कोविड-19 टीका पर याचिका: न्यायालय ने ब्रिटिश आंकड़ों पर भरोसा करने के लिए याचिकाकर्ताओं से किए सवाल
संतोष नरेश
- 13 Nov 2025, 08:20 PM
- Updated: 08:20 PM
नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) आप ब्रिटेन द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर भरोसा करते हैं, लेकिन भारत सरकार के आंकड़ों पर नहीं। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को सवालिया अंदाज में यह टिप्पणी याचिकाकर्ताओं के उसे दावे पर की जिसमें कहा गया है कि अधिकारियों ने कोविड-19 के टीके के प्रतिकूल प्रभावों के कारण हुई मौतों की संख्या ‘चिंताजनक रूप से कम’ बताई है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें वह याचिका भी शामिल थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि 2021 में कोविड-19 के कोविशील्ड नामक टीके की पहली खुराक लेने के बाद दो महिलाओं की जान चली गई। आरोप लगाया गया था कि टीकाकरण के बाद दोनों को गंभीर प्रतिकूल प्रभावों का सामना करना पड़ा।
शीर्ष अदालत ने मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
एक याचिका में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि ब्रिटेन में भी यही टीका इस्तेमाल किया गया था और भारत में ब्रिटेन की तुलना में 30 गुना अधिक टीके लगाए गए।
उन्होंने टीकाकरण से संबंधित मौतों की संख्या का हवाला देते हुए दावा किया, ‘‘यह अंतर इतना बड़ा है कि ब्रिटेन, जो अपने आंकड़े पारदर्शी तरीके से पेश कर रहा है, और भारत (जो मौतों के आंकड़े छिपा रहा है) के बीच एक चिंताजनक विसंगति प्रतीत होती है।’’
न्यायमूर्ति नाथ ने पूछा, ‘‘आप मानते हैं कि ब्रिटेन ने वेबसाइट पर सारा डेटा सही ढंग से प्रदर्शित किया है और आपके देश ने ऐसा नहीं किया है?’’ गोंजाल्विस ने कहा कि ब्रिटेन का डेटा सही प्रतीत होता है, लेकिन इस बारे में वह गलत भी हो सकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘आप ब्रिटिश सरकार द्वारा अपलोड किए गए डेटा पर भरोसा करते हैं... और आप हमारी सरकार द्वारा अपलोड किए गए डेटा पर भरोसा नहीं करते।’’
गोंजाल्विस ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अनुरोध किया है कि सरकार से स्वतंत्र एक विशेषज्ञ निकाय इसकी जांच करे।
उन्होंने कहा, ‘‘अब मेरे पास भारत सरकार के बारे में कुछ भी कहने का कोई कारण नहीं है क्योंकि जो हो गया सो हो गया... यह जांच के योग्य है। यह इतना गंभीर है कि सरकार से स्वतंत्र एक टीम द्वारा जांच की जानी चाहिए। मैं यही कह रहा हूं।’’
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने याचिका का विरोध किया और कहा कि इस मुद्दे पर पहले ही विचार किया जा चुका है और शीर्ष अदालत ने इस मामले में अपना फैसला सुना दिया है।
उन्होंने दिसंबर 2024 तक भारत में कोविड-19 टीकाकरण के आंकड़ों का भी हवाला दिया। विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘भारत में दी गई कुल खुराकें 220 करोड़ हैं। टीका लगाने से प्रतिकूल प्रभाव (एईएफआई) के कुल मामले 92,697 दर्ज किए गए हैं, जो प्रतिशत में 0.0042 है।’’ उन्होंने आगे कहा कि कुल 1,171 मौतें दर्ज की गईं, जो 0.00005 प्रतिशत है।
भाटी ने कहा कि मामूली संक्रमण के मामले 89,854 थे जबकि गंभीर संक्रमण के मामले 2,843 थे। उन्होंने कहा कि चिकित्सा साहित्य में यह दर्शाया गया है कि महामारी के दौरान टीकों ने मौतों को रोका।
भाटी ने कहा कि भारत में बहुत मजबूत तंत्र है। भाटी ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह सकते कि कोई भी चीज पूरी तरह से सुरक्षित है। हर दवा का कोई न कोई दुष्प्रभाव होता ही है। मुद्दा यह है कि इसका मुझ पर जो प्रभाव पड़ेगा, वह मेरे सहकर्मी पर पड़े प्रभाव जैसा नहीं होगा।’’
उन्होंने कहा कि भारत ने स्वैच्छिक कोविड टीकाकरण की व्यवस्था अपनाई। भाटी ने कहा, ‘‘स्वैच्छिक टीकाकरण के बारे में, मुझे लगता है कि याचिकाकर्ताओं को चीन में रहने का मौका नहीं मिला है ताकि वे वास्तव में अनिवार्य टीकाकरण का मतलब समझ सकें।’’ उन्होंने कहा कि भारत सरकार नागरिकों को टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित करने के साथ उनसे अनुरोध करती रही है।
गोंजाल्विस ने कहा कि कई देशों ने इस कोविड वैक्सीन का इस्तेमाल बंद कर दिया है। उन्होंने कहा कि सरकारी आंकड़ों की तुलना ब्रिटेन के आंकड़ों से करने पर भारत में टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभावों से होने वाली मौतों का आंकड़ा लगभग 33,000 हो सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह पूरी तरह सही नहीं है। मैं बस यह बताने के लिए ऐसा कह रहा हूं कि एक मोटा अनुमान लगाने का एक संभावित तरीका यही है।’’ उन्होंने आगे कहा कि एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति इस पहलू पर विचार कर सकती है।
केंद्र ने पहले उच्चतम न्यायालय को बताया था कि कोविड महामारी ‘एक अलग तरह की आपदा’ थी और टीकाकरण ने लोगों की जान बचाई।
भाषा
संतोष