उच्चतम न्यायालय ने न्यायपालिका में राष्ट्रव्यापी वरिष्ठता मानदंड तय करने पर फैसला सुरक्षित रखा
संतोष धीरज
- 04 Nov 2025, 08:49 PM
- Updated: 08:49 PM
नयी दिल्ली, चार नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को इस विषय पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या राज्यों में न्यायाधीशों के करियर में प्रगति से जुड़ी असमानताओं को दूर करने के लिए उच्च न्यायिक सेवा (एचजेएस) में वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए एक समान, राष्ट्रव्यापी मानदंड तैयार किए जाने चाहिए।
देश भर में न्यायाधीशों की धीमी और असमान करियर प्रगति का मुद्दा शीर्ष अदालत में विचाराधीन है।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने लंबे समय से जारी अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ के मामले में तीन दिनों तक चली व्यापक सुनवाई पूरी की।
न्यायालय इस बात पर विचार कर रहा है कि क्या दीवानी न्यायाधीश (जूनियर डिवीजन) के रूप में सेवा में प्रवेश करने वाले न्यायिक अधिकारियों के लिए समान पदोन्नति के अवसर सुनिश्चित करने के लिए एक राष्ट्रीय प्रारूप आवश्यक है।
पीठ ने अधिवक्ता और न्यायमित्र सिद्धार्थ भटनागर, राकेश द्विवेदी, पी एस पटवालिया, जयंत भूषण और गोपाल शंकरनारायणन सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया।
पीठ ने इस स्थिति पर गौर किया कि ‘‘अधिकांश राज्यों में, दीवानी न्यायाधीश (सीजे) के रूप में भर्ती होने वाले न्यायिक अधिकारी अक्सर प्रधान जिला न्यायाधीश (पीडीजे) के स्तर तक भी नहीं पहुंच पाते, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद तक पहुंचना तो दूर की बात है। इसके परिणामस्वरूप कई प्रतिभाशाली युवा अधिवक्ता सीजे के स्तर की सेवा में शामिल होने से हतोत्साहित हो रहे हैं।’’
पीठ समूचे देश में सबसे निचले पद पर नियुक्त होने वाले न्यायिक अधिकारियों की धीमी और असमान करियर प्रगति को लेकर चिंतित है और उसने 28 अक्टूबर को उच्च न्यायिक सेवा (एचजेएस) संवर्ग में वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए एक समान, राष्ट्रव्यापी मानदंड तैयार करने पर सुनवाई शुरू की। इस मामले की सुनवाई 19 अक्टूबर और चार नवंबर को भी हुई।
सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा था कि सबसे निचले पद पर नियुक्त होने वाले न्यायिक अधिकारियों (प्रवेश स्तर के अधिकारी) की वरिष्ठता निर्धारित करने के मानदंडों में एक प्रकार की राष्ट्रव्यापी ‘एकरूपता’ आवश्यक है, ताकि ऐसे न्यायाधीशों की धीमी और असमान करियर प्रगति से निपटा जा सके।
पीठ ने 14 अक्टूबर को प्रश्न तैयार किया, जिसमें लिखा था, ‘‘उच्च न्यायिक सेवाओं के संवर्ग में वरिष्ठता निर्धारित करने के मानदंड क्या होने चाहिए?’’
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा था कि प्रवेश स्तर के न्यायिक अधिकारियों की वरिष्ठता निर्धारित करने के मानदंडों में एक प्रकार की राष्ट्रव्यापी ‘एकरूपता’ की आवश्यकता है, ताकि ऐसे न्यायाधीशों की धीमी और असमान करियर प्रगति से निपटा जा सके।
मंगलवार को कई वकीलों ने तर्क दिया कि राज्यों में भर्ती चक्रों में असंगति एकमुश्त भर्ती की स्थिति पैदा करती है जिससे वरिष्ठता और करियर प्रगति में भारी अंतर पैदा होता है।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘वार्षिक भर्ती आदर्श है, लेकिन जब यह चार-पाच साल तक नहीं होती, तो व्यवस्था का क्या होगा?’’
वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने दीवानी न्यायाधीशों के लिए किसी भी अधिमान्य कोटे का विरोध करते हुए कहा, ‘‘कोई भी कोटा या योग्यता से विचलन केवल असाधारण स्थिति में होना चाहिए।’’
हालांकि, शंकरनारायणन ने व्यवस्थागत असंतुलन पर जोर दिया और कहा, ‘‘यह धारणा कि सीधी भर्ती वाले हमेशा बेहतर होते हैं, गलत है। ऐसे उच्च न्यायालय भी हैं जहां दर्जनों न्यायाधीशों के बीच एक भी पदोन्नत न्यायाधीश सेवा नहीं करता।’’
पीठ ने 14 अक्टूबर को प्रश्न तैयार किया, जिसमें लिखा था: ‘‘उच्च न्यायिक सेवा के संवर्ग में वरिष्ठता निर्धारित करने के मानदंड क्या होने चाहिए।’’
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि मुख्य मुद्दे पर सुनवाई करते हुए, वह ‘अन्य सहायक या संबंधित मुद्दों’ पर भी विचार कर सकती है।
भटनागर न्यायमित्र के रूप में पीठ की सहायता कर रहे हैं। उन्हों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अधिकांश राज्यों में पदोन्नति ‘योग्यता की तुलना में वरिष्ठता से अधिक प्रेरित’ होती है, जिसका मुख्य कारण वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) का मूल्यांकन करने का तरीका है।
उन्होंने कहा, ‘‘लगभग सभी की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) ‘अच्छा’ या ‘बहुत अच्छा’ होती है, जिसका अर्थ है कि वरिष्ठता ही वास्तविक निर्णायक कारक बन जाती है।’’
उन्होंने कहा कि मौजूदा ‘रोस्टर पॉइंट’ प्रणाली, पदोन्नत न्यायाधीशों को असमान रूप से नुकसान पहुंचाती है, जिनमें से कई के पास दो दशकों से ज्यादा का न्यायिक अनुभव है, लेकिन वे प्रधान जिला न्यायाधीशों या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नति के लिए विचाराधीन नहीं हो पाते।
उन्होंने कहा, ‘‘पदोन्नत न्यायाधीश, उम्र में बड़े होने के कारण, अक्सर अगले पदोन्नति चरण तक पहुंचने से पहले ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, संवर्ग के शीर्ष पर आमतौर पर सीधी भर्ती वाले न्यायाधीश होते हैं, जो कम उम्र के होते हैं और इसलिए लंबे समय तक नियुक्ति के योग्य रहते हैं।’’
भटनागर ने कहा कि अधिकांश उच्च न्यायालय जिला न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नति के लिए तीन गुना अधिक न्यायाधीशों पर विचार करते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि विचार किये जाने वाले 30 नामों में से 15 पदोन्नत न्यायाधीशों में से और 15 सीधी भर्ती वाले न्यायाधीशों में से होने चाहिए।
न्यायमित्र ने सुझाव दिया कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए उच्च ग्रेड पर भी पदोन्नत और सीधी भर्ती वाले लोगों के बीच 1:1 का अनुपात बनाए रखा जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति कांत ने आगाह किया कि प्रतियोगी परीक्षाओं पर अत्यधिक जोर देने से जूनियर डिवीजन स्तर पर ‘संकट’ पैदा हो सकता है, क्योंकि युवा अधिकारी मामलों के निपटारे की बजाय पदोन्नति पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
न्यायमित्र ने न्यायाधीश की इस टिप्पणी से सहमति जताते हुए कहा, ‘‘अगर पदोन्नति पूरी तरह से प्रतियोगी परीक्षाओं पर निर्भर करती है, तो न्यायिक अधिकारी भविष्य में तरक्की की चाह में अपने नियमित कर्तव्यों की उपेक्षा कर सकते हैं।’’
एक हस्तक्षेपकर्ता ने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय में, 2020 से केवल सीधी भर्ती वाले जिला न्यायाधीशों के नाम पर ही उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति के लिए विचार किया गया था।
उन्होंने कहा कि पदोन्नत जिला न्यायाधीश उच्च न्यायालय में पदोन्नति के लिए विचार किए जाने से पहले ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से पेश हुए द्विवेदी ने शीर्ष अदालत द्वारा एक समान वरिष्ठता प्रारूप लागू करने पर असहमति जताई।
उन्होंने कहा कि यह मामला उच्च न्यायालयों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए, जिन्हें अधीनस्थ न्यायपालिका के प्रशासन का प्रबंधन करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।
देश भर के न्यायिक अधिकारियों की वरिष्ठता और करियर में प्रगति का मुद्दा 1989 में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ (एआईजेए) द्वारा दायर एक याचिका में उठा था।
शीर्ष अदालत ने सात अक्टूबर को देश भर के निचले दर्जे के न्यायिक अधिकारियों के सामने आने वाले करियर में ठहराव से संबंधित मुद्दों को पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ को भेज दिया था।
भाषा संतोष