जलवायु परिवर्तन और प्रबल हो रहा, भविष्य मे बढ़ते तापमान में ला नीना शायद ही प्रभावी हो : वैज्ञानिक
धीरज प्रशांत
- 09 Mar 2025, 04:49 PM
- Updated: 04:49 PM
(कृष्णा)
नयी दिल्ली, नौ मार्च (भाषा) वैज्ञानिकों ने आगाह करते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन अधिक तेजी और प्रबल तरीके से हो रहा है और भविष्य में बढ़ते तापमान की वजह से बहुत संभव है कि शीतलन का कार्य करने वाली धारा ला नीना प्रभावी नहीं हो।
वैज्ञानिकों ने देश के बड़े हिस्से में वर्तमान गर्मी की प्रवृत्ति का आकलन करते हुए यह चेतावनी दी है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस वर्ष समय से पहले गर्मी पड़ने, सामान्य से अधिक तापमान तथा तीव्र व लंबे समय तक लू चलने की भविष्यवाणी की है।
आईएमडी के मुताबिक देश में 1901 के बाद से इस साल सबसे गर्म फरवरी दर्ज किया गया और 2001 के बाद से पिछले महीने पांचवीं सबसे कम वर्षा हुई।
वैज्ञानिकों ने कहा कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन तेजी से गर्म सर्दियों और छोटे वसंत द्वारा चिह्नित एक नयी सामान्य स्थिति को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने मौसम की इस प्रवृत्ति में वार्षिक परिवर्तनों की ओर भी ध्यान आकर्षित कराया, जिन्हें ‘वर्ष-दर-वर्ष परिवर्तनशीलता’ कहा जाता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बंबई के जलवायु अध्ययन केंद्र की एसोसिएट प्रोफेसर अर्पिता मंडल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘उदाहरण के लिए, इस वर्ष आईएमडी की अद्यतन जानकारी से पता चलता है कि यह असामान्य रूप से शुष्क सर्दी थी।’’
उन्होंने बताया कि बारिश एक प्राकृतिक शीतलन प्रक्रिया है जो तापमान को कम करने में मदद करती है।
आईआईटी बंबई में पृथ्वी प्रणाली वैज्ञानिक और प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड्डे ने कहा, ‘‘मैं दिसंबर-फरवरी के दौरान गर्म और सर्द तापमान विसंगतियों (अपेक्षित परिपाटी से विचलन) की एक वैश्विक लहर देख रहा हूं जो जेट धाराओं के उतार-चढ़ाव से संबंधित हैं।’’
जेट धाराएं वायुमंडल के ऊपरी स्तरों में बहने वाली तेज हवाएं हैं जो उत्तर और दक्षिण की ओर घूमकर मौसम को प्रभावित करती हैं।
मंडल ने कहा, ‘‘हमारे अध्ययन में पाया गया है कि मानसून पूर्व के दौरान इन हवाओं में उत्तर की ओर बदलाव हो रहा है जो सीधे तौर पर हीटवेव की प्रकृति, जैसे इसकी अवधि और तापमान से जुड़ा हुआ है।’’
आईआईटी गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग के चेयर प्रोफेसर विमल मिश्रा ने कहा कि इसके अलावा, अल नीनो और ला नीना - ‘ईएनएसओ’ (अल नीनो-दक्षिणी दोलन एक आवर्ती जलवायु परिपाटी है जिसमें मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में पानी के तापमान में परिवर्तन शामिल है) भी समग्र प्रवृत्तियों में योगदान करते हैं।
मिश्रा ने कहा, ‘‘अतः अल नीनो जैसी परिस्थितियों में, आपको सर्दियों के तुरंत बाद गर्म वसंत या गर्म तापमान देखने को मिलेगा, जबकि यदि ला नीना प्रबल होता है, तो आपको अधिक संख्या में ठंडे दिन देखने को मिलेंगे।’’
विश्व का अधिकांश मौसम ‘अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ (ईएनएसओ) से महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होता है, जिसमें प्रशांत महासागर में तापमान और वायुमंडलीय दबाव में परिवर्तन शामिल होता है।
ईएनएसओ चक्र ‘अल नीनो’ - गर्म चरण जो गर्म समुद्री तापमान से जुड़ा होता है - और इसके समकक्ष ‘ला नीना’ के बीच दोलन करता है, जो हर बार एक तटस्थ चरण के माध्यम से संक्रमण करता है। एक चक्र आम तौर पर 2-7 वर्षों के बीच रहता है।
इस सप्ताह, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अधिसूचित किया कि दिसंबर 2024 में उभरने वाला ‘कमजोर’ ला नीना के ‘अल्पकालिक’ होने की संभावना है। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने मई 2024 में शुरू होने वाली ईएनएसओ (तटस्थ स्थितियों के बाद जुलाई-सितंबर के दौरान) ला नीना के उभरने की 60 प्रतिशत संभावना का अनुमान लगाया था।
यूरोप की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा ने इस सप्ताह बताया कि मार्च 2024-फरवरी 2025 के दौरान तापमान 1990-2020 के औसत से 0.71 डिग्री सेल्सियस अधिक और पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.59 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
इसमें कहा गया है कि कई महासागरीय तलों और समुद्री सतह का तापमान असामान्य रूप से ऊंचा बना हुआ है।
मुर्तुगुडे ने कहा, ‘‘यह वास्तव में ला नीना नहीं है। उष्णकटिबंधीय प्रशांत (महासागर) में कुछ ठंडे पानी हैं, लेकिन महत्वपूर्ण पूर्वी प्रशांत में, कुछ गर्म विसंगतियां बनी हुई हैं। और यह दिसंबर-फरवरी के दौरान चरम पर होने के बजाय, वर्ष के अंत में ही उभरी हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ यह प्रवृत्ति थोड़ी अप्रत्याशित हैं, लेकिन संभवतः 2023 के रिकॉर्ड तापमान वृद्धि से संबंधित हैं, जो अब भी जारी है। हमने अभी तक तापमान वृद्धि के स्तर की व्याख्या नहीं की है।’’
अध्ययनों से यह अनुमान लगाया गया है कि भविष्य में तापमान बढ़ने से अल नीनो की घटनाएं अधिक सामान्य और तीव्र हो जाएंगी, तथा इनमें से प्रत्येक दो घटनाएं अत्यंत चरम पर होंगी।
आईएमडी के मुताबिक भारत में 2024 की गर्मियों के दौरान विभिन्न मौसम संभागों में दर्ज किये गए कुल लू वाले दिनों की संख्या 14 वर्षों में सबसे अधिक है, तथा उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 1901 के बाद से सबसे गर्म जून महीना दर्ज किया गया।
मिश्रा ने कहा, “सबसे मजबूत, महत्वपूर्ण संकेत जलवायु परिवर्तन का है। इसलिए, ईएनएसओ (तटस्थ परिस्थितियों में भी) जो इस वर्ष बहुत अधिक संभावित है हम नजरअंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि मार्च में ही हमने काफी गर्म तापमान का सामना करना शुरू कर दिया है।’’
मिश्रा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के तहत, ‘‘अल नीनो हमारे लिए बहुत सारी समस्याएं पैदा करेगा, लेकिन ला नीना हमें राहत देने में सक्षम नहीं हो सकता है।’’
भाषा धीरज