सोनम वांगचुक ने प्रधानमंत्री मोदी से लद्दाख की मांगों पर कार्रवाई करने का आग्रह किया
नोमान अविनाश
- 09 Sep 2024, 04:49 PM
- Updated: 04:49 PM
नयी दिल्ली, नौ सितंबर (भाषा) जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध किया, ताकि स्थानीय लोगों को अपनी भूमि और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करने के लिए कानून बनाने की शक्तियां मिल सकें।
वांगचुक और लगभग 75 स्वयंसेवकों ने एक सितंबर को लेह से दिल्ली तक के लिए पैदल मार्च शुरू किया और केंद्र से उनकी मांगों के संबंध में लद्दाख के नेतृत्व के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह किया।
एक ऑनलाइन प्रेस वार्ता में वांगचुक ने कहा कि जुलाई में करगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ के मौके पर प्रधानमंत्री की द्रास यात्रा के दौरान उन्हें मांगों से संबंधित एक ज्ञापन सौंपा गया था, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।
वांगचुक ने यह भी कहा कि लद्दाख में पांच अतिरिक्त जिलों का निर्माण उनके प्रदर्शन से ‘अप्रत्यक्ष रूप’ से जुड़ा हो सकता है।
उन्होंने कहा, “हमें अब भी नहीं पता कि इन जिलों को निर्णय लेने की शक्तियां दी गई हैं या नहीं।” कार्यकर्ता ने भी कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
वांगचुक ने कहा, “लद्दाख पारिस्थितिकीय रूप से नाजुक क्षेत्र है, जो औद्योगिक और जलवायु संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है। मैं प्रधानमंत्री से आग्रह करता हूं कि यहां के लोगों की स्वायत्तता की रक्षा के लिए इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।”
उन्होंने कहा कि इस मार्च के माध्यम से उनका उद्देश्य विश्व नेताओं और वैश्विक समुदाय का ध्यान क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों की ओर आकर्षित करना है।
‘पीटीआई-भाषा’ के एक सवाल के जवाब में वांगचुक ने कहा कि लेह और करगिल की लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों (एलएएचडीसी) को सिर्फ विकास निधि खर्च करने का अधिकार दिया गया है। उन्होंने कहा, “लद्दाख के लोग कानून बनाने की शक्ति भी चाहते हैं।”
वांगचुक ने माना कि एक पैदल मार्च से समस्या का समाधान नहीं होगा। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार लद्दाख के लोगों की मांगों पर चर्चा फिर से शुरू करे।”
वांगचुक ने कहा कि उनका राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं है और यह मार्च कई राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों से संबंधित नहीं है।
उन्होंने कहा, “वास्तव में हम हरियाणा में जाने से बचने पर विचार कर रहे हैं, जहां चुनाव होने वाले हैं।”
वांगचुक ने दावा किया कि सरकार लद्दाख को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा और पूर्ण राज्य का दर्जा देने के अपने वादे से उन उद्योगपतियों के दबाव में पीछे हट गई है, जो पारिस्थितिकीय रूप से नाजुक क्षेत्र के संसाधनों का दोहन करना चाहते हैं।
प्रख्यात इंजीनियर ने इससे पहले ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया था कि लद्दाख में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भूमि का आवंटन किया जा रहा है और इसमें एलएएचडीसी की सहमति नहीं ली गई है।
वांगचुक ने मार्च में 21 दिन का उपवास किया था, जिस दौरान उन्होंने केवल नमक और पानी का सेवन किया था। उन्होंने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की थी, ताकि पारिस्थितिकीय रूप से नाजुक इस क्षेत्र को “लालची” उद्योगों से बचाया जा सके।
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