक के संभावित परिणामों को समझने और अपना पक्ष रखने का मौका मिले।’’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विधेयक पर आपत्तियों और सुझावों के लिए संयुक्त समिति का निमंत्रण कुछ और नहीं बल्कि "दिखावा था, और पूरी कवायद महज दिखावा थी।’’
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