मुंबई आतंकी हमला मामला: उच्च न्यायालय ने अबू जंदल को दस्तावेज देने संबंधी आदेश रद्द किया
वैभव अविनाश
- 04 Nov 2025, 07:44 PM
- Updated: 07:44 PM
मुंबई, चार नवंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने एक विशेष अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जंदल को गोपनीय दस्तावेज सौंपने का निर्देश दिया गया था। जंदल ने 26/11 के मुंबई हमलों के आतंकवादियों को हिंदी और स्थानीय बोलचाल में प्रशिक्षित किया था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत के आदेश के कारण 2018 से मुकदमा स्थगित है।
न्यायमूर्ति आर.एन. लड्ढा की पीठ ने सोमवार को दिल्ली पुलिस, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और विदेश मंत्रालय द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार कर लिया, जिनमें अधीनस्थ अदालत के 2018 के उस निर्देश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्हें अंसारी द्वारा मांगे गए विशिष्ट गोपनीय दस्तावेज देने का निर्देश था।
उच्च न्यायालय के इस फैसले के साथ, अंसारी के खिलाफ मुकदमा फिर से शुरू हो जाएगा, जिस पर 2018 से रोक लगी हुई थी।
अंसारी द्वारा मांगे गए दस्तावेज मुख्य रूप से उसकी गिरफ्तारी से जुड़े प्रक्रियात्मक पहलुओं और उसे अदालत के अधिकार क्षेत्र में लाने की प्रक्रिया से संबंधित थे।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि पासपोर्ट, उड़ान विवरण और आव्रजन रिकॉर्ड जैसे ये दस्तावेज ‘‘मूल आरोपों से संबंधित नहीं’’ हैं।
मेहता ने तर्क दिया कि ये दस्तावेज मुकदमे की कार्यवाही के न्यायसंगत निर्धारण के लिए न तो ‘आवश्यक’ थे और न ही ‘वांछनीय’।
महत्वपूर्ण बात यह है कि उच्च न्यायालय ने अपने 36-पृष्ठ के फैसले में उल्लेख किया कि निचली अदालत के आदेश के कारण 2018 से मुकदमा स्थगित है। यह फैसला मंगलवार को उपलब्ध हुआ।
उच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया है कि (अंसारी के खिलाफ 26/11 आतंकवादी हमला मामले की सुनवाई कर रही) निचली अदालत को ‘‘एक बिल्कुल अस्थिर आदेश पारित करने में समय नहीं लगाना चाहिए था, जो आरोपियों के इशारे पर भटकावपूर्ण जांच के अलावा और कुछ नहीं है’’।
अंसारी ने दावा किया था कि जून 2012 में सऊदी अरब में, जहां वह रह रहा था, दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने उसे अनधिकृत रूप से हिरासत में लिया और बाद में उसे भारत लाया गया था।
विशेष प्रकोष्ठ के अनुसार, अंसारी को दिल्ली हवाई अड्डे के बाहर से गिरफ्तार किया गया था, जहां वह घूमता हुआ पाया गया था।
अंसारी द्वारा मांगे गए दस्तावेजों में सऊदी अरब गए दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के पासपोर्ट, दम्मम से दिल्ली के लिए जेट एयरवेज की उड़ान की यात्री सूची, विदेश मंत्रालय द्वारा जारी आपातकालीन यात्रा दस्तावेज और संबंधित आव्रजन रिकॉर्ड शामिल थे।
अदालत ने उल्लेख किया कि 26/11 आतंकवादी हमलों के मामले में मुकदमे के लिए अंसारी की हिरासत मुंबई पुलिस को सौंप दी गई थी।
अदालत ने कहा कि अंसारी 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए जघन्य आतंकवादी हमलों से जुड़े अपराधों के लिए मुकदमे का सामना कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘आरोपी पर गंभीर प्रकृति के अपराध को अंजाम देने की साजिश रचने का आरोप है, जिसने राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को गहरा आघात पहुंचाया।’’
उसने फैसला सुनाया कि अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीश ने तीसरे पक्ष को गोपनीय दस्तावेज पेश करने के लिए बाध्य करने हेतु दंड प्रक्रिया संहिता की एक धारा का हवाला देकर ‘‘पूरी तरह से गलत दिशा में’’ कदम उठाया।
उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की यह धारा न तो आरोपी को और न ही अदालत को गिरफ्तारी स्थल की ‘‘अटकलबाजी या खोजपूर्ण जांच’’ शुरू करने का अधिकार देती है, खासकर तब जब जांच का दोषसिद्धि से कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है।
सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि अंसारी ने गिरफ्तारी के दौरान किसी भी स्तर पर अपनी गिरफ्तारी की वैधता पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी।
भाषा वैभव