अपराधी का सुधार नहीं होना समाज के लिए ही सजा है: अदालत
अमित सुरेश
- 25 Jun 2025, 08:46 PM
- Updated: 08:46 PM
नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने कहा है कि सुधार का समाज में एक बड़ा उद्देश्य होता है और यदि समाज किसी अपराधी को सुधार नहीं सकता, तो यह खुद समाज के लिए ही एक सजा बन जाता है।
दिल्ली की एक अदालत में पेश तीन लोगों पर जालसाजी का आरोप था, जिसमें अमीर परिवार के बच्चों को राजधानी के प्रतिष्ठित विद्यालयों में दाखिला दिलाया गया था। इन दाखिलों के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), उपराष्ट्रपति सचिवालय और दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के फर्जी सिफारिशी पत्रों का इस्तेमाल किया गया था।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 50-वर्षीय उवैस-उर-रहमान और 40-वर्षीय उदय कुमार को, अपराध स्वीकार करने के बाद, उनके द्वारा काटे गये कारावास के बराबर सजा सुनाई और प्रत्येक पर 30,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
दोनों ने 2012 के मामले की सुनवाई के दौरान करीब तीन महीने न्यायिक हिरासत में बिताए थे।
न्यायाधीश ने नौ जून को दिए गए अपने आदेश में, 39-वर्षीय सह-आरोपी असगर अली को भी अदालत की एक दिन की कार्यवधि के बराबर की सजा सुनाई और 30,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
अदालत ने कहा कि अपराध को एक सामाजिक और व्यक्तिगत प्रक्रिया के रूप में समझना आवश्यक है और यह भी जरूरी है कि अपराध को होने या दोहराये जाने से रोका जाए। अदालत ने कहा कि इसके लिए ऐसा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो अपराधी के पुनः सामाजीकरण और सुधार को बढ़ावा दे।
अदालत ने कहा, ‘‘अपराधी का सुधार एक बड़े सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति करता है और इस सुधार का सबसे बड़ा लाभार्थी स्वयं समाज बनता है, क्योंकि समाज को फिर उसके अपराधों से मुक्ति मिलती है। यदि समाज किसी अपराधी को सुधार नहीं सकता, तो वास्तव में यह स्वयं समाज के लिए ही एक सजा है।’’
प्राथमिकी के अनुसार, 2008 से 2011 के बीच आरोपियों ने जाली सिफारिशी पत्रों के ज़रिये विद्यालयों में दाखिले करवाकर आसान तरीके से पैसा कमाने की साज़िश रची।
सीबीआई ने आरोप लगाया कि इन फर्जी सिफारिशी पत्रों के जरिये अमीर लोगों के बच्चों को कुछ विद्यालयों में दाखिला दिलाया गया और इसके बदले में उनसे अवैध रूप से मोटी रकम वसूली गई।
सीबीआई ने कहा कि आरोपियों ने जानबूझकर और धोखाधड़ी से बच्चों के अभिभावकों और स्कूल प्रशासन को गुमराह किया और गलत तरीके से दाखिले करवाए।
दोषियों ने अपराध स्वीकार करते हुए अदालत के समक्ष कहा कि उन्हें अपने आपराधिक कृत्य पर वास्तव में पछतावा है और वे भविष्य में ऐसा दोबारा नहीं करेंगे।
उन्होंने सुधार का एक अवसर देने की अपील की और भरोसा दिलाया कि वे भविष्य में इस तरह के किसी भी कार्य में लिप्त नहीं होंगे।
न्यायाधीश ने कहा कि अगर दोषियों को अधिकतम सजा दी जाती, तो वह कठोर मानी जाती।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘चूंकि दोषियों ने सच्चे मन से पश्चाताप की इच्छा जताई है, इसलिए उन्हें सुधार का एक उचित अवसर मिलना चाहिए, ताकि वे देश के उपयोगी नागरिक बन सकें।’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘लेकिन साथ ही दोषियों को ऐसी सजा दी जानी चाहिए, जो समाज के अन्य ऐसे लोगों को अपराध की दुनिया में कदम रखने से रोके... इस संतुलन को बनाए रखना जरूरी है।’’
अदालत ने यह भी ध्यान में रखा कि मामले की सुनवाई 2012 से चल रही है।
भाषा
अमित