न्यायालय ने 2023 महिला आरक्षण अधिनियम के कार्यान्वयन की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा
सुरेश नरेश
- 10 Nov 2025, 06:58 PM
- Updated: 06:58 PM
नयी दिल्ली, 10 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023’ के कार्यान्वयन संबंधी याचिका पर केंद्र से सोमवार को जवाब तलब किया।
इस अधिनियम के अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीट आरक्षित की गयी हैं।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी करते हुए कहा कि महिलाएं देश में सबसे बड़ी अल्पसंख्यक हैं।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘‘भारत के संविधान की प्रस्तावना कहती है कि सभी नागरिक राजनीतिक और सामाजिक समानता के हकदार हैं। इस देश में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक कौन है? महिलाएं हैं। यह (आंकड़ा) लगभग 48 प्रतिशत है। यह (अधिनियम) महिलाओं की राजनीतिक समानता के बारे में है।’’
याचिकाकर्ता जया ठाकुर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की आज़ादी के 75 साल बाद महिलाओं को प्रतिनिधित्व के लिए अदालत का रुख करना पड़ रहा है।
उन्होंने दलील दी कि यह अधिनियम आंकड़ों के आधार पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की कुल सीट का एक-तिहाई हिस्सा आरक्षित करता है।
पीठ ने कहा कि कानून का प्रवर्तन कार्यपालिका का विशेषाधिकार है और इन मामलों में कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘‘ऐसे नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप करने को लेकर अदालतों की सीमाएं होती हैं।’’
जय ठाकुर ने अधिवक्ता वरुण ठाकुर के माध्यम से दायर अपनी याचिका में नये परिसीमन की प्रक्रिया का इंतज़ार किए बिना अधिनियम को लागू करने का अनुरोध किया है।
याचिका में कहा गया है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व आवश्यक है, लेकिन पिछले 75 वर्षों से संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं रहा है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘यह दशकों से चली आ रही एक लंबित मांग है और संसद ने 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए उपरोक्त अधिनियम पारित करके सही किया है, लेकिन यह शर्त भी रखी है कि उक्त अधिनियम इस उद्देश्य के लिए परिसीमन किए जाने के बाद लागू किया जाएगा।’’
याचिका में यह भी कहा गया है कि संविधान संशोधन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित नहीं किया जा सकता। वास्तव में, संसद के साथ-साथ राज्य विधानसभाओं में भी आरक्षण लागू करने के लिए कानून में संशोधन हेतु एक विशेष सत्र बुलाया गया था। दोनों सदनों ने इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किया, भारत के राष्ट्रपति ने भी इसे अपनी स्वीकृति प्रदान की और उसके बाद 28 सितंबर, 2023 को अधिनियम को अधिसूचित किया गया।
दिलचस्प बात यह है कि 10 जनवरी, 2024 को शीर्ष अदालत ने इस अधिनियम में परिसीमन खंड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया।
शीर्ष अदालत संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जया ठाकुर और राष्ट्रीय भारतीय महिला महासंघ (एनएफआईडब्ल्यू) द्वारा दायर याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं थी।
पीठ ने बताया कि जया ठाकुर की याचिका में उस विधेयक को चुनौती दी गई है, जो अब अधिनियम बन चुका है, जबकि एनएफआईडब्ल्यू ने कानून के परिसीमन खंड को चुनौती दी है।
शीर्ष अदालत ने ठाकुर की याचिका को अर्थहीन बताते हुए खारिज कर दिया। पीठ अनुच्छेद 32 के तहत एनएफआईडब्ल्यू की याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं थी। उसने कहा कि महिला महासंघ उच्च न्यायालय या किसी अन्य उपयुक्त मंच पर जा सकता है।
एनएफआईडब्ल्यू ने 2023 अधिनियम के अनुच्छेद 334ए(1) या खंड-पांच की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है, जिसमें अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को एक पूर्व शर्त माना गया था।
शीर्ष अदालत ने तीन नवंबर, 2023 को जया ठाकुर की याचिका पर सुनवाई करते कहा कि जनगणना के बाद लागू होने वाले महिला आरक्षण कानून के एक हिस्से को रद्द करना अदालत के लिए ‘‘बहुत मुश्किल’’ होगा।
अदालत ने उनकी याचिका पर नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया और उनके वकील से केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को इसकी प्रति देने को कहा।
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने वाले ऐतिहासिक विधेयक को 21 सितंबर, 2023 को संसद की मंज़ूरी मिली थी।
भाषा सुरेश