सामाजिक अशांति, शीर्ष अदालत का फैसला व तानाशाहीपूर्ण प्रवृत्ति 1975 में लगे आपातकाल के कारण थे
नोमान नरेश
- 24 Jun 2025, 04:25 PM
- Updated: 04:25 PM
नयी दिल्ली, 24 जून (भाषा) स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय 25 जून 1975 की आधी रात को लिखा गया जब आपातकाल की घोषणा की गई, लेकिन इसकी पटकथा तभी से लिखी जाने लगी थी जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राय बरेली से निर्वाचन को 12 जून 1975 को रद्द किया था।
गांधी के खिलाफ चुनाव याचिका सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राज नारायण ने दायर की थी, जो रायबरेली से चुनाव हार गये थे।
नारायण ने आरोप लगाया था कि गांधी के चुनाव एजेंट यशपाल कपूर एक सरकारी कर्मचारी हैं और उन्होंने अपने चुनाव संबंधी कार्यों के लिए सरकारी अधिकारियों को तैनात किया था।
उच्च न्यायालय के फैसले में गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी पाया गया था। अदालत के फैसले ने पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध के प्रभाव के चलते उच्च मुद्रास्फीति, आवश्यक वस्तुओं की कमी और मंद अर्थव्यवस्था के कारण सरकार के खिलाफ पहले से ही जनता में मौजूद असंतोष को और बढ़ा दिया।
इस जंग के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।
पश्चिम में गुजरात से असहमति के स्वर उठे, जहां मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के खिलाफ नवनिर्माण आंदोलन जोर पकड़ रहा था, तथा पूर्व में बिहार से भी आवाज बुलंद हुई जहां जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में युवा संगठित हो रहे थे।
गांधी ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील की और 24 जून 1975 को उन्हें उच्चतम न्यायालय से सशर्त राहत मिली, जिसके तहत वह प्रधानमंत्री पद पर तो बनी रहीं लेकिन संसद में उनके पास मतदान का अधिकार नहीं था।
इसके अगले दिन 25 जून को विपक्षी नेताओं ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल रैली की जो जयप्रकाश नारायण द्वारा “संपूर्ण क्रांति” के आह्वान के साथ समाप्त हुई। इसमें पुलिस और सशस्त्र बलों से ऐसे आदेशों की अवहेलना करने की अपील भी की गई थी जो उनकी अंतरात्मा को अनुचित लगें।
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने आपातकाल के दिनों को याद करते हुए कहा, "अगर उनमें तानाशाही रवैया नहीं होता और असुरक्षा की भावना नहीं होती तो वह अदालत के इस फैसले को लोकतांत्रिक तरीके से लेतीं, लेकिन उन्होंने दूसरा रास्ता चुना।"
उच्चतम न्यायालय के फैसले से परेशान इंदिरा गांधी ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे जैसे अपने करीबी सहयोगियों से परामर्श करने के बाद राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लगाने की सिफारिश की और इसके लिए देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे का हवाला दिया।
इसके बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व सभा करने के संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस पर सेंसरशिप लागू की गई, कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा करने की न्यायपालिका की शक्ति को सीमित कर दिया गया और विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया।
गिरफ्तार किये गये लोगों में गांधीवादी समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण शामिल थे जिन्होंने 'सम्पूर्ण क्रांति' का आह्वान किया था और आपातकाल से पहले के महीनों में जन रैलियों को संबोधित किया था। उनके अलावा लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, मधु दंडवते, नानाजी देशमुख, प्रकाश सिंह बादल, प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, एम करुणानिधि, एम के स्टालिन और अनेक राजनीतिक नेता शामिल थे।
जनवरी 1966 में ताशकंद में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री बनी। कांग्रेस का एक वर्ग उन्हें 'गूंगी गुड़िया' समझता था लेकिन उन्होंने स्वतंत्र प्रकृत्ति का प्रदर्शन किया जिसके कारण 1969 में कांग्रेस में विभाजन हो गया।
इंदिरा गांधी ने अपनी कांग्रेस-आर पार्टी के तहत 1971 के चुनावों में भारी जीत हासिल की। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के बाद उनकी लोकप्रियता जबर्दस्त बढ़ी, लेकिन यह ज़्यादा दिन तक नहीं रही क्योंकि 1973-74 में राजनीतिक अशांति और प्रदर्शन आम बात हो गई।
इस अशांति के बीच 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला आया और इसमें गांधी को चुनाव प्रचार में विसंगतियों के लिए दोषी पाया गया, जिसके कारण 25 जून की रात को आपातकाल लगा दिया गया।
लेखक ज्ञान प्रकाश ने अपनी पुस्तक 'इमरजेंसी क्रॉनिकल्स: इंदिरा गांधी एंड डेमोक्रेसीज टर्निंग पॉइंट' में लिखा है, "प्रधानमंत्री की कैबिनेट की बैठक 26 जून को सुबह छह बजे हुई। उनके किसी भी वरिष्ठ मंत्री को पहले से इस घोषणा के बारे में पता नहीं था, लेकिन कैबिनेट ने जल्दी और कर्तव्यनिष्ठा से निर्णय को मंजूरी दे दी।"
गांधी ने 26 जून को आकाशवाणी पर राष्ट्र को संबोधित किया और अपनी सरकार के खिलाफ "गहरी और व्यापक साजिश" का हवाला देते हुए आपातकाल को उचित ठहराया।
गांधी ने अपने रेडियो संबोधन में कहा, "राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। घबराने की कोई बात नहीं है। मुझे यकीन है कि आप सभी उस गहरी और व्यापक साजिश से अवगत हैं, जो तब से चल रही है, जब से मैंने आम आदमी के लाभ के लिए कुछ प्रगतिशील उपाय शुरू किए हैं।"
उनके बेटे एवं कांग्रेस नेता संजय गांधी के नेतृत्व में चलाए गए कुख्यात नसबंदी अभियान के तहत जनसंख्या नियंत्रण की आड़ में लाखों पुरुषों और महिलाओं, खासकर गरीब और हाशिए पर पड़े समुदायों की जबरन नसबंदी की गई।
हालांकि जिस तरह से आपाताकाल अचानक से लगाया गया था वैसे ही इसके हटाने की घोषणा भी हुई। गांधी ने 18 जनवरी 1977 को चुनाव कराने और राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की घोषणा की।
भाषा नोमान