तेजस्वी यादव: शानदार चुनावी आगाज से लेकर अकल्पनीय हार का सफर
ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र नेत्रपाल
- 14 Nov 2025, 09:18 PM
- Updated: 09:18 PM
पटना, 14 नवंबर (भाषा) बिहार विधानसभा चुनाव के बीच जब तेजस्वी यादव को महागठबंधन में शामिल सहयोगियों की इच्छा के विपरीत मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था तब शायद कुछ लोगों ने ही कल्पना की होगी कि शानदार चुनावी आगाज करने वाले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता के नेतृत्व में उनकी पार्टी को इस अकल्पनीय हार का सामना करना पड़ेगा।
महज 25 साल की उम्र में उपमुख्यमंत्री बनने के 10 साल बाद पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद के उत्तराधिकारी ने कई दौर में पिछड़ने के बाद भले ही राजद के गढ़ राघोपुर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सतीश कुमार को हराकर जीत हासिल कर ली लेकिन उनके नेतृत्व में राजद इस चुनाव में सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गया।
तेजस्वी ने एक क्रिकेटर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी लेकिन इस खेल में वह उड़ान नहीं भर सके। इसके बाद राजनीति में कदम रखते हुए उन्होंने एक नयी शुरुआत की और सफलता भी हासिल की लेकिन बिहार के सबसे शक्तिशाली परिवार के इस वंशज ने सपने भी नहीं सोचा होगा कि उनके नेतृत्व में पार्टी का यह हश्र हो जाएगा कि उसे विपक्षी दल का तमगा हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।
उन्होंने 2015 में राजनीति में प्रवेश करने से कुछ साल पहले क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की थी। जल्द ही, लालू ने यह स्पष्ट कर दिया कि तेजस्वी ही उनके चुने हुए उत्तराधिकारी होंगे। पिछले विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उन्हें नीतीश कुमार सरकार में उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया।
हालांकि, तेजस्वी की किस्मत में कुछ और ही था। उनका नाम कथित अवैध भूमि लेनदेन से संबंधित धनशोधन मामले में सामने आया, जब उनके पिता संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-1 सरकार में रेल मंत्री थे। जब यह कथित घोटाला हुआ तब तेजस्वी किशोरावस्था में थे।
इसे लेकर भारी विरोध हुआ और नीतीश कुमार ने राजग में लौटने से पहले राजद से नाता तोड़ लिया।
साल 2020 के बिहार चुनाव में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे राजद की संख्या इस चुनाव में घटकर आधे से भी कम रह गई है।
ऐसा प्रतीत होता है कि नौ भाई-बहनों में दूसरे सबसे छोटे तेजस्वी सत्तारूढ़ गठबंधन के इस दावे का मुकाबला करने में पूरी तरह से विफल रहे कि राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत का मतलब ‘जंगलराज’ की वापसी होगा।
मंच पर राजद उम्मीदवारों की कथित अनुचित बातों, नाबालिग लड़कों द्वारा ‘रंगदार’ बनने और ‘कट्टा’ (देश में बनी बिना लाइसेंस वाली पिस्तौल) लहराने की महत्वाकांक्षा जताए जाने पर पार्टी नेतृत्व ने आपत्ति भी नहीं जताई, जिससे ‘जंगलराज’ की कहानी को और बल मिला।
ऐसा लगता है कि यादव ने 20 साल तक सत्ता में रहने के बावजूद अपने पूर्व बॉस और अपने पिता के धुर प्रतिद्वंद्वी नीतीश कुमार का आकलन करने में भी गलती की।
तेजस्वी की रैलियों में महिलाओं की गैर-मौजूदगी रहती थी और कई जमीनी रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने इसे नजरअंदाज किया, वहीं राजग ने इसे ताकत के रूप में और सशक्त किया।
अंत में, ऐसा भी प्रतीत होता है कि ‘हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को सरकारी नौकरी’ देने के लिए कानून बनाने जैसे उनके वादे ने भी काम नहीं किया क्योंकि जन सुराज से लेकर अन्य गैर राजग दलों ने भी इस पर सवाल खड़े किए।
भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र