एनईपी बड़ा बदलाव लाने वाली नीति, अभी तक नहीं अपनाने वाले राज्यों को रुख पर पुनर्विचार की जरूरत: धनखड़
अमित प्रशांत
- 08 Sep 2024, 05:29 PM
- Updated: 05:29 PM
नयी दिल्ली, आठ सितंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) एक बड़ा बदलाव लाने वाली नीति है और जिन राज्यों ने अभी तक इस नीति को नहीं अपनाया है, उन्हें अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिए।
धनखड़ ने अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस समारोह को संबोधित करते हुए उन लोगों के खिलाफ आगाह किया जो भारत की संस्थाओं की छवि धूमिल करते हैं। उन्होंने लोगों से उन “गुमराह व्यक्तियों” को रोशनी दिखाने का आग्रह किया जो देश के प्रभावशाली विकास को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम “मिशन मोड में” काम करें और जल्द से जल्द 100 प्रतिशत साक्षरता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम करें।
धनखड़ ने कहा, “शिक्षा ऐसी चीज है जिसे कोई चोर आपसे नहीं छीन सकता। कोई सरकार इसे आपसे नहीं छीन सकती। न तो रिश्तेदार और न ही दोस्त इसे आपसे छीन सकते हैं। इसमें कोई कमी नहीं आ सकती। यह तब तक बढ़ती रहेगी जब तक आप इसे साझा करते रहेंगे। अगर साक्षरता को जुनून के साथ आगे बढ़ाया जाए तो भारत नालंदा और तक्षशिला की तरह शिक्षा के केंद्र के रूप में अपना प्राचीन दर्जा पुनः प्राप्त कर सकता है।"
नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को अभी तक नहीं अपनाने वाले राज्यों से अपने रुख पर पुनर्विचार करने की अपील करते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह नीति देश के लिए एक बड़ा बदलाव लाने वाली है।
उन्होंने कहा, "यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति हमारे युवाओं को उनकी प्रतिभा और ऊर्जा का पूरा इस्तेमाल करने का अधिकार देती है, जिसमें सभी भाषाओं को उचित महत्व दिया जाता है।"
भारत की संस्थाओं की छवि धूमिल करने वाले लोगों के खिलाफ चेतावनी देते हुए धनखड़ ने "उन गुमराह लोगों को रास्ता दिखाने का आग्रह किया जो भारत के प्रभावशाली विकास को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं और जमीनी हकीकत को नहीं पहचान रहे हैं।’’
मातृभाषा के विशेष महत्व पर प्रकाश डालते हुए धनखड़ ने कहा कि यह वह भाषा है जिसमें लोग सपने देखते हैं।
उपराष्ट्रपति ने भारत की अद्वितीय भाषायी विविधता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, “दुनिया में भारत जैसा कोई देश नहीं है। भाषा की समृद्धि के मामले में हम एक अनूठा राष्ट्र हैं, जिसमें कई भाषाएं हैं।”
राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने अनुभव को याद करते हुए उन्होंने कहा, “मैं सदस्यों को 22 भाषाओं में बोलने का अवसर देता हूं। जब मैं उन्हें उनकी भाषा में बोलते हुए सुनता हूं, तो मैं अनुवाद सुनता हूं, लेकिन उनके हाव-भाव ही मुझे बता देते हैं कि वे क्या कह रहे हैं।”
धनखड़ ने सभी से कम से कम एक व्यक्ति को साक्षर बनाने का संकल्प लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “जब हम किसी को साक्षर बनाते हैं, तो हम उसे मुक्त करते हैं, हम उस व्यक्ति को खुद को खोजने में मदद करते हैं, हम उसे सम्मान का एहसास कराते हैं, हम निर्भरता को कम करते हैं। यह व्यक्ति को खुद की मदद करने में सक्षम बनाता है।’’
अपने संबोधन में धनखड़ ने सभी से साक्षरता को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, "हमें जल्द से जल्द 100 प्रतिशत साक्षरता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता और जुनून के साथ मिशन मोड में होने का समय है, लेकिन मुझे यकीन है कि यह जितना हम सोचते हैं उससे भी जल्दी हासिल किया जा सकता है। हर कोई एक को साक्षर बनाए, यह विकसित भारत के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान होगा।’’
भाषा अमित