अमेरिका के साथ एफटीए की कोशिश कर भारत सही काम कर रहा: मोंटेक
रमण अजय
- 13 Nov 2025, 09:36 PM
- Updated: 09:36 PM
नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) पूर्ववर्ती योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने बृहस्पतिवार को अमेरिका के साथ शुल्क मुद्दे से निपटने के सरकार के तरीके की सराहना करते हुए कहा कि अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर करना ‘सही कदम’ होगा।
अहलूवालिया ने यहां प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय (पीएमएमएल) में दिवंगत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जीवन और विरासत पर व्याख्यान देते हुए सरकारी पदों पर निजी क्षेत्र से युवाओं के लाने (लैटरल एंट्री) का समर्थन किया। उन्होंने इस संदर्भ में देश में आधार लागू करने के लिए निजी क्षेत्र से लाए गए नंदन नीलेकणि का उदाहरण दिया।
अहलूवालिया ने कहा कि ‘विकसित भारत’ का विचार तब तक साकार नहीं हो सकता जब तक मानव संसाधनों से उचित तरीके से निपटा नहीं जाता।
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोग सरकार की यह कहकर आलोचना करते हैं कि अमेरिका शुल्क पर सख्त रुख अपना रहा है और हमें भी उसी तरह सख्त रुख अपनाना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि यह वास्तव में सही है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दरअसल, हम मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने की जो कोशिश कर रहे हैं, वह बहुत अच्छी बात है। कुछ लोगों को लगता है कि यह सही कदम है।’’
अहलूवालिया ने कहा कि नीति इस तरह से तैयार करना जरूरी है कि मतभेद सौहार्दपूर्ण ढंग से समाप्त हो जाए।
उन्होंने कहा कि नीति बनाने के तरीके में हमेशा मतभेद रहेंगे, ‘‘लेकिन सबसे अच्छा तरीका यही है कि लोगों को उन मतभेदों को मिटाने और उन पर चर्चा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।’’
देश में आधार लागू करने के लिए निजी क्षेत्र से लाए गए नंदन नीलेकणि का उदाहरण देते हुए, अहलूवालिया ने कहा कि भविष्य में जब हमारे पास कृत्रिम मेधा (एआई) और साइबर सुरक्षा जैसी जटिल चीजें होंगी, तो यह सामान्य तरीके से नहीं किया जा सकेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘आपको बाहर से और युवाओं को लाना चाहिए। मुझे लगता है कि किसी को नंदन नीलेकणि और उनकी सफलता पर एक अध्ययन करनी चाहिए।’’
अहलूवालिया ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हम इस तथ्य को कम आंक रहे हैं कि हम अपने मानव संसाधनों का उचित उपयोग नहीं कर रहे हैं। अब, इसके बारे में क्या किया जाए, यह एक अलग मामला है। लेकिन, जो भी इससे निपटेगा, वह ‘विकसित भारत’ तक पहुंचने की आधी समस्याओं का समाधान कर लेगा। अगर हम इससे नहीं निपटेंगे, तो हम वहां तक नहीं पहुंच पाएंगे।’’
उन्होंने यह भी कहा कि ये शुल्क और कर दरों को कम करने जैसे सामान्य सुधार नहीं हैं, बल्कि ये बड़े संस्थागत बदलाव हैं।
भाषा रमण