आरएसएस को व्यक्तियों के निकाय के रूप में मान्यता प्राप्त है: भागवत
जोहेब पारुल
- 09 Nov 2025, 04:57 PM
- Updated: 04:57 PM
(फोटो के साथ)
बेंगलुरु, नौ नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने संगठन पर बिना पंजीकरण के काम करने का आरोप लगाने वाले कांग्रेस नेताओं पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए रविवार को कहा कि उनके संगठन को व्यक्तियों के निकाय के रूप में मान्यता प्राप्त है।
भागवत ने आरएसएस की ओर से आयोजित एक आंतरिक प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी, तो क्या आप उम्मीद करते हैं कि हम ब्रिटिश सरकार के पास पंजीकरण कराते?’’
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भारत सरकार ने पंजीकरण अनिवार्य नहीं बनाया।
भागवत ने स्पष्ट किया, ‘‘हमें व्यक्तियों के निकाय के रूप में वर्गीकृत किया गया है और हम मान्यता प्राप्त संगठन हैं।’’
उन्होंने कहा कि आयकर विभाग और अदालतों ने आरएसएस को व्यक्तियों का एक निकाय माना है और संगठन को आयकर से छूट दी गई है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘हम पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया। ऐसे में सरकार ने हमें मान्यता दी है। अगर हमारा अस्तित्व नहीं था, तो उन्होंने किस पर प्रतिबंध लगाया?’’
भागवत ने कहा कि कई चीजें पंजीकृत नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यहां तक कि हिंदू धर्म भी पंजीकृत नहीं है।’’
आरएसएस के केवल भगवा ध्वज का सम्मान करने और तिरंगे को मान्यता नहीं देने के मुद्दे पर भागवत ने कहा कि आरएसएस में भगवा को गुरु माना जाता है, लेकिन वह भारतीय तिरंगे का बहुत सम्मान करता है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘हमने हमेशा अपने तिरंगे का सम्मान किया है और उसकी रक्षा की है।’’
भागवत की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने हाल में कहा था कि आरएसएस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे और कर्नाटक के मंत्री प्रियंक खरगे ने सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों पर आरएसएस की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। उन्होंने आरएसएस की पंजीकरण संख्या और उसके वित्तपोषण के स्रोत पर भी सवाल उठाए।
भागवत ने स्पष्ट किया कि आरएसएस किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन नहीं करता।
उन्होंने कहा, “हम वोट की राजनीति, वर्तमान राजनीति, चुनावी राजनीति आदि में हिस्सा नहीं लेते। संघ का काम समाज को एकजुट करना है और राजनीति स्वभाव से विभाजनकारी है, इसलिए हम राजनीति से दूर रहते हैं।”
आरएसएस प्रमुख ने यह भी कहा कि संघ नीतियों का समर्थन करता है, न कि किसी व्यक्ति या पार्टी का।
उन्होंने कहा, “हम नीतियों का समर्थन करते हैं। हम सही नीति का समर्थन करने के लिए अपनी ताकत लगा देते हैं, न कि किसी व्यक्ति या पार्टी के समर्थन के लिए।”
राम मंदिर निर्माण आंदोलन का उदाहरण देते हुए, भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों ने इस आंदोलन का समर्थन किया।
उन्होंने कहा, “भाजपा भी (समर्थन करने के लिए) थी। अगर कांग्रेस या कोई अन्य पार्टी इसका समर्थन करती, तो हम उनका भी समर्थन करते।”
भागवत ने कहा, “हमें किसी एक पार्टी के प्रति खास लगाव नहीं है। संघ का कोई दल नहीं है। कोई दल हमारा नहीं है और सभी दल हमारे हैं, क्योंकि वे भारतीय हैं।”
भागवत ने कहा कि आरएसएस किसी को बाहर रखे बिना पूरे समाज को संगठित करना चाहता है और वह बिना कोई नारा दिए ‘सबका साथ, सबका विकास’ में विश्वास करता है।
पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते पर, भागवत ने कहा कि संघ हमेशा पाकिस्तान के साथ शांति चाहता है।
उन्होंने कहा, “यह पाकिस्तान है, जो हमारे साथ शांति नहीं चाहता, और जब तक पाकिस्तान को भारत को नुकसान पहुंचाने से संतोष मिलता रहेगा, वह ऐसा करता रहेगा।”
भागवत ने कहा, “इसलिए पाकिस्तान के साथ शांति का रास्ता यह है कि हम अपनी तरफ से शांति का उल्लंघन न करें। लेकिन अगर पाकिस्तान शांति का उल्लंघन करता है, तो वह कभी भी सफल नहीं होगा।”
भागवत ने 1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए याद दिलाया कि उस युद्ध के परिणामस्वरूप बांगलादेश का गठन हुआ था, और अगर पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करता, तो एक दिन वह एक कड़ा सबक सीखेगा।
उन्होंने कहा, “लड़ाई करने से बेहतर सहयोग करना है। मुझे नहीं लगता कि वे किसी और भाषा को समझते हैं। इसलिए हमें उसी भाषा में बोलना होगा, जो वे समझते हैं। हमें उन्हें उचित जवाब देना होगा और हर बार उन्हें हराना होगा, जिससे उन्हें हमेशा पछताना पड़ेगा।”
जातिवाद के बारे में भागवत ने कहा कि समाज में जातिवाद नहीं है, बल्कि जाति भ्रम है।
उन्होंने कहा, “कोई जाति व्यवस्था नहीं है, लेकिन चुनावों और रियायतों के लिए जाति का भ्रम है। इसलिए जाति को समाप्त करने के लिए कोई प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। हमें जाति को भुलाने का प्रयास करना चाहिए, और यह बहुत आसान है। हम व्यक्तिगत रूप से जाति को भूल सकते हैं।”
'लव जिहाद' के मुद्दे पर, आरएसएस प्रमुख ने लोगों से अपील की कि वे दूसरों के बारे में ज्यादा न सोचें कि वे क्या कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इसके बजाय, उन्हें यह सोचना चाहिए कि उन्हें क्या करना चाहिए।
भागवत ने लोगों से घर पर ‘हिंदू संस्कार’ अपनाने की अपील की, ताकि वे इस समस्या से प्रभावी तरीके से निपट सकें।
भाषा जोहेब