चिकित्सक मौत मामला : बंगाल सरकार ने मसौदा विधेयक में बलात्कार के दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रस्ताव किया
शफीक प्रशांत
- 02 Sep 2024, 07:48 PM
- Updated: 07:48 PM
कोलकाता, दो सितंबर (भाषा) पश्चिम बंगाल विधानसभा में मंगलवार को ममता बनर्जी सरकार द्वारा पेश किए जाने वाले बलात्कार रोधी विधेयक के मसौदे में बलात्कार पीड़िता की मौत होने की सूरत में ऐसे दोषियों के लिए मृत्युदंड के प्रावधान का प्रस्ताव किया गया है।
इसके अतिरिक्त, मसौदे में कहा गया है कि बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के दोषी व्यक्तियों को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी।
‘अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक, (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024’ शीर्षक वाले इस प्रस्तावित कानून का उद्देश्य बलात्कार और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों को शामिल करके महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा मजबूत करना है।
मसौदा विधेयक में हाल में लागू भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 अधिनियम और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 को पश्चिम बंगाल राज्य में उनके लागू करने के संबंध में संशोधित करने का प्रस्ताव है, ताकि सजा को बढ़ाया जा सके तथा महिलाओं व बच्चों के खिलाफ हिंसा के जघन्य कृत्य की शीघ्र जांच और सुनवाई के लिए रूपरेखा तैयार की जा सके।
मसौदा विधेयक में कहा गया है, ‘‘यह राज्य की अपने नागरिकों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के मौलिक अधिकारों को बनाए रखने तथा यह सुनिश्चित करने की अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है कि बच्चों के खिलाफ बलात्कार और यौन अपराधों के जघन्य कृत्यों का कानूनी तरीके से पूरी ताकत से मुकाबला किया जाए।’’
पिछले महीने सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक महिला चिकित्सक के साथ बलात्कार और उसकी हत्या की घटना के मद्देनजर विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया है। सत्र के दौरान राज्य के कानून मंत्री मलय घटक द्वारा विधेयक पेश किया जाएगा।
मसौदा विधेयक में जांच और अभियोजन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव करने की बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि बलात्कार के मामलों की जांच प्रारंभिक रिपोर्ट के 21 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए, जो पूर्व की दो महीने की समय सीमा से कम है।
मसौदे के अनुसार, बार-बार अपराध करने वालों के लिए सजा ‘‘आजीवन कारावास होगी, जिसका अर्थ होगा कि दोषी व्यक्ति को शेष जीवनकाल तक कारावास में रहना होगा।’’
प्रस्तावित विधेयक में अदालती कार्यवाही से संबंधित किसी भी सामग्री को बिना अनुमति के छापने या प्रकाशित करने पर तीन से पांच वर्ष की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।
इन बदलावों को लागू करने के लिए मसौदा विधेयक में जिला स्तर पर ‘अपराजिता कार्यबल’ नाम से एक विशेष कार्यबल बनाने का भी सुझाव दिया गया है, जिसका नेतृत्व पुलिस उपाधीक्षक करेंगे। यह कार्यबल नए प्रावधानों के तहत अपराधों की जांच के लिए जिम्मेदार होगा।
भाषा शफीक