उच्च अदालत में न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया किसी एक व्यक्ति का विशेषाधिकार नहीं: उच्चतम न्यायालय
नेत्रपाल पवनेश
- 06 Sep 2024, 07:31 PM
- Updated: 07:31 PM
नयी दिल्ली, छह सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी उच्च अदालत में न्यायिक नियुक्ति की प्रक्रिया किसी व्यक्ति का विशेषाधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के कॉलेजियम को निर्देश दिया कि वह दो वरिष्ठतम जिला एवं सत्र न्यायाधीशों की पदोन्नति पर सामूहिक रूप से पुनर्विचार करे, जिन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति नहीं दी गई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय में पदोन्नत करने के संबंध में उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा कोई सामूहिक परामर्श नहीं किया गया तथा दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों की उपयुक्तता पर निर्णय मुख्य न्यायाधीश का ‘‘व्यक्तिगत निर्णय’’ प्रतीत होता है।
इसने न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़े मामलों में कुछ संवेदनशील सूचनाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया और कहा कि ऐसी सूचनाओं का खुलासा करने से न केवल किसी व्यक्ति की गोपनीयता, बल्कि प्रक्रिया की शुचिता से भी समझौता होगा।
न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने हिमाचल प्रदेश में कार्यरत दो वरिष्ठतम जिला एवं सत्र न्यायाधीशों - चिराग भानु सिंह और अरविंद मल्होत्रा की याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिन्होंने आरोप लगाया था कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद के लिए नामों के चयन में उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा उनकी योग्यता और वरिष्ठता पर विचार नहीं किया गया।
पीठ ने कहा कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के कॉलेजियम को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति के लिए इन दोनों न्यायिक अधिकारियों के नामों पर पुनर्विचार करना चाहिए।
इसने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय कॉलेजियम के सदस्यों द्वारा कोई सामूहिक परामर्श और विचार-विमर्श नहीं किया गया था।’’
पीठ ने कहा, ‘‘दोनों याचिकाकर्ताओं की उपयुक्तता पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का निर्णय, जैसा कि 6 मार्च, 2024 को उनके पत्र में बताया गया था, एक व्यक्तिगत निर्णय प्रतीत होता है। इसलिए यह प्रक्रियागत और सारगत दोनों ही दृष्टि से दोषपूर्ण है।’’
शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर भी विचार किया कि क्या किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति पर उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा सामूहिक रूप से विचार किया जाना चाहिए या मुख्य न्यायाधीश व्यक्तिगत रूप से इस पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
इसने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय में न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया किसी एक व्यक्ति का विशेषाधिकार नहीं है। इसके बजाय, यह सभी कॉलेजियम सदस्यों को शामिल करते हुए एक सहयोगात्मक और भागीदारीपूर्ण प्रक्रिया है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘अंतर्निहित सिद्धांत यह है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में विविध दृष्टिकोणों से प्राप्त सामूहिक ज्ञान प्रतिबिंबित होना चाहिए। ऐसी प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांत कायम रहें।’’
उच्चतम न्यायालय के पिछले निर्णयों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि इस बात पर जोर दिया गया है कि सहयोगात्मक विचार-विमर्श से प्रक्रिया में पारदर्शिता आती है, क्योंकि निर्णयों पर विचार-विमर्श, बहस और रिकार्डिंग की जाती है।
इसने कहा कि इससे न्यायपालिका में जनता का विश्वास बढ़ता है, क्योंकि यह दर्शाता है कि नियुक्तियां गहन विचार-विमर्श के बाद की जा रही हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘यह बताना जरूरी है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़े मामलों में कुछ संवेदनशील सूचनाओं को सुरक्षित रखने की भी जरूरत है। हालांकि निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शिता आवश्यक है, लेकिन इसे गोपनीयता बनाए रखने की जरूरत के साथ सावधानीपूर्वक संतुलित किया जाना चाहिए।’’
इसने उल्लेख किया कि दोनों याचिकाकर्ताओं को तत्कालीन उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा 6 दिसंबर, 2022 को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने की सिफारिश की गई थी।
पीठ ने कहा कि इस साल 4 जनवरी को उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने फैसला सुनाया था कि उनकी पदोन्नति का प्रस्ताव पुनर्विचार के लिए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा जाएगा।
इसने विधि एवं न्याय मंत्री द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 16 जनवरी, 2024 को लिखे गए पत्र का भी उल्लेख किया, जिसमें अनुरोध किया गया था कि उपलब्ध सेवा कोटा रिक्तियों के मद्देनजर दो न्यायिक अधिकारियों के लिए नयी सिफारिशें भेजी जाएं।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की शिकायत यह है कि उच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने 4 जनवरी के उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम प्रस्ताव के संदर्भ में उनके नाम पर पुनर्विचार किए बिना ही दो अन्य लोगों के नामों की पदोन्नति के लिए सिफारिश कर दी।
इसने उल्लेख किया कि उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ने उसके समक्ष एक रिपोर्ट दायर की थी जिसमें कहा गया था कि शीर्ष अदालत के कॉलेजियम का 4 जनवरी का प्रस्ताव उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को कभी प्राप्त नहीं हुआ।
पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि 6 मार्च, 2024 को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं की उपयुक्तता पर उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम को व्यक्तिगत रूप से एक पत्र लिखा था।
याचिका की स्वीकार्यता के प्रश्न पर विचार करते हुए पीठ ने उच्चतम न्यायालय के पिछले निर्णयों का हवाला दिया और कहा कि कानूनी स्थिति स्पष्ट रूप से बताती है कि कॉलेजियम के सदस्यों के बीच परामर्श का अभाव न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे में होगा।
पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह ऐसा मामला है जिसमें उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम सहकर्मी न्यायाधीशों के बीच कोई सामूहिक परामर्श नहीं हुआ।
इसने कहा, ‘‘रिट याचिका विचार किए जाने योग्य है, क्योंकि इसमें प्रभावी परामर्श के अभाव पर सवाल उठाया गया है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व्यक्तिगत रूप से किसी सिफारिश पर पुनर्विचार नहीं कर सकते तथा यह कार्य केवल उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा सामूहिक रूप से ही किया जा सकता है।’’
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘उपर्युक्त के आलोक में, उच्च न्यायालय कॉलेजियम को अब 4 जनवरी, 2024 के उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के निर्णय और 16 जनवरी, 2024 के कानून मंत्री के पत्र के बाद, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति के लिए चिराग भानु सिंह और अरविंद मल्होत्रा के नामों पर पुनर्विचार करना चाहिए। तदनुसार, आदेश दिया जाता है।’’
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