रेणुकास्वामी मामला: शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को विवेकाधीन शक्ति का अनुचित प्रयोग बताया
सुभाष पवनेश
- 24 Jul 2025, 06:03 PM
- Updated: 06:03 PM
नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने रेणुकास्वामी हत्या मामले में कन्नड़ अभिनेता दर्शन थुगुदीपा और छह अन्य को जमानत प्रदान करने संबंधी कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को बृहस्पतिवार को विवेकाधीन शक्ति का ‘‘अनुचित प्रयोग’’ करार दिया।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने उच्च न्यायालय द्वारा अभिनेता और सह-आरोपियों की जमानत मंजूर करने संबंधी 13 दिसंबर 2024 के आदेश के खिलाफ कर्नाटक सरकार की अपील पर फैसला सुरक्षित रख लिया।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मामले में आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे सिद्धार्थ दवे एवं अन्य की दलीलें सुनी।
इसने राज्य और कुछ अन्य लोगों द्वारा दाखिल लिखित ‘नोट’ को रिकॉर्ड में ले लिया और शेष आरोपियों के वकील से एक सप्ताह के भीतर लिखित रूप से संक्षिप्त दलीलें दाखिल करने को कहा।
राहत देने पर सवाल उठाते हुए, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने बचाव पक्ष के वकील से पूछा, ‘‘क्या आपको नहीं लगता कि उच्च न्यायालय ने जमानत याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सात आरोपियों को बरी करने का आदेश दे दिया?’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘चिंता की बात यह है कि जिस तरह से उच्च न्यायालय ने जमानत आदेश सुनाया...क्या उच्च न्यायालय हर जमानत याचिका पर एक ही तरह का आदेश सुनाता है?’’
पीठ ने दो चश्मदीदों, किरण और पुनीत के बयानों से उच्च न्यायालय के निपटने के तरीके पर भी सवाल उठाया तथा उन्हें ‘‘अविश्वसनीय गवाह’’ बताया।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ‘‘यह (जमानत प्रदान करना) आरोपियों को जमानत देने में विवेकाधीन शक्तियों का अनुचित प्रयोग है।’’
यह उल्लेख करते हुए कि सभी आरोपी जमानत पर जेल से बाहर हैं और मुकदमा अभी शुरू होना बाकी है, अदालत ने पूछा, ‘‘क्या उच्च न्यायालय ने न्यायिक रूप से अपने विवेक का प्रयोग किया है?’’
पीठ ने 17 जुलाई को, उच्च न्यायालय द्वारा आरोपियों को जमानत दिए जाने पर अपनी आपत्ति जताई और कहा कि जिस तरह से विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग किया गया, उससे वह ‘‘बिल्कुल भी आश्वस्त नहीं है।’’
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ‘‘ईमानदारी से कहूं तो, हम उच्च न्यायालय द्वारा विवेकाधीन शक्ति के प्रयोग के तरीके से सहमत नहीं हैं।’’
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यह मानने की जरूरत है कि ‘‘इस अदालत के हस्तक्षेप का कोई ठोस कारण नहीं है।’’
लूथरा ने दलील दी कि उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत अनुचित थी, खासकर ऐसे मामले में जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत गंभीर आरोप हों।
उन्होंने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों और फोरेंसिक निष्कर्षों सहित प्रमुख साक्ष्यों की उचित जांच किए बिना ही प्रभावी रूप से ‘‘सुनवाई पूर्व ही बरी’’ कर दिया।
लूथरा ने कहा कि जिस अपार्टमेंट परिसर में कथित तौर पर शव को फेंक दिया गया था, वहां लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में संदिग्ध वाहन दिखाई दिया।
उन्होंने आरोपों की गंभीरता और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर जोर दिया जो साजिश का संकेत देते हैं।
वहीं, दवे ने दलील दी कि जांच में खामियां थीं और देरी से दिए गए बयानों के कारण चश्मदीद गवाहों की विश्वसनीयता संदिग्ध थी।
दवे ने कहा कि आरोप अभी तय नहीं हुए हैं और मुकदमा शुरू नहीं हुआ है।
हालांकि, पीठ ने उच्च न्यायालय के रवैये पर, खासकर हत्या के आरोपियों से गंभीरता से निपटने के तरीके पर, चिंता व्यक्त की।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ‘‘हम उच्च न्यायालय द्वारा की गई गलती को नहीं दोहराएंगे। हम यहां दोषी या निर्दोष होने का फैसला करने नहीं, बल्कि यह पड़ताल करेंगे कि जमानत सही तरीके से दी गई थी या नहीं।’’
पीठ राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के 13 दिसंबर 2024 के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है। उच्च न्यायालय ने उक्त फैसले में दर्शन और सह-आरोपियों को जमानत दी थी। राज्य सरकार ने जमानत के खिलाफ 6 जनवरी को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
दर्शन पर अभिनेत्री पवित्रा गौड़ा और कई अन्य लोगों के साथ ऑटोरिक्शा चालक रेणुकास्वामी (33) नामक एक प्रशंसक का अपहरण करने और उसे प्रताड़ित करने का आरोप है।
रेणुकास्वामी ने पवित्रा को कथित तौर पर अश्लील संदेश भेजे थे।
पुलिस का आरोप है कि रेणुकास्वामी को जून 2024 में तीन दिनों तक बेंगलुरु में एक स्थान पर रखा गया, प्रताड़ित किया गया था। पुलिस के अनुसार, उसका शव एक नाले से बरामद किया गया।
शीर्ष अदालत ने 24 जनवरी को राज्य सरकार की याचिका पर अभिनेत्री पवित्रा गौड़ा और अन्य को मामले में नोटिस जारी किये थे।
दर्शन को 11 जून 2024 को गिरफ्तार किया गया था।
भाषा सुभाष