जैन समुदाय को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत लाभ देना उचित या अनुचित : मप्र उच्च न्यायालय कर रहा विचार
हर्ष नोमान मनीषा
- 18 Feb 2025, 05:02 PM
- Updated: 05:02 PM
इंदौर, 18 फरवरी (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय इस मसले पर विचार कर रहा है कि जैन समुदाय को वर्ष 2014 के दौरान अल्पसंख्यक का सरकारी दर्जा मिलने के बाद वैवाहिक विवादों से जुड़े मामलों में इस धर्म के लोगों को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत लाभ दिया जाना कानूनन उचित है या नहीं?
इंदौर के कुटुम्ब न्यायालय के एक फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दिए जाने से उठे सवालों को लेकर अदालत ने इस विषय पर विचार शुरू किया है।
इस फैसले में कुटुम्ब न्यायालय के एक अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने जैन समुदाय के 37 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर और उसकी 35 वर्षीय पत्नी के आपसी सहमति से तलाक लेने की अर्जी को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत स्वीकार करने से आठ फरवरी को इनकार कर दिया था।
कुटुम्ब न्यायालय ने कहा था कि जैन समुदाय को 2014 में अल्पसंख्यक का सरकारी दर्जा मिलने के बाद इस धर्म के किसी अनुयायी को ‘‘उसके धर्म से विपरीत मान्यताओं वाले किसी धर्म’’ से संबंधित व्यक्तिगत कानून का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने कुटुम्ब न्यायालय के इस फैसले को उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में अपील दायर करके चुनौती दी है।
अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति गजेंद्र सिंह ने सोमवार को कहा कि पक्षकारों के वकीलों के मुताबिक, इस याचिका में उठाए गए मसले पर किसी भी न्यायालय द्वारा फैसला नहीं किया गया है।
युगल पीठ ने कहा, ‘‘न्यायालय में उपस्थित कुछ वकीलों का कहना है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत दायर 28 याचिकाओं को कुटुम्ब न्यायालय के प्रथम अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश द्वारा खारिज कर दिया गया है और ऐसे कुछ मामलों में उच्च न्यायालय के समक्ष पहले ही अपील दायर की जा चुकी है।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि जब तक वह इस मसले पर कोई निर्णय नहीं सुना देता, तब तक कुटुम्ब न्यायालय को उसके सामने लंबित याचिकाओं को महज इस आधार पर खारिज करने से रोका जाता है कि जैन समुदाय के लोगों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत लाभ नहीं दिया जा सकता।
उच्च न्यायालय ने इस मसले को सुलझाने में अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ वकील ए के सेठी को न्यायमित्र नियुक्त किया और अगली सुनवाई के लिए 18 मार्च की तारीख तय की।
जैन समुदाय के सॉफ्टवेयर इंजीनियर और उसकी पत्नी ने कुटुम्ब न्यायालय में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत 2024 में अर्जी दायर करके आपसी सहमति से तलाक की अनुमति चाही थी। इस दम्पति का विवाह 2017 में हुआ था और उन्होंने वैचारिक मतभेदों व दाम्पत्य संबंध स्थापित नहीं होने के कारण लम्बे समय से अलग-अलग रहने का हवाला देते हुए तलाक की अर्जी दायर की थी।
कुटुम्ब न्यायालय ने इस अर्जी पर आठ फरवरी को पारित आदेश में कहा था कि सरकार द्वारा जैन समुदाय को 27 जनवरी 2014 को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने की अधिसूचना जारी होने के बाद इस धर्म के अनुयायियों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत राहत प्राप्त करने का कोई अधिकार शेष नहीं रहा है।
कुटुम्ब न्यायालय ने हालांकि अपने फैसले में यह बात जोड़ी थी कि जैन धर्म का कोई भी अनुयायी अपने किसी वैवाहिक विवाद के मामले को कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम की धारा सात के तहत निराकरण के लिए उसके सामने प्रस्तुत करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है।
कुटुम्ब न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ जैन समुदाय के सॉफ्टवेयर इंजीनियर द्वारा उच्च न्यायालय में दायर अपील में दलील दी गई है कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा दो के तहत इस कानून के प्रावधान जैन, बौद्ध और सिख धर्मों का पालन करने वाले लोगों पर भी लागू होते हैं।
अपील में कहा गया है कि कुटुम्ब न्यायालय ने जैन दम्पति की तलाक की अर्जी कानूनी प्रावधानों और अपने अधिकार क्षेत्र के खिलाफ जाकर निरस्त की है।
भाषा हर्ष नोमान