बिहार की जीत से बंगाल भाजपा का मनोबल बढ़ेगा : विशेषज्ञ
पारुल अविनाश
- 14 Nov 2025, 07:34 PM
- Updated: 07:34 PM
कोलकाता, 14 नवंबर (भाषा) बिहार में महागठबंधन पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की भारी जीत ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भले ही उस मुकाम पर पहुंचा दिया है, जहां वह चाहे तो नीतीश कुमार की पार्टी के बिना भी सरकार बना सकती है। इस घटनाक्रम के बीच यह सवाल उठने लगा है कि क्या बिहार की उपलब्धि पश्चिम बंगाल में भी भाजपा को इतनी ताकत दे पाएगी कि वह तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को मात दे सके।
विशेषज्ञों के मुताबिक, उक्त सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि पश्चिम बंगाल की विरोधी पार्टियां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले तीन महत्वपूर्ण कारकों का कितनी कुशलता से प्रबंधन करती हैं। इनमें मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर), ‘मुफ्त की रेवड़ियां बांटने’ की राजनीति और महिला मतदाता शामिल हैं।
गिरिराज सिंह जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने “बंगाल के भाजपा का अगला पड़ाव होने” का बिगुल पहले ही बजा दिया है और ममता बनर्जी को “अपनी सबसे बुरी चुनावी हार के लिए तैयार रहने” की चेतावनी दे दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में तृणमूल को इसे बंगाल के “समीकरण अलग होने का हवाला देकर खारिज करने का पारंपरिक रुख अपनाने” के बजाय अधिक गंभीरता से लेने की आवश्यकता पड़ सकती है।
राजनीतिक विश्लेषक शुभमय मैत्रा ने कहा, “हर चुनाव परिणाम में कुछ परिवर्तनशील इनपुट होते हैं, जो उस खास चुनाव को प्रभावित करते हैं। बिहार में महिलाओं के बैंक खातों में 10,000 रुपये की राशि डालने के नीतीश कुमार सरकार के कदम ने कई क्षेत्रों में महिला मतदाताओं के बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए घरों से बाहर निकलने में निर्णायक भूमिका निभाई।”
बिहार के चुनावी रुझानों पर सरसरी नजर डालने पर मैत्रा की बातें सही साबित होती दिखती हैं। उत्तर बिहार के कोसी और दरभंगा जैसे जिलों में, जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से काफी ज्यादा (क्रमशः 12.5 फीसदी और 11.9 फीसदी) रही, वहां राजग क्रमशः 77 और 73 प्रतिशत सीटों पर आगे चल रहा है।
वहीं, दक्षिण बिहार के जिलों, मसलन पटना और मगध में, जहां पुरुष मतदाताओं की संख्या महिलाओं के मुकाबले थोड़ा ज्यादा रही, वहां राजग क्रमश: 30 और 23 प्रतिशत सीटों पर ही बढ़त बनाने में कामयाब रहा है।
मैत्रा ने कहा, “पश्चिम बंगाल में महिलाएं पारंपरिक रूप से ममता बनर्जी का मजबूत जनाधार रही हैं। ऐसे में अगर ममता बंगाल में नीतीश कुमार के नक्शेकदम पर चलते हुए महिलाओं के लिए और अधिक वित्तीय योजनाओं की घोषणा करें, तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा।”
उन्होंने कहा कि बिहार के नतीजे न केवल बंगाल में, बल्कि देश के अन्य चुनावी राज्यों में भी, खासकर महिलाओं के लिए, ‘मुफ्त की रेवड़ियां बांटने’ की राजनीति को बढ़ावा देंगे।
चुनाव विश्लेषक बिस्वनाथ चक्रवर्ती का मानना है कि बिहार में विपक्षी गठबंधन को करारी शिकस्त देने के बाद भाजपा को अब बंगाल में तृणमूल के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ने का मौका मिलेगा।
उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन की शानदार जीत निश्चित रूप से केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को बेहतर स्थिरता प्रदान करेगी। इसका मतलब यह है कि भाजपा बंगाल चुनाव से पहले तृणमूल पर बेरोकटोक राजनीतिक हमले कर सकेगी।”
बिहार के चुनाव नतीजों का विश्लेषण करते हुए, भाजपा की बंगाल इकाई के शीर्ष नेताओं ने राज्य में मतदाता सूची के एसआईआर को इसका श्रेय दिया।
नंदीग्राम से भाजपा विधायक शुभेंदु अधिकारी ने कहा, “बिहार की तरह बंगाल में भी अगले साल एसआईआर के जरिये शुद्ध की गई मतदाता सूची के आधार पर चुनाव होंगे और इससे फर्क पड़ेगा। नंदीग्राम ने 2021 में जो किया, राज्य के बाकी हिस्से 2026 में उसका अनुकरण करेंगे।”
नंदीग्राम में शुभेंदु ने ममता पर जीत दर्ज की थी।
हालांकि, चक्रवर्ती का मानना है कि बिहार में शानदार जीत से उत्साहित भाजपा नेताओं के लिए बंगाल में अब भी राह उतनी आसान नहीं होगी।
उन्होंने कहा, “बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार 2002 में अंतिम एसआईआर के बाद 2006 में राज्य में भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी थी। अगर वामपंथी ऐसा कर सकते हैं, तो यह मानने का कोई कारण नहीं है कि तृणमूल ऐसा नहीं कर सकती।”
वहीं, मैत्रा ने कहा, “बिहार के विपरीत, बंगाल में हमें अभी तक एसआईआर के नतीजों का पता नहीं चला है। इस कवायद से किसे फायदा होगा, इसका अंदाजा लगाने के लिए फिलहाल कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। इसके बजाय, भाजपा को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अभिजीत गंगोपाध्याय के इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि क्या वह राज्य में चुनाव जीतने के लिए गंभीर है।”
कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और तामलुक लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद गंगोपाध्याय ने अपने हालिया साक्षात्कारों में आरोप लगाया कि “जांच एजेंसियां तृणमूल नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच ठीक से नहीं कर रही हैं।” उन्होंने कहा कि “भाजपा में बहुत सारे गैर-बंगाली नेताओं की मौजूदगी, जिन्हें बंगाल के राजनीतिक समीकरण की बहुत कम समझ है, पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा रही है।”
भाषा पारुल