आपातकाल लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्याय: पुष्कर सिंह धामी
दीप्ति खारी
- 25 Jun 2025, 10:37 PM
- Updated: 10:37 PM
देहरादून, 25 जून (भाषा) उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आपातकाल को लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्याय बताते हुए बुधवार को कहा कि 50 वर्ष पूर्व इसी दिन सरकार द्वारा संविधान की आत्मा को कुचलने का प्रयास किया गया था।
आपातकाल की 50वीं बरसी के मौके पर आयोजित ‘सविधान हत्या दिवस’ कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सब एक व्यक्ति की हठधर्मिता और तानाशाही रवैये का परिणाम था।
उन्होंने कहा, ‘‘50 वर्ष पूर्व इसी दिन देश पर आपातकाल थोपा गया था और संविधान की आत्मा को कुचलने का प्रयास किया गया था। भारतीय संसद का गला घोंट दिया गया, प्रेस की स्वतंत्रता को बंधक बना लिया गया और न्यायपालिका की गरिमा तार-तार कर दिया गया।’’
धामी ने कहा कि लाखों देशवासियों के मौलिक अधिकारों को रौंद दिया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘आपातकाल के उन काले दिनों में सत्ता के नशे में चूर तत्कालीन सरकार ने सभी विपक्षी नेताओं, सैंकड़ों पत्रकारों सहित हर उस आवाज का निर्ममता से दमन किया जो लोकतंत्र की रक्षा के लिए उठ रही थी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल कर पूरे देश को एक खुली जेल बना दिया गया था। आंतरिक सुरक्षा कानून अधिनियम (मीसा) और भारत रक्षा अधिनियम (डीआईआर) जैसे काले कानून को थोपकर हजारों लोकतंत्र समर्थकों को जेलों में ठूंस दिया गया।’’
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘और यह सब एक व्यक्ति की हठधर्मिता और तानाशाही रवैये का परिणाम था।’’
उन्होंने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी ठहराते हुए उनकी लोकसभा सदस्यता को निरस्त कर दिया गया था और सत्ता छिन जाने के भय से उन्होंने 25 जून की रात को भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश में आपातकाल की घोषणा करवा दी।
धामी ने कहा कि आपातकाल के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे महान नेताओं ने जेलों में रहते हुए भी लोकतंत्र के प्रति युवाओं में चेतना जाग्रत करने का कार्य किया।
उन्होंने कहा, ‘‘सत्ता के दमन का प्रतिकार करते हुए देशभर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के छात्र-छात्राओं ने तानाशाही के विरुद्ध सड़कों पर उतरकर लोकतंत्र के पक्ष में जनजागरण प्रारंभ कर दिया। दिल्ली, बनारस, इलाहाबाद, पटना, जयपुर, पुणे, बेंगलुरु जैसे कई शहरों के अनेकों शैक्षणिक संस्थानों से शुरू हुआ विरोध धीरे-धीरे राष्ट्रव्यापी जनक्रांति में बदल गया।’’
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सहित अनेकों सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों ने भी अपनी पूरी शक्ति से लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए आंदोलन चलाया। हजारों युवाओं ने जेल जाना स्वीकार किया, यातनाएं सही, लेकिन अन्याय के आगे सिर नहीं झुकाया।’’
उन्होंने कहा कि भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के बाद वह दूसरी सबसे बड़ी जनक्रांति थी जिसने भारत को सत्ता के एकाधिकार से मुक्ति दिलाने का कार्य किया।
इस मौके पर मुख्यमंत्री ने उन ‘‘लोकतंत्र सेनानियों’’ को भी सम्मानित किया जिन्होंने आपातकाल के खिलाफ आवाज उठाई, जेल गए और अत्याचार सहे।
उन्होंने लोकतंत्र सेनानियों के मुद्दों का तत्परता से निस्तारण करने के लिए शासन स्तर पर नोडल अधिकारी नामित करने तथा आने वाले समय में उन्हें प्रतिमाह मिलने वाली सम्मान निधि में वृद्धि करने की भी घोषणा की।
भाषा दीप्ति