हमें हितों की पारस्परिकता को देखना होगा: भारत-बांग्लादेश संबंधों पर विदेश मंत्री
नेत्रपाल पवनेश
- 30 Aug 2024, 10:14 PM
- Updated: 10:14 PM
नयी दिल्ली, 30 अगस्त (भाषा) विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद से ढाका के साथ नयी दिल्ली के संबंध ‘‘उतार-चढ़ाव’’ वाले रहे हैं और यह स्वाभाविक है कि भारत वर्तमान सरकार के रुख के अनुरूप रवैया अपनाए।
जयशंकर ने यहां एक पुस्तक के विमोचन अवसर पर अपने संबोधन में इस बात पर भी जोर दिया कि भारत को ‘‘हितों की पारस्परिकता’’ को देखना होगा। उन्होंने कहा कि दुनिया के किसी भी देश के लिए, पड़ोसी ‘‘हमेशा एक पहेली’’ होते हैं, और ‘‘प्रमुख शक्तियां’’ भी होते हैं।
उनकी टिप्पणियां बांग्लादेश में सरकार विरोधी अभूतपूर्व प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में आईं जिसके कारण शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई और वह पांच अगस्त को भारत आ गईं।
तीन सप्ताह से अधिक समय तक भारत में हसीना की मौजूदगी ने उस देश में अटकलों को जन्म दिया है।
आठ अगस्त से, मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में सलाहकारों की एक टीम वाली एक अंतरिम सरकार बांग्लादेश में है।
भारत के पूर्व राजदूत राजीव सीकरी द्वारा लिखित पुस्तक ‘स्ट्रेटजिक कॉनड्रम: रीशेपिंग इंडियाज फॉरेन पॉलिसी’ अपने पड़ोसी देशों के साथ देश के संबंधों और उससे जुड़ी चुनौतियों के बारे में बात करती है।
जयशंकर ने कहा कि वह किताब के शीर्षक और उस कारण जिसकी वजह से लेखक ने इसे (शीर्षक को) ‘‘पहेली’’ के रूप में प्रस्तुत किया उस पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘और, मैं चाहता हूं कि आप उस ‘पहेली’ शब्द पर विचार करें... क्योंकि, आम तौर पर राजनयिक दुनिया में, इसे एक रिश्ते के रूप में, परिदृश्य के रूप में, कथानकों के रूप में व्यक्त किया जाएगा, लेकिन परिभाषा के अनुसार ‘पहेली’ भ्रामक है, यह कठिन है, यह एक रहस्य की तरह है, यह एक चुनौती हो सकती है। और, सबसे बढ़कर, यह एक निश्चित जटिलता व्यक्त करती है।’’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘और, मुझे बहुत खुशी है कि उन्होंने ऐसा किया। जैसा कि कभी-कभी, जब हम विदेश नीति पर बहस करते हैं, तो हमारे बहुत ही स्याह और सफेद विकल्पों की ओर फिसलने का खतरा होता है। लोग इसे सरल बनाते हैं...।’’
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘अब, यदि हम पहेली पर नजर डालें, तो दुनिया के हर देश के लिए पड़ोसी हमेशा एक पहेली होते हैं क्योंकि दुनिया के हर देश के लिए पड़ोसी रिश्ते ‘‘सबसे कठिन’’ होते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इनका कभी भी समाधान नहीं किया जा सकता। वे लगातार जारी रहने वाले रिश्ते हैं जो हमेशा समस्याएं पैदा करेंगे।’’
जयशंकर ने कहा, ‘‘तो, जब लोग कभी-कभी कहते हैं कि बांग्लादेश में यह हुआ, यह मालदीव में हुआ, मुझे लगता है कि उन्हें वैश्विक तौर पर देखने की जरूरत है। और, मुझे बताएं, दुनिया में कौन सा देश है जिसके सामने अपने पड़ोसियों जुड़ी चुनौतियां व जटिलताएं नहीं हैं। मैं समझता हूं कि पड़ोसी होने के नाते यह स्वाभाविक है कि ऐसा होगा।’’
बांग्लादेश के मुद्दे पर विदेश मंत्री ने कहा कि स्पष्ट कारणों से इन संबंधों में बहुत रुचि है।
उन्होंने कहा, ‘‘बांग्लादेश के साथ, उसकी आजादी के बाद से, हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम मौजूदा सरकार के रुख के हिसाब से रवैया अपनाएं।’’
जयशंकर ने कहा, ‘‘लेकिन, हमें यह भी मानना होगा कि राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं और राजनीतिक परिवर्तन विघटनकारी हो सकते हैं। स्पष्ट रूप से हमें यहां हितों की पारस्परिकता को देखना होगा।’’
भारत-म्यांमा संबंधों पर उन्होंने कहा कि म्यांमा ‘‘एक ही समय में प्रासंगिक और असंबद्ध’’ है।
अपने संबोधन में उन्होंने क्षेत्रीयकरण के बारे में भी बात की और कहा, ‘‘भारत के सामने यह प्रश्न है कि हम क्षेत्रीयकरण किसके साथ और किन शर्तों पर करें।’’
जयशंकर ने कहा, ‘‘किसी पहेली को देखने का मूल मंत्र यह होना चाहिए कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा कहां है, उस रिश्ते में लाभ या जोखिम क्या है। क्या यह व्यापक राष्ट्रीय शक्ति के विकास में मदद करता है और क्या यह हमारी पसंद की स्वतंत्रता का विस्तार करता है।’’
उन्होंने कहा कि दूसरा, प्रमुख शक्तियां हैं। उन्होंने कहा, ‘‘प्रमुख शक्तियां एक पहेली होंगी क्योंकि वे उनके हितों की व्यापकता के कारण प्रमुख हैं। उनका हमेशा एक एजेंडा होगा, जो भारत के साथ टकाराव का होगा, लेकिन अलग-अलग स्तर पर अलग भी होगा।’’
जयशंकर ने कहा, ‘‘चीन के मामले में, आपके पास ‘दोहरी पहेली’ है, क्योंकि यह एक पड़ोसी और एक प्रमुख शक्ति है। इसलिए, चीन के साथ चुनौतियां इस दोहरी परिभाषा में उपयुक्त बैठती हैं।’’
विदेश मंत्री ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘भारत को पूरे पड़ोस के लिए एक उत्थान शक्ति बनना चाहिए।’’
जयशंकर ने कहा कि यह किताब ‘‘सामान्य विशेषज्ञों के लिए लिखी गई है, यह विदेश मंत्रालय द्वारा, विदेश मंत्रालय के लिए लिखी गई किताब नहीं है’’।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि विदेश नीति के रहस्यों को उजागर करना आज बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ वर्षों में मेरा अपना प्रयास विदेश नीति को विदेश मंत्रालय और दिल्ली से बाहर ले जाना रहा है, और वास्तव में इस पर एक बड़ी बातचीत शुरू करने का प्रयास करना है।’’
भाषा
नेत्रपाल