मेरे घर में संगीत सिर्फ कला नहीं था, जीवन जीने का तरीका था: हरिहरन
वैभव मनीषा
- 28 Nov 2024, 02:30 PM
- Updated: 02:30 PM
नयी दिल्ली, 28 नवंबर (भाषा) मुंबई में पले-बढ़े मशहूर गायक हरिहरन अपने बचपन में अक्सर रागों के स्वरों, हवा में चाय की खुशबू और परिवार में कर्नाटक संगीत की धुनों पर गहन चर्चाओं के बीच जागते थे।
उनके लिए घर की चार दीवारों के बाहर की दुनिया भी कुछ ऐसी ही थी, जिसके केंद्र में संगीत था। क्योंकि मुंबई शहर ने हरिहरन को मंदिरों में भजनों की धुनों, गणेश चतुर्थी के दौरान सड़क पर होने वाली प्रस्तुतियों, बॉलीवुड के आकर्षण और शास्त्रीय संगीत समारोहों से परिचित कराया।
शास्त्रीय संगीतज्ञ एच ए एस मणि और अलामेलु मणि के घर 1955 में जन्मे हरिहरन के लिए संगीत एक स्वाभाविक पसंद की तरह था।
हरिहरन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘मेरे घर में संगीत सिर्फ कला नहीं था, यह जीवन जीने का एक तरीका था। शास्त्रीय संगीतज्ञों के परिवार में जन्म लेना और बड़ा होना एक आशीर्वाद की तरह था, जिसे मैं बचपन में पूरी तरह से समझ नहीं पाया था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी शुरुआती यादें सुबह के शुरुआती घंटों में रियाज के दौरान रागों के स्वरों और हवा में फैलती चाय की खुशबू से भरी हैं।’’
वह 30 नवंबर को मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में अपने ‘50-ईयर लीगेसी कॉन्सर्ट’ के साथ संगीत में अपने पांच दशक के शानदार करियर का जश्न मना रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह जुनून, दृढ़ता और अपने दर्शकों के साथ गहरे जुड़ाव की यात्रा रही है। संगीत उद्योग में 50 वर्षों की यात्रा को याद करना अवास्तविक लगता है। यह संगीत कार्यक्रम उतना मेरी विरासत को सम्मान देने के लिए नहीं है, जितना मेरे श्रोताओं के साथ मेरे अविश्वसनीय लगाव का जश्न है।’’
हरिहरन ने कहा कि उनका प्रारंभिक शास्त्रीय संगीत प्रशिक्षण, फिल्म संगीत, गजल, भजन और उनके फ्यूजन बैंड ‘कोलोनियल कजिन्स’ में भविष्य के उपक्रमों के लिए एक आधार बन गया।
उन्होंने कहा, ‘‘इसने मुझे प्रयोग करने, शैलियों का मिश्रण करने और संगीत की दुनिया के अनुकूल होने का आत्मविश्वास दिया। उदाहरण के लिए, फिल्म संगीत को ही ले लीजिए। इसके लिए विविधता की आवश्यकता होती है; एक दिन आप कोई रूमानी धुन गा रहे होते हैं, और अगले दिन, आप एक जोश वाला गीत प्रस्तुत कर रहे होते हैं। शास्त्रीय प्रशिक्षण ने मुझे उन बदलावों को सहजता से करने में मदद की।’’
गायक ने 1978 में मुजफ्फर अली की ‘गमन’ में ‘अजीब सा नेहा’ गीत के साथ अपने पार्श्व गायन करियर की शुरुआत की और उसके बाद फिल्म संगीत ने उनके करियर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लेकिन फिल्मों में गाना शुरू करने से पहले, वह 1974 से ही टेलीविजन पर गजल गा रहे थे।
हरिहरन ने कई भाषाओं की फिल्मों में कुछ सबसे यादगार गाने गाए हैं, जिनमें “रोजा”, “जींस”, “हमसे है मुकाबला”, “बॉम्बे”, “रंगीला”, “खामोशी: द म्यूजिकल”, “माचिस”, “दिल तो पागल है”, “जिद्दी”, “इरुवर”, “ताल”, “गुरु”, “एंथिरन”, “शिवाजी”, और “सीता रामम” हैं।
पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित हरिहरन ने कहा, “मेरे और मेरे करियर के लिए, फिल्म संगीत निश्चित रूप से एक पड़ाव था, लेकिन यह अन्य शैलियों - गजल, भजन, फ्यूजन संगीत और लाइव प्रस्तुतियों में मेरा प्रवेश भी था जिससे मुझे एक विरासत बनाने में मदद मिली।”
उन्होंने कहा, ‘‘मुंबई ने मुझे हर दिन बेहतर बनने के लिए प्रेरित किया और इतने सालों बाद भी यह प्रेरणा मुझे रास्ता दिखाती रही है।’’
हरिहरन ने कहा कि मुंबई की विविधता और समावेश के गुण ने उन्हें प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया।
हरिहरन के सबसे लोकप्रिय भजनों में से एक, गुलशन कुमार के साथ ‘हनुमान चालीसा’ यूट्यूब पर सबसे अधिक देखे-सुने जाने वाले भक्ति गीतों में से एक है, जिसे चार अरब से ज्यादा बार देखा गया है।
वह एक मशहूर ग़ज़ल गायक भी हैं। आशा भोसले के साथ ‘आबशार-ए-गजल’ के अलावा ‘काश’ और ‘लफ़्ज़’ सहित उनके ग़ज़ल एल्बम ने उन्हें यह पहचान दिलाई।
दिल्ली में होने वाला कॉन्सर्ट दर्शकों को उनके शानदार करियर की यादों में ले जाएगा, जिसमें उनकी प्रतिष्ठित ग़ज़लें, बॉलीवुड के हिट गीत और शास्त्रीय प्रस्तुतियां शामिल होंगी।
वह अपने बैंड ‘सोल इंडिया’ के साथ लाइव गायन को लेकर भी उत्सुक हैं और उन्हें उम्मीद है कि वह संगीत की सभी अलग-अलग विधाओं को एक साथ लाएंगे, चाहे वो फिल्मी गाने हों, ग़ज़ल हों या भजन हों।
भाषा वैभव