दिल्ली: अदालत ने महिला को जिंदा जलाने के मामले में पति और बेटे की दोषसिद्धि बरकरार रखी
जितेंद्र नरेश
- 14 Nov 2025, 07:42 PM
- Updated: 07:42 PM
नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महिला को जिंदा जलाने के मामले में शुक्रवार को उसके पति और बेटे की दोषसिद्धि बरकरार रखी।
अपील के लंबित रहने के दौरान महिला के पति की मौत हो गई जबकि उसका बेटा फरार है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति विमल कुमार यादव की पीठ ने हत्या के मामले में दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली दोनों आरोपियों की अपील खारिज कर दी और कहा कि सभी साक्ष्य महिला के मृत्यु पूर्व बयान के साथ, उसके पति दीदार सिंह और बेटे मान सिंह के खिलाफ एक पुख्ता मामला बनाते हैं।
दोनों दोषियों की सजा का पता अभी नहीं चल पाया है।
हत्या के अपराध में न्यूनतम आजीवन कारावास और अधिकतम मृत्युदंड का प्रावधान है।
उच्च न्यायालय ने फैसले की शुरुआत में कहा, “एक मां ही होती है, जो नौ महीने आपको अपने गर्भ में, तीन साल अपनी बाहों में और हमेशा अपने दिल में रखती है।”
पीठ ने एक गीत की पंक्ति का हवाला देते हुए, “पूत कपूत सुने हैं पर न माता सुनी कुमाता।”
पीठ ने कहा कि मां और उसके बच्चे के बीच के बंधन में स्वार्थ की कोई गुंजाइश नहीं होती।
अदालत ने कहा, “यह सचमुच गंभीर और हैरान कर देने वाला है कि बेटे और पति पर हत्या व सबूत नष्ट करने के आरोप लगाए गए हों।”
पीठ ने कहा कि मृत्यु न तो आत्महत्या थी और न ही आकस्मिक।
अदालत ने कहा, “मृत्यु पूर्व दिया गया बयान न केवल सुसंगत है बल्कि सत्य भी प्रतीत होता है। महिला के पास अपने वयस्क बेटे या पति का नाम लेकर उन्हें झूठा फंसाने का कोई कारण नहीं था। उसे इससे कुछ हासिल नहीं होता।”
यह घटना अप्रैल 2000 में उस समय हुई, जब महिला ज्ञान कौर अपने घर की छत पर सो रही थी और तड़के सुबह उसकी बेटी और कुछ पड़ोसियों ने उसे जिंदा जलते हुए पाया।
महिला की बेटी और बेटा मान सिंह उसे सफदरजंग अस्पताल ले गए, जहां उसे 100 प्रतिशत झुलसने की स्थिति में भर्ती कराया गया और उसी दिन उसकी मौत हो गई।
महिला ने मृत्युपूर्व दिये बयान में चिकित्सक और मजिस्ट्रेट के सामने खुलासा किया कि उसके पति व बेटे ने उस पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगाई है।
पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया और 2002 में एक अधीनस्थ न्यायालय ने उन्हें दोषी ठहराया।
दोषियों के वकील ने दलील दी कि महिला का पति व बेटा होने के नाते उनकी हत्या करने की कोई मंशा नहीं थी और आरोप बेहद बेबुनियाद प्रतीत होते हैं तथा रिकॉर्ड में कोई वजह दर्ज नहीं है।
पीठ ने कहा कि अगर मां के साथ उसके बेटे से जुड़ी कोई प्रतिकूल घटना घटती है, तो उसके पीछे कोई बहुत गंभीर कारण होना चाहिए।
पीठ ने कहा कि मृत्युपूर्व दिया गया बयान अपीलकर्ताओं को चुनौती देने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता।
भाषा जितेंद्र