हाथ से खाना खाने पर वियतनामी व्यक्ति ने बनाया ममदानी को निशाना, खुद के पूर्वज करते थे इसी तरह भोजन
जोहेब नरेश
- 10 Nov 2025, 02:56 PM
- Updated: 02:56 PM
(दिव्या कन्नन, शिव नादर विश्वविद्यालय)
ग्रेटर नोएडा, 10 नवंबर (360इन्फो) हाल ही में हाथ से खाना खाने के लिए न्यूयॉर्क के नए मेयर जोहरान ममदानी का मजाक उड़ाए जाने के मामले ने लंबे समय से चली आ रही औपनिवेशिक मानसिकता को उजागर किया है।
ममदानी ने चुनाव में जीत हासिल कर न्यूयॉर्क शहर के पहले दक्षिण एशियाई मेयर बनने का ऐतिहासिक मुकाम हासिल किया। इस चुनाव पर दुनियाभर की निगाहें टिकी थीं।
इस दौरान, डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और भारतीय मूल के प्रवासियों फिल्म निर्माता मीरा नायर और प्रोफेसर महमूद मामदानी के पुत्र ममदानी को कई प्रकार के हमलों का सामना करना पड़ा, जिनमें छवि धूमिल करने का अभियान भी शामिल था। इसमें उन्हें चावल के व्यंजन को हाथ से खाने के लिए निशाना बनाया गया।
औपनिवेशवाद ने कई पूर्व निर्धारित धारणाओं और मिथकों को जन्म दिया है, मुख्य रूप से जाति और नस्ल से जुड़ी धारणाओं को। इनमें से कुछ आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं, जो यह तय करने में भूमिका निभाते हैं कि हम शरीर, आदतों और हाव-भाव को कैसे आंकते हैं।
ममदानी के हाथों से खाने पर हाल ही में हुए ऑनलाइन विवाद यह दर्शाते हैं कि इस पुरानी सोच की जड़ें समाज में कितनी गहरी हैं और आज भी यह मानसिकता हमारी सोच और व्यवहार को प्रभावित करती है।
जब वियतनामी मूल के रूढ़िवादी अमेरिकी कमेंटेटर विंस दाओ ने सोशल मीडिया पर हाथ से चावल खाने पर ममदानी का मज़ाक उड़ाया, तो सभ्यता, जाति व सांस्कृतिक पहचान पर नए सिरे से बहस छिड़ गई।
इससे यह भी उजागर हुआ कि जो लोग खुद को सच्चे “एशियाई” मानते हैं, उनके बीच भी संघर्ष और विरोधाभास मौजूद हैं।
19वीं सदी के औपनिवेशिक यात्रा-वृत्तांत, सूचनाएं और मानवविज्ञान संबंधी विवरण में अक्सर यह बताया गया है कि एशियाई और अफ्रीकी लोग हाथ या ‘चॉपस्टिक्स’ से भोजन करते हैं। हालांकि यह छवि गंदगी और पिछड़ेपन के नस्लवादी विचारों का केंद्र बन गई।
इससे उनके वैचारिक उद्देश्य को भी बल मिला, जिसमें उन्होंने “आलसी” और “आलसी एशियाई” का मिथक गढ़ा। इन्हें उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले आलसी और अकुशल, चावल से बने आहार खाने वाले और आधुनिकता विरोधी लोग बताया जाता था।
ये मिथक केवल आहार को लेकर नहीं थे, बल्कि मूल रूप से सत्ता और प्रभुत्व से जुड़े थे। इनमें शारीरिक आदतों को सभ्यता और स्वच्छता से जोड़ा गया।
इसके विपरीत, छुरी, कांटे और नैपकिन के प्रति यूरोपीय पसंद को सुधार और परिष्कार का प्रतीक माना जाने लगा। ये बात अलग है कि ये चीजें सोलहवीं सदी से उन्नत यूरोपीय अभिजात वर्ग में प्रचलित हुई थीं, इससे पहले वे किस तरह भोजन करते थे, इसे लेकर कोई खास जानकारी नहीं मिलती है।
ममदानी की वंशावली इस कहानी को और जटिल बनाती है। एशिया और अफ्रीका में ममदानी के पूर्वजों के बीच हाथ से खाना खाने का तरीका लंबे समय से निकटता, सामूहिक भोज और खाने के संवेदी आनंद से जुड़ा रहा है।
अमेरिका में एक अल्पसंख्यक राजनीतिक उम्मीदवार के रूप में, वह इस बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे आसानी से वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
अचरज की बात यह है कि कुछ कंजर्वेटिव एशियाई-अमेरिकियों, जैसे कि दाओ, उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने ममदानी के भोजन करने के इस अंदाज़ से खुद को तुरंत अलग कर लिया। हैरानी की बात इसलिए है कि दाओ खुद भी एशियाई देश वियतनामी मूल के हैं, जहां आज भी हाथ से भोजन करने को बुरा नहीं समझा जाता।
उन्होंने शायद यह दिखाने के लिए ममदानी का मजाक उड़ाया कि वह कितने “उच्च” हैं। हालांकि वह यह भूल गए कि ऐसा करके उन्होंने वही औपनिवेशिक सोच दिखाई, जिनका इस्तेमाल कभी उनके अपने पूर्वजों को नीचा दिखाने के लिए किया जाता था।
ममदानी अकेले व्यक्ति नहीं हैं, जिन्हें इस तरह निशाना बनाया गया है। बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग सार्वजनिक जीवन में अकसर इन चीजों को लेकर उत्पीड़न का सामना करते हैं।
यह एक अजीब विडंबना है कि उंगलियां चाट-चाटकर भोजन करने के लिए जाने जाने वाले देश वियतनाम से ताल्लुक रखने वाला कोई व्यक्ति हाथ से खाना खाने को वैश्विक भोजन सभ्यता के मानकों के खिलाफ मानता है।
ममदानी का यह कृत्य कोई अजीब या असामान्य नहीं था, बल्कि चावल खाने का एक सामान्य, व्यावहारिक तरीका था। यह सुव्यवस्थित, सुरुचिपूर्ण और सांस्कृतिक तरीके पर आधारित है।
(360इन्फो)
जोहेब