राष्ट्रीय दलों के साथ हाथ मिलाने के बाद भी की गयी पूर्वोत्तर क्षेत्र की उपेक्षा : डेनियल लंगथासा
राजकुमार दिलीप
- 09 Nov 2025, 04:52 PM
- Updated: 04:52 PM
(अंजलि ओझा)
नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) असम के क्षेत्रीय दल पीपुल्स पार्टी के संस्थापक डेनियल लंगथासा ने कहा है कि इस क्षेत्र के मुद्दों को वर्षों से नजरअंदाज किया गया है तथा स्थानीय और राष्ट्रीय दलों के बीच अतीत में कई गठबंधनों के बावजूद संसद में कम प्रतिनिधित्व के कारण उनकी आवाज महत्वहीन हो गई है।
पीपुल्स पार्टी नव घोषित अखिल पूर्वोत्तर राजनीतिक इकाई का हिस्सा बनने वाली है।
लंगथासा ने मेघालय के मुख्यमंत्री और नेशनल पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष कोनराड संगमा, टिपरा मोथा के प्रद्योत माणिक्य और भाजपा के पूर्व प्रवक्ता म्होनलुमो किकोन के साथ मिलकर मंगलवार को नई राजनीतिक इकाई की घोषणा की, जिससे पूर्वोत्तर में हलचल मच गई है।
संगीतकार से सामाजिक कार्यकर्ता और अब नेता बने लंगथासा असम के दीमा हसाओ जिले से आते हैं, जो छठी अनुसूची का एक क्षेत्र है। यह उत्तरी कछार पर्वतीय स्वायत्त परिषद के अंतर्गत आता है।
लंगथासा आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में अवैध खनन, अवैध आव्रजन और जमीन से जुड़े मुद्दों को उठाते रहे हैं।
लंगथासा ने ‘पीटीआई-भाषा’ को फोन पर बताया, ‘‘बहुत लंबे समय से पूर्वोत्तर के मुद्दों को नजरअंदाज किया जाता रहा है। भाजपा के शासनकाल में पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (एनईडीए) और कांग्रेस के शासनकाल में भी गठबंधन बने।’’
उन्होंने कहा कि लेकिन पूर्वोत्तर की आवाज नहीं सुनी जाती, क्योंकि हर पूर्वोत्तर राज्य से सांसद बहुत कम हैं।
लंगथासा ने कहा कि पूर्वोत्तर में केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के साथ गठबंधन करने का चलन है। उन्होंने कहा,‘‘2014 में भाजपा के सत्ता में आने से पहले, पूर्वोत्तर में भाजपा का कोई प्रभाव नहीं था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अचानक, कुछ ही वर्षों में, सभी राज्यों में या तो भाजपा का शासन हो गया या सत्तारूढ़ क्षेत्रीय दल भाजपा के सहयोगी बन गए।’’
उन्होंने कहा,‘‘इसलिए हमें लगता है कि गठबंधन नहीं, बल्कि एक एकीकृत राजनीतिक इकाई - एक नई पार्टी की आवश्यकता है।’’
लंगथासा अपने क्षेत्र के आदिवासियों के भूमि अधिकारों के बारे में मुखर रहे हैं, जो छठी अनुसूची के तहत संरक्षित हैं।
उन्होंने दीमा हसाओ में एक सीमेंट कंपनी को ‘‘स्थानीय लोगों की इच्छा के विरुद्ध’’ भूमि आवंटित करने के हालिया कदम का उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘आदिवासियों को विकास विरोधी बताने से हमारी छवि बहुत खराब हो गई है। लेकिन हम विकास विरोधी नहीं हैं। और हम समझते हैं कि कुछ खदानें और खनिज देश के लिए महत्वपूर्ण हैं।’’
लंगथासा ने कहा, ‘‘खास तौर पर दीमा हसाओ की बात करें, तो हमारे पूरे जिले की आबादी अब भी सिर्फ़ दो लाख है। और इसमें आदिवासी आबादी लगभग 1.2-1.3 लाख होनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि छठी अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों को सुरक्षा देने के लिए थी, लेकिन नियमों का उल्लंघन हो रहा है और राज्य एवं केंद्र सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है।
भाषा
राजकुमार