शीर्ष अदालत ने उप्र में 69 हजार सहायक शिक्षकों की नयी चयन सूची तैयार करने के आदेश पर लगाई रोक
सुभाष दिलीप
- 09 Sep 2024, 07:32 PM
- Updated: 07:32 PM
नयी दिल्ली, नौ सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश पर सोमवार को रोक लगा दी, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य में 69,000 सहायक शिक्षकों की नयी चयन सूची तैयार करने को कहा गया था।
शीर्ष अदालत ने जून 2020 और जनवरी 2022 में जारी शिक्षकों की चयन सूचियों को रद्द करने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश पर भी रोक लगा दी, जिनमें 6,800 अभ्यर्थी शामिल थे।
उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाते हुए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने रवि कुमार सक्सेना और 51 अन्य द्वारा दायर याचिका पर राज्य सरकार और उप्र बेसिक शिक्षा बोर्ड के सचिव सहित अन्य को नोटिस भी जारी किए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले में अंतिम सुनवाई करेगी। साथ ही, न्यायालय ने संबंधित पक्षों के वकीलों से कहा कि वे अधिकतम सात पृष्ठों के संक्षिप्त लिखित ‘नोट’ दाखिल करें।
पीठ ने कहा कि वह याचिका पर सुनवाई 23 सितंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में तय करेगी।
उप्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी शीर्ष अदालत में पेश हुईं।
उच्च न्यायालय ने अगस्त में, राज्य सरकार को प्रदेश में 69,000 सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नयी चयन सूची तैयार करने का निर्देश दिया था।
उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने महेंद्र पाल और अन्य द्वारा पिछले साल 13 मार्च को एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली 90 विशेष अपीलों का निस्तारण करते हुए यह आदेश जारी किया था।
खंडपीठ ने निर्देश दिया था कि नयी चयन सूची तैयार करते समय, वर्तमान में कार्यरत सहायक अध्यापकों पर किसी भी नुकसानदेह प्रभाव को कम किया जाना चाहिए, ताकि वे जारी शैक्षणिक सत्र को पूरा कर सकें।
खंडपीठ ने कहा था कि इस निर्देश का उद्देश्य छात्रों के पठन-पाठन में व्यवधान को रोकना है।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने पूर्व में जारी आदेश को संशोधित किया था और कहा था कि सामान्य श्रेणी की मेधा सूची में स्थान बनाने वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को उसी (सामान्य) श्रेणी में डाला जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने एकल न्यायाधीश के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें आरक्षित श्रेणी के 6,800 अभ्यर्थियों की पांच जनवरी 2022 की चयन सूची को रद्द करने का फैसला किया गया था।
खंडपीठ ने राज्य सरकार और अन्य संबद्ध प्राधिकारों को तीन महीने के भीतर नयी चयन सूची जारी करने की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया था।
उच्च न्यायालय एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें दलील दी गई थी कि 69,000 शिक्षकों के चयन में राज्य द्वारा प्रदान किया गया आरक्षण सटीक नहीं था और 6,800 शिक्षकों की नियुक्ति की वैधता पर सवाल उठाया गया था।
एकल पीठ ने अपने निर्णय में कहा था कि शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में आरक्षण का लाभ लेने वाले अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी का ‘कट ऑफ मार्क्स’ पाने पर अनारक्षित वर्ग में रखा जाना सही है, क्योंकि टीईटी किसी अभ्यर्थी को सिर्फ सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा में भाग लेने के लिए उपयुक्त बनाता है।
हालांकि, बाद में खंडपीठ ने स्पष्ट किया था कि यदि ऐसे अभ्यर्थी पात्रता मानदंड को पूरा करते हैं, तो उन्हें सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए।
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